हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , बहरैन की संसद ने एक नया कानून पारित किया है, जिसके तहत सुन्नी और जाफरी (शिया) औक़ाफ़ को "शूरा-ए-आला बराए इस्लामी उमूर" (उच्च इस्लामी मामलों की परिषद) के अधीन कर दिया जाएगा। इस फैसले को शिया समुदाय की स्वायत्तता को सीमित करने का एक और प्रयास माना जा रहा है।
संसद का फैसला और सरकारी तर्क
बहरैनी संसद ने बहुमत से इस कानून को मंज़ूरी दी जिससे दोनों औक़ाफ़ की निगरानी और प्रबंधन अब "शूरा-ए-आला बराए इस्लामी उमूर" के तहत आ जाएगा सरकार का कहना है कि इस कदम का उद्देश्य मस्जिदों और औक़ाफ़ के बेहतर प्रबंधन को सुनिश्चित करना है।
संसद के एक सदस्य अहमद कराता ने कहा कि चूंकि शूरा-ए-आला के अधीन मस्जिदों का प्रबंधन बेहतर है इसलिए सुन्नी और जाफरी औक़ाफ़ को भी इसके अधीन लाना ज़रूरी है ताकि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
शिया औक़ाफ़ की स्वायत्तता पर प्रभाव
यह निर्णय बहरैन की धार्मिक विविधता की नीति के विपरीत है और शिया समुदाय के धार्मिक, सांस्कृतिक और वित्तीय अधिकारों को सीधे प्रभावित करेगा।
इतिहास में शिया औक़ाफ़ को एक स्वतंत्र दर्जा प्राप्त था, विशेष रूप से शाह हमद बिन ईसा के शासन से पहले, जब सरकार औक़ाफ़ के मामलों या न्यायिक निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं करती थी।
इस कानून से यह साफ़ होता है कि सरकार एक विशेष धार्मिक दृष्टिकोण को थोप रही है और शिया समुदाय के फैसलों को अपने नियंत्रण में लेना चाहती है।
लोकतंत्र और राजनीतिक असंतोष
यह निर्णय एक ऐसी संसद द्वारा लिया गया है, जिसमें जनता की वास्तविक भागीदारी नहीं है। 2018 और 2022 के चुनावों में विपक्ष को भाग लेने से रोका गया था जिससे संसद जनता की भावनाओं का सही प्रतिनिधित्व नहीं करती। कई राजनीतिक विरोधियों को या तो निर्वासित कर दिया गया है या जेल में डाल दिया गया है, और चुनावी क्षेत्रों के विभाजन भी सरकार के पक्ष में किए गए हैं।
शिया समुदाय के लिए संभावित परिणाम
यह कदम शिया समुदाय के बचे हुए धार्मिक और वित्तीय अधिकारों को खत्म करने की कोशिश है इस फैसले के बाद सरकार सीधे तौर पर शिया औक़ाफ़ के वित्तीय मामलों ज़मीन और अन्य संपत्तियों पर नियंत्रण हासिल कर लेगी जिससे आर्थिक शोषण का खतरा बढ़ जाएगा।
धार्मिक स्वतंत्रता और उलेमा की बेबसी
बहरीन में सरकार पहले से ही शिया औक़ाफ़ पर कड़ा नियंत्रण रखती है और उलेमा की स्वायत्तता की मांगों को खारिज कर चुकी है औक़ाफ़ के आंतरिक सदस्य भी सरकारी फैसलों पर आपत्ति जताने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें उनके पद से हटा दिया जा सकता है।
2011 में इसका एक उदाहरण देखने को मिला जब बहरैनी राजा ने शिया औक़ाफ़ के सभी 10 सदस्यों को बर्खास्त कर दिया क्योंकि उन्होंने मस्जिदों को ध्वस्त किए जाने के खिलाफ एक विरोधी बयान जारी किया था।
इस कानून से शिया समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता और वित्तीय स्वायत्तता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। सरकार द्वारा धार्मिक मामलों पर बढ़ता नियंत्रण बहरीन में धार्मिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए एक चुनौती बन सकता है।
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