۳ آذر ۱۴۰۳ |۲۱ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 23, 2024
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हौज़ा / हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अरबईन के मौक़े पर तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में स्टूडेंट अंजुमनों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की अज़ादारी का प्रोग्राम आयोजित किया जिसमें इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने भी शिरकत की।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के मुताबिक,हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अर्बईन के मौक़े पर तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में स्टूडेंट अंजुमनों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की अज़ादारी का प्रोग्राम आयोजित किया जिसमें इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने भी शिरकत की।

प्रोग्राम में अर्बईन की विशेष ज़ियारत पढ़ी गयी जिसके बाद हुज्जतुल इस्लाम वलमुस्लेमीन असलानी ने मजलिस पढ़ी और नौहा ख़ानों ने इमाम हुसैन का नौहा पढ़ा।

प्रोग्राम के अंत में आयतुल्लाह ख़ामेनेई की इमामत में ज़ोहर और अस्र की नमाज़ अदा की गयी। दोनों नमाज़ों के बीच इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने मौजूद लोगों को ख़ेताब करते हुए आशूरा की ज़ियारत के जुमलों का हवाला दिया और कहा कि हुसैनी मोर्चे और यज़ीदी मोर्चे के दरमियान लड़ाई जारी है जो ख़त्म होने वाली नहीं है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का कहना था कि बेशक अलग अलग हालात में इस जंग के अंदाज़ अलग अलग होते हैं।

उन्होंने कहा कि इस्लामी इंक़ेलाब ने नौजवानों के सामने बहुत विशाल मैदान खोल दिया है और इस मौक़े का भरपूर फ़ायदा उठाना चाहिए और सही प्लानिंग, फ़रीज़े की सही पहचान के साथ इंक़ेलाब के आला लक्ष्यों की दिशा में सही वक़्त पर ज़रूरी काम अंजाम देना चाहिए ताकि तरक़्क़ी और कामयाबी का रास्ता समलत हो।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अपने ख़ेताब में बल दिया कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन का मक़सद ज़ुल्म व अत्याचार का मुक़ाबला करना था। आपने कहा कि ज़ुल्म व अत्याचार से हुसैनी मोर्चे के मुक़ाबले के तरीक़े हालात के मुताबिक़ बदलते रहते हैं।

यह लड़ाई तलवार और भाले के ज़माने में किसी और तरीक़े की थी और परमाणु दौर और आर्टिफ़िशल इंटेलीजेंस के दौर में किसी और अंदाज़ की है, शेर व शायरी और हदीस व कथन से प्रवचन के दौर में इसका अलग अंदाज़ था और इंटरनेट व क्वांटम के ज़माने में इसकी अलग शैली है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के मुताबिक़, यह फ़रीज़ा स्टूडेंट लाइफ़ में अलग अंदाज़ से अंजाम दिया जाता है और ओहदा संभालने के बाद दूसरे अंदाज़ से अंजाम दिया जाता है। उन्होंने कहा कि यज़ीदी मोर्चे से हुसैनी मोर्चे की लड़ाई हमेशा बंदूक़ से नहीं होती बल्कि सही सोच, सही बात, सही पहचान के साथ फ़रीज़े की समझ हासिल की जाती है और ठीक निशाने पर वार करना होता है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बल दिया कि अगर हम इस रास्ते पर चले तो हमारी ज़िंदगी अर्थपूर्ण व मक़सद वाली होगी। उन्होंने कहा कि नौजवान नस्ल मौजूदा दौर को जिसमें इस्लामी इंक़ेलाब की बरकत से उनके सामने विशाल मैदान खुल गया है, ग़नीमत समझें और योजना, अध्ययन व सही सोच के ज़रिए जो क़ुरआन को समझने के लिए ज़रूरी है, सही वक़्त पर क़दम उठाएं।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि यह सही वक़्त पर क़दम कभी यूनिवर्सिटी के भीतर अंजाम देना होता है, कभी सामाजिक माहौल में, कभी राजनैतिक माहौल में अंजाम देना होता है और कभी यह क़दम कर्बला की राह में, फ़िलिस्तीन की राह में और आला लक्ष्यों की राह में अंजाम दिया जाता है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का कहना था कि इस ऐतिहासिक मौक़े से सही फ़ायदा उठाना नौजवानों की कामयाबी व तरक़्क़ी की गारंटी है और अगर यह मौक़ा हाथ से चला जाए और फ़रीज़े पर अमल न किया जाए तो यह बहुत बड़ा नुक़सान है।

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