हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, तारागढ़ के इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद नक़ी महदी ज़ैदी ने अपनी तकरीर में हज़रत ज़ैनब सलाम अल्लाह अलैहा के जन्म की एक रोचक कहानी सुनाई। उन्होंने बताया कि जब हज़रत ज़ैनब का जन्म हुआ, तो पैगंबर (स) मदीना में नहीं थे, और हज़रत फातिमा ज़हरा ने इमाम अली (अ) से उनकी नामकरण के लिए सुझाव मांगा। इमाम अली (अ) ने पैगंबर के लौटने तक इंतजार करने की सलाह दी। जब पैगंबर (स) मदीना लौटे, तो उन्होंने खुदा के संदेश से हज़रत ज़ैनब का नाम रखा।
पैगंबर (स) ने अपनी नवासी को गोदी में लेते हुए कहा कि "मेरी यह बेटी, हज़रत ख़दीजा की तरह है।" हज़रत ख़दीजा (स) ने इस्लाम के पहले दिनों में अपना सब कुछ इस्लाम के लिए दान कर दिया था। पैगंबर (स) चाहते थे कि लोग जानें कि हज़रत ज़ैनब का चरित्र भी हज़रत ख़दीजा (स) जैसा है।
मौलाना ने कहा कि हज़रत ज़ैनब के 61 उपनाम थे, जैसे "आलेमा ग़ैरे मोअल्लेमा" (बिना शिक्षक के ज्ञानी), "आयातुम मिन आयातिल्लाह", "फ़हीमा ए ग़ैरे मुफ़हेमा", मुहद्देसा, सानी ए ज़हरा इत्यादि। वे अपनी मां हज़रत फातिमा ज़हरा की यादगार थीं और कर्बला में अपनी भूमिका से इस्लाम को बचाने में मदद की। उनकी महानता और क़ुर्बानी हमेशा याद रखी जाएगी।
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