हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हादी हुसैन खानी ने कहां,बिस्मिल्लाह हिर्रहमानिर्रहीम
अल्लाह तआला सूरह हुजुरात की आयत 10 में फ़रमाते हैं:
إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ إِخْوَةٌ فَأَصْلِحُوا بَیْنَ أَخَوَیْکُمْ وَاتَّقُوا اللَّهَ لَعَلَّکُمْ تُرْحَمُونَ.
मोमिन आपस में भाई हैं, तो अपने भाइयों के बीच सुलह कराओ और अल्लाह से डरो, ताकि तुम पर रहमत की जाए।
📖 (सूरह हुजुरात 49:10)
भाईचारे और मतभेदों का समाधान
यह आयत इस सच्चाई को स्पष्ट करती है कि जो लोग दीन और ईमान के लिहाज से एक विचारधारा पर हैं वे सभी आपस में भाई हैं। चाहे वे पुरुष हों या महिलाएँ सभी को इस भाईचारे को बनाए रखना चाहिए।
जिस तरह सगे भाइयों के बीच कभी-कभी मतभेद और विवाद हो सकते हैं, उसी तरह दीन के अनुयायियों में भी विचारों और दृष्टिकोणों में भिन्नता हो सकती है। ऐसे समय में अल्लाह तआला मोमिनों को यह हुक्म देता है कि वे इन मतभेदों के हल में उदासीन न रहें बल्कि ईमानदारी और भलाई के साथ मेल मिलाप कराने में पहल करें।
सुलह,मजबूरी या ज़रूरत?
शहीद आयतुल्लाह मुतह्हरी इस आयत के एक महत्वपूर्ण पहलू की ओर ध्यान दिलाते हैं कि यह किसी भी तरह अपमानजनक समझौते" का समर्थन नहीं करती। कुछ लोग वार्ता को केवल एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर अपने स्वार्थों को बढ़ाना और दूसरों को झुकाना चाहते हैं। लेकिन क़ुरआन की यह आयत विशेष रूप से "ईमानी समाज" के संदर्भ में बात कर रही है जहाँ सुलह का उद्देश्य सच्ची भलाई हो, न कि किसी पर दबाव डालना या उसे अपने अधीन करना।
क़ुरआन का समाधान,न्याय और बुद्धिमत्ता
इसलिए क़ुरआन हमें मतभेदों के समाधान के लिए संयम, बुद्धिमत्ता और सच्चाई पर आधारित मध्यस्थता की दावत देता है, न कि कमजोरी की वजह से झुक जाने की।
यदि हम इस्लाम के इन मूल्यों को अपनाएँ, तो पारिवारिक और सामाजिक विवादों का समाधान आसानी से निकल सकता है और समाज में शांति व सौहार्द बना रह सकता है।
आपकी टिप्पणी