शनिवार 25 जनवरी 2025 - 06:44
माता-पिता की अवज्ञा एक ऐसा पाप है जिसका बोझ व्यक्ति उठाने में असमर्थ हैः मौलाना सैयद नकी मेहदी जैदी

हौज़ा/ अगर माता-पिता बूढ़े हो जाएं और उनकी वजह से परेशानी हो तो भी उन्हें "उफ़" नहीं कहना चाहिए। इमाम अली नक़ी (अ) से वर्णित है कि माता-पिता की अवज्ञा एक पाप है जिसका बोझ व्यक्ति उठाने में असमर्थ है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मौलाना सय्यद नकी महदी ज़ैदी ने अजमेर, तारागढ़ में जुमा की नमाज़ के खुतबे में माता-पिता के अधिकारों और माह-ए-रजब की बरकतों पर चर्चा की। उन्होंने क़ुरान मजीद और अहले बैत अलीहिम-अल-सलाम की हदीसों की रोशनी में माता-पिता के साथ अच्छे व्यवहार की अहमियत पर जोर दिया और कहा कि माता-पिता की नाफरमानी इंसान के ऊपर एक भारी बोझ है। इमाम जाफर सादिक़ अलीहिस्सलाम की तफ्सीर का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि माता-पिता के साथ इहसान का मतलब है कि उन्हें किसी भी चीज़ के लिए तकलीफ न दी जाए, चाहे वे मालदार ही क्यों न हों।

उन्होंने आगे कहा कि अगर माता-पिता बुजुर्ग हो जाएं और उनकी वजह से कोई परेशानी हो, तो भी उन्हें "उफ़" तक न कहा जाए। इमाम अली नक़ी अलीहिस्सलाम से एक हदीस के हवाले से उन्होंने कहा कि माता-पिता की नाफरमानी एक ऐसा गुनाह है जिसका बोझ इंसान नहीं उठा सकता।

माह-ए-रजब के बारे में मौलाना नकी महदी ज़ैदी ने कहा कि यह महीना अल्लाह की रहमत और कृपा का महीना है। उन्होंने नमाज़ियों को नसीहत दी कि वे इस महीने की क़द्र करें और अपने दिलों को अल्लाह की तरफ मोड़ें। उन्होंने कहा कि माह-ए-रजब, शाबान और रमज़ान के तीन महीने आत्मिक तालीम का बेहतरीन मौका होते हैं। इन महीनों में इंसान को अपने अमल और नीयत पर गौर करना चाहिए ताकि वह माह-ए-रमज़ान की मेज़बानी में पूरी तरह तैयार हो सके।

उन्होंने माह-ए-रजब के आखिरी दस दिनों की अहमियत पर भी रोशनी डाली और बताया कि इस दौरान इस्लामी तारीख के कई अहम वाक़िए हुए हैं, जिनमें जंग-ए-ख़ैबर, इमाम अली अलीहिस्सलाम को इल्म देने का वाक़िया और इमाम मूसा काज़िम अलीहिस्सलाम की शहादत शामिल हैं।

मौलाना नकी महदी ज़ैदी ने युवाओं को ख़ास तौर पर नसीहत दी कि वे इन पाक महीनों की बरकतों से फ़ायदा उठाएं और अपने दिलों को अल्लाह की रहमत से रोशन करें। उन्होंने कहा कि अगर इंसान माह-ए-रजब और शाबान में खुद को पाक कर ले, तो वह माह-ए-रमज़ान में अल्लाह की मेज़बानी का सही हक़दार बन सकता है।

ख़ुतबे के आख़िर में उन्होंने नमाज़ियों के लिए दुआ की कि अल्लाह तआला उन्हें माता-पिता के अधिकार अदा करने की तौफ़ीक़ दे और माह-ए-रजब, शाबान और रमज़ान की बरकतों से फ़ायदा उठाने की सआदत अता फरमाए।

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