हौज़ा न्यूज़ एजेंसी
शायरः मौलाना असकरी इमाम ख़ान जौनपुरी
जिस मे इस्लाम है चमका वह पहर है अब्बास
शाम होगी नही जिसकी वह सहर है अब्बास
बाइसे राहते हर क़ल्बो जिगर है अब्बास
खिरमने क़ल्बे मुनाफ़िक़ पे शरर है अब्बास
फ़ाइज़े मंसबे इस्मत हो नही है लेकिन
एक मासूम तमन्ना का समर है अब्बास
सामने क्या था भला तेरे यज़ीदी लशकर
इज़्ने शब्बीर मगर मद्दे नज़र है अब्बास
नसरते हज़रत शब्बीर की खातिर तेरे
अस्लहे हाथ मे और सीना सिपर है अब्बास
शितनगी, धूप, अदू और सकू का आलम
ऐसा लगता है कि मा फ़ौक़े बशर है अब्बास
आप नज़रो से लड़े है वो तबस्सुम से लड़ा
नन्हे असगर मे वही तेरा हुनर है अब्बास
टूट जाए न कहीं आस ना गिरने देना
तेरे परचम पे सकीना की नज़र है अब्बास
सो गए खुद तो लबे नहर कटा कर बाज़ू
एक नज़र ढ़ूंड रही है कि किधर है अब्बास
गिरता है सर को झुकाए लबे साहिल मौजे
एक तसव्वुर है, अभी पेश नज़र है अब्बास
अस्करी आग को गुलज़ार जो कर देते है
तेरे परचम की हवा का ये असर है अब्बास
आपकी टिप्पणी