हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के प्रतिनिधि ने क़ुम अल मुक़द्देसा मे रहने वाले भारतीय शिया धर्मगुरू, कुरआन और हदीस के रिसर्चर मौलाना सय्यद साजिद रज़वी से हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के पत्रकार ने सुप्रीम लीडर के नेतृत्व और ईरान इज़राइल के 12 दिव्सीय युद्ध से संबंधित विषय पर विशेष बातचीत की। इस इंटरव्यू को अपने प्रिय पाठको के लिए प्रस्तुत किया जा रहा हैः
हौज़ा न्यूज़ः सलामुन अलैकुम वा रहमतुल्लाह, अपना परिचय कराते हुए अपनी शिक्षा और वर्तमान गतिविधि के बारे में बताएं?
मौलाना साजिद रज़वीः वअलैकुम सलाम मेरा नाम सय्यद साजिद रज़वी है। मेरी प्रारंभिक शिक्षा भारत में हुई, जहाँ मैंने धार्मिक और आधुनिक शिक्षा दोनों पाई। इसके पश्चात मैंने उच्च और आध्यात्मिक और आधुनिक अध्ययन के लिए हौज़ा इल्मिया क़ुम (ईरान) की ओर रुख किया, जहाँ मैंने पर्शियन, फ़िक्ह, उसूल, तफ़्सीर, हदीस कंप्यूटर और दर्शन जैसे विषयों पर अध्ययन किया। वर्तमान में मैं शिक्षा, लेखन और दूसरी ख़िदमत के सिलसिले से सक्रिय हूँ।
हौज़ा न्यूज़ः आयतुल्लाह ख़ामेनेई के नेतृत्व के बारे में आपका क्या आकलन है?
मौलाना साजिद रज़वीः आयतुल्लाह सय्यद अली ख़ामेनेई दाम ज़िल्लुहुल आली एक ऐसे रहनुमा हैं जिन्होंने न सिर्फ़ ईरान को, बल्कि समूचे मुस्लिम उम्मत को एक मज़बूत वैचारिक धारा प्रदान की है। उनका नेतृत्व इल्म, तजरबा, तक़्वा और बसीरत का संगम है। उन्होंने हर क्षेत्र, राजनीति, समाज, शिक्षा, विज्ञान, और रूहानियत, में दिशा दिखाई है और सदी के सबसे मज़बूत मज़हबी-राजनीतिक नेताओं में उनकी गिनती होती है।
हौज़ा न्यूज़ः कुछ लोगों का मानना है कि ईरान में आयतुल्लाह ख़ामेनेई का नेतृत्व तानाशाही है। आप इसे कैसे देखते हैं?
मौलाना साजिद रज़वीः तानाशाही वह होती है जहाँ जनता की आवाज़ दबा दी जाती है, जबकि ईरान का सिस्टम "विलायत-ए-फ़क़ीह" एक संवैधानिक और धार्मिक नेतृत्व प्रणाली है जो शूरा (परामर्श), मजलिस (पार्लियामेंट) और अवामी राय पर आधारित है। विरोध और बहस की गुंजाइश वहां हमेशा रही है। मगर जब राष्ट्रीय हितों और इस्लामी उसूलों की बात हो, तो एक मज़बूत केंद्रिय नेतृत्व की ज़रूरत होती है, और वह भूमिका सुप्रीम लीडर निभाते हैं।
हौज़ा न्यूजः आपको क्या लगता है कि युवा पीढ़ी के बीच सुप्रीम लीडर की स्वीकार्यता कैसी है?
मौलाना साजिद रज़वीः ईरान की युवा पीढ़ी में दो तरह के रुजहान हैं। एक तरफ वो युवा हैं जो पश्चिमी मीडिया से प्रभावित हैं, जिनकी संख्या न के बराबर है मगर दूसरी ओर बहुत बड़ी संख्या ऐसे नौजवानों की भी है जो ख़ामेनई साहब को एक रोल मॉडल, दीनदार रहनुमा और इन्क़लाबी नेता मानते हैं। वह विश्वविद्यालयों, मोर्चों, तकनीक, आईटी, मीडिया से लेकर मोहर्रम की अज़ादारी तक में सुप्रीम लीडर की सोच से प्रेरित हैं।
हौज़ा न्यूज़ः हालिया 12 दिवसीय ईरान-इज़राइल युद्ध में सर्वोच्च नेता के नेतृत्व से संबंधित आप क्या कहना चाहेंगे?
मौलाना साजिद रज़वीः यह लड़ाई सिर्फ़ ईरान और इज़राइल के बीच नहीं थी, यह हक़ और बातिल की टक्कर थी। सुप्रीम लीडर ने जिस हिकमत, सब्र और सख़्ती के साथ मोर्चे को चलाया, वह बताता है कि उनका नेतृत्व तात्कालिक नहीं बल्कि दीर्घकालिक सोच वाला है। उन्होंने पूरी उम्मत को यह एहसास दिलाया कि ज़ुल्म करने वाला चाहे कितना भी ताक़तवर हो, अगर नेतृत्व ईमानदार और दूरदर्शी हो, तो प्रतिरोध (मुज़ाहमत) से उसे पीछे हटाया जा सकता है।
हौज़ा न्यूजः सुप्रीम लीडर की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति पर आपकी क्या राय है?
मौलाना साजिद रज़वीः सुप्रीम लीडर आज दुनिया के उन चंद लोगों में हैं जिन्हें शिया-सुन्नी, मुस्लिम-ग़ैर मुस्लिम, दोस्त और दुश्मन सभी एक 'असरदार हस्ती' मानते हैं। उनका पैग़ाम सिर्फ़ ईरान तक महदूद नहीं बल्कि अलक़ुद्स, यमन, बहरैन, भारत, पाकिस्तान, लेबनान, अफ्रीका, यूरोप और अमरीका तक सुना और समझा जाता है। उनका खौफ़ इंसानी दुश्मनों के दिल में, और मोहब्बत हर उस दिल में जहां इंसानियत पाई जाती है विशेष रूप से अहले ईमान के दिलों में है।
हौज़ा न्यूजः अंत मे हम आपका धन्यवाद करते है कि आपने हमे अपना बहुमूल्य समय दिया।
मौलाना साजिद रज़वीः मै भी हौज़ा न्यूज़ एजेंसी का शुक्रिया अदा करता हूं कि हौज़ा न्यूज़ ने मुझ जैसे छात्र को अवसर प्रदान किया ।
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