हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, तेहरान विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. सैयद मोहम्मद हुसैनी ने कहा है कि इतिहास में हमेशा बातिल की ताकतों ने सत्य (हक़) पर हमला किया है जबकि सत्य के मार्ग पर चलने वाले लोग और मुजाहिदीन ने धर्म देश और अपनी इज्जत व सम्मान की रक्षा की है।
यह बात उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कुरआन प्रदर्शनी के दौरान आयोजित एक विशेषज्ञ बैठक में कही जिसका विषय था सादात की प्रतिरोधी मोर्चे (मुकावमत) के गठन और विकास में भूमिका।
डॉ. हुसैनी ने कहा कि बातिल की ताकतें कभी भी सत्य को स्वीकार नहीं करतीं जैसा कि पैगंबर मुहम्मद (स.ल.व.) की पैगंबरी (बिस्सत) के बाद मशरिकीन ने मुसलमानों पर अत्याचार किए।
उन्होंने इस्लामी क्रांति के प्रभावों पर चर्चा करते हुए कहा कि इमाम खुमैनी (र.ह.) का विचार था कि क्रांति (इंक़ेलाब) को पूरी दुनिया में फैलाया जाए और यही कारण है कि हिज़्बुल्लाह, अंसारुल्लाह, हश्द-उश-शाबी, फातेमियून जैसे प्रतिरोधी संगठन (मुकावमत के ग्रुप उभरे।
सैयद हसन नसरुल्लाह के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए, डॉ. हुसैनी ने सुप्रीम लीडर के बयान का हवाला दिया कि वह इस्लामी उम्मत के लिए एक महान नेमत हैं।
उन्होंने आगे कहा कि अंसारुल्लाह ने न केवल यमन के पूर्व शासकों को हराया, बल्कि सऊदी अरब के खिलाफ भी सफल प्रतिरोध किया और ग़ज़्ज़ा का समर्थन किया उन्होंने कहा कि अंसारुल्लाह पहला संगठन था जिसने इसराइल पर मिसाइल हमला किया, और अगर मुकावमत न हो तो तौहीद का संदेश बेमानी हो जाता है।
डॉ. हुसैनी ने हमास और इस्लामी जिहाद के नेताओं की जनता द्वारा किए गए समर्थन की सराहना की और कहा कि मुकावमत ही एकमात्र रास्ता है और इस्लामी विद्वान (उलमा-ए-इस्लाम) हमेशा इस संघर्ष में अग्रणी रहे हैं।
अंत में उन्होंने शहीद इब्राहीम रईसी और शहीद अमीर अब्दुल्लाहियान का जिक्र करते हुए कहा कि इन दोनों हस्तियों ने प्रतिरोधी मोर्चे (मुकावमत) की मजबूती में अहम भूमिका निभाई।
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