रविवार 23 फ़रवरी 2025 - 07:23
सय्यद-ए-मुक़ावमत का जनाज़ा: सब्र और इस्तेक़ामत का एक और इम्तिहान

हौज़ा/आज जब उनका जनाज़ा उठेगा, तो सिर्फ़ एक मिट्टी के जिस्म को नहीं, बल्कि एक मक़सद के मशाल को कंधों पर उठाया जाएगा। चारों ओर अजीब-सी खामोशी होगी, हर जगह आँसू, सिसकियाँ, और नौहे सुनाई देंगे। जो आँखें सालों से उनके दीदार को तरस रही थीं, वो कल उन्हें आख़िरी बार देखेंगी, लेकिन यह सिर्फ़ एक विदाई नहीं होगी, यह ज़ुल्म के ख़िलाफ़ एक नई बैअत, एक नया अहद, और एक नया इंक़िलाब होगा।

लेखकः सयद एस.एच. रज़वी मोहम्मद

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी!

समय बीत चुका है, लेकिन ज़ख्म अब भी हरे हैं। सैयद हसन नसरुल्लाह की शहादत को कई महीने हो चुके हैं, मगर उनका जनाज़ा अब उठाया जा रहा है। यह इंतेज़ार, यह सब्र, यह बेचैनी, यह सब इस हकीकत के गवाह हैं कि वह सिर्फ़ एक इंसान नहीं थे, बल्कि एक दौर, एक विचारधारा, एक आंदोलन थे, जिसे दुश्मन लाख कोशिशों के बावजूद मिटा नहीं सका।

आज जब उनका जनाज़ा उठेगा, तो सिर्फ़ एक मिट्टी के जिस्म को नहीं, बल्कि एक मक़सद के मशाल को कंधों पर उठाया जाएगा। चारों ओर अजीब-सी खामोशी होगी, हर जगह आँसू, सिसकियाँ, और नौहे सुनाई देंगे। जो आँखें सालों से उनके दीदार को तरस रही थीं, वो कल उन्हें आख़िरी बार देखेंगी, लेकिन यह सिर्फ़ एक विदाई नहीं होगी, यह ज़ुल्म के ख़िलाफ़ एक नई बैअत, एक नया अहद, और एक नया इंक़िलाब होगा।

यह जनाज़ा सिर्फ़ एक लीडर का नहीं, बल्कि एक नज़रिया का जनाज़ा है। दुनिया के मज़लूमों की उम्मीद, मुक़ावमत के सिपाहियों की हिम्मत और ज़ालिमों के लिए एक सख्त पैग़ाम कि तुम जितने भी चिराग़ बुझाओगे, उतनी ही रौशनी और फैलेगी। अगर दुश्मन यह सोच रहा है कि सैयद की शहादत से मुक़ावमत कमज़ोर होगी, तो वह इतिहास से बेख़बर है।

आज जब जनाज़ा उठेगा:
⚫️ जमीन कांपेगी, आसमान मातम करेगा।
⚫️ मासूम बच्चे, जो सैयद की तक़रीरों से हौसला पाते थे, अपने माँ-बाप के साथ ग़म में खड़े होंगे।
⚫️ बढ़ी माँएँ, जिन्होंने अपने बेटों को उनके दर्स-ए-शुजाअत पर क़ुर्बान कर दिया, हसरत भरी नज़रों से ताबूत को देखेंगी।
⚫️ यवा, जिनकी रगों में मुक़ावमत का ख़ून दौड़ रहा है, अपने क़ायद को याद करके मुठ्ठियाँ भींचेंगे, आँसू बहाएँगे और अहद करेंगे कि यह मिशन कभी रुकेगा नहीं।
आज जब यह जनाज़ा गुज़रेगा, तो हर ज़ुबान पर वही सदा होगी:
 लब्बैक या हुसैन! लब्बैक या ज़ैनब! 
यह आँखों से आख़िरी विदाई ज़रूर होगी, लेकिन उनकी सोच, उनका रास्ता और उनका मिशन हमेशा ज़िंदा रहेगा।
यह जनाज़ा उम्मत-ए-मुस्लिम के लिए एक पैग़ाम भी होगा:

⚫️ ऐ उम्मत! क्या तुम अब भी ख़ामोश रहोगे?
⚫️ कया तुम अब भी दुश्मन के जुल्म सहते रहोगे?
⚫️ कया तुम अब भी इन शहीदों के लहू को राएगाँ जाने दोगे?

यह जनाज़ा चीख़-चीख़ कर पुकारेगा:
उठो, आगे बढ़ो, मुक़ावमत के रास्ते को थाम लो!
क्योंकि अगर आज तुम ज़ुल्म के ख़िलाफ़ खड़े नहीं हुए, तो कल तारीख़ तुम्हें भी मुर्दा ज़मीर लोगों में शामिल कर देगी।
यह कोई आख़िरी जनाज़ा नहीं,
यह एक नए दौर की शुरुआत है।
यह हक़ और बातिल के दरमियान एक नई जंग का ऐलान है।
यह हुसैनियत का परचम बुलंद करने की एक और क़सम है।
सैयद-ए-मुक़ावमत का जनाज़ा कल उठेगा, लेकिन उनका मिशन आज भी ज़िंदा है और हमेशा रहेगा।
 

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