हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद नक़ी महदी ज़ैदी ने जुमे की नमाज़ के खुत्बे में इलाही तक़वा की नसीहत देने के बाद, इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की वसीयत की शरह करते हुए कहा कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपने रिसालतुल-हुकूक में फ़रमाया: "तेरे बाप का हक यह है कि तुझे यह मालूम होना चाहिए कि तुझ में जो भी अच्छाई है, वह तेरे बाप के कारण है। अगर वह न होते तो तू न होता। जब भी तुझे कोई अच्छाई या कोई अच्छा गुण महसूस हो, तो जान ले कि वह तेरे बाप की मेहरबानी है, तो हमेशा अल्लाह की प्रशंसा कर और उसकी शुकरगुज़ारी कर।" इसी तरह, इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया: "तीन चीजें ऐसी हैं जिनके बारे में अल्लाह ने किसी को रियायत नहीं दी: 1. हर अच्छे और बुरे को उसनी अमानत वापस करना, 2. हर सालेह और फाजिर से किया गया वादा निभाना, 3. माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करना, चाहे वे नेक हों या बुरे।"
मौलाना नकी महदी ज़ैदी ने कहा कि इस्लाम ने माँ-बाप के अधिकारों को केवल धार्मिक मामलों से नहीं जोड़ा, बल्कि हर हाल में उनके अधिकारों का सम्मान करना जरूरी किया है। इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया: "माँ-बाप के साथ नाइक़ी करना वाजिब है, चाहे वे मुशरिक ही क्यों न हों, लेकिन ख़ुदा के गुनाहों में उनकी आज्ञा नहीं मानी जा सकती।"
ख़ुत्बा में यह भी बताया गया कि अहलेबैत अलैहिस्सलाम ने केवल क़ुरआनी आदेशों और नैतिक मूल्यों को ही उजागर नही किया, बल्कि इसका शरीअत के मुताबिक़ भी हुक्म दिया है। जैसे कि इमाम अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया: "सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण फ़र्ज़ माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करना है।"
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने अपने नाना पैगंबर से एक हदीस के बारे में बताया कि एक शख्स ने उनसे बेटे के बाप के हक़ के बारे में पूछा, तो आपने फ़रमाया: "उसे नाम से न पुकारो, उसके सामने न चलो, बैठने में उस पर सबक़त न करो और उसे गाली देने का कारण न बनाओ।"
मौलाना नकी महदी ज़ैदी ने यह भी कहा कि हमें माँ-बाप से अच्छा सुलूक करना चाहिए और उनके सामने हमेशा सम्मानजनक रहना चाहिए। इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया: "जो शख्स अपने माँ-बाप को नफ़रत की नज़र से देखे, चाहे उन्होंने उस पर जुल्म किया हो, उसकी नमाज़ अल्लाह की दरबार में क़ुबूल नहीं होगी।"
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