हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,बक़ीअ क़ब्रिस्तान सऊदी अरब में स्थित है और आले सऊद वंश ने हिजाज़ और मक्का व मदीना नगरों पर क़ब्ज़े के बाद वह्हाबी धर्मगुरुओं के फ़तवे को आधार बना कर इस्लामी कैलेंडर के अनुसार 8 शव्वाल सन 1344 हिजरी क़मरी को बक़ीअ क़ब्रिस्तान में स्थित सभी मज़ारों को ध्वस्त कर दिया।
ईसवी कैलैंडर के अनुसार वह 27 अप्रैल सन 1926 को बुधवार का दिन था। इस क़ब्रिस्तान में बहुत सी इस्लामी हस्तियों के मज़ार थे जिनमें सब से महत्वपूर्ण मज़ार, पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फातेमा ज़हरा (स) का मज़ार था जिसे वह्हाबियों ने पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया। आज के दिन पूरी दुनिया में बक़ीअ दिवस मनाया जाता है और सऊदी शासन के ख़िलाफ़
बक़ीअ को क्यों ध्वस्त किया गया?
वह्हाबी संप्रदाय के वैचारिक गुरु मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब, मुसलमानों के लिए अत्यन्त सम्मानीय हज़रत मोहम्मद (स) के लिए दुआ करने से मना करते थे और अगर किसी को यह काम करते देख लेते तो उसे सज़ा देते थे।
अटठारवीं ईसवी सदी के धर्मगुरु मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब का मानना था कि तीसरी सदी हिजरी के बाद इस्लाम के बारे में धर्मगुरुओं ने जो कुछ कहा है वह सब ग़लत है और इन सब चीज़ों को इस्लाम से निकाला जाना चाहिए। वह सुन्नी मुसलमानों में एक बड़े सुधार का दावा करते थे और, मज़ारों के दर्शन तथा शानदार मज़ारों के निर्माण को पाप समझते थे।
वह्हाबियत और मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब
मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब के इस प्रकार के विचारों के कारण मदीना नगर से निकाल दिया गया जिसके बाद वह नजद के जो वर्तमान सऊदी अरब है, उत्तर पूर्वी क्षेत्र में चले गये जहां सऊद वंश को इस्लाम की राह में एक पवित्र युद्ध आरंभ करने पर तैयार करने में सफल हो गये
इतिहासकारों के अनुसार मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब को ब्रिटिश खुफिया एजेन्सी ने तैयार किया था और उसी ने उन्हें सऊद वंश के पास भेजा था। मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब के विचारों को सऊद वंश ने औपचारिक रूप से स्वीकार किया और इस धर्मगुरु की विचारधारा और ब्रिटेन की मदद से धीरे धीरे सऊद वंश ने जिसका शासन नज्द व हिजाज़ के एक क्षेत्र पर था, पूरे नज्द पर क़ब्ज़ा कर लिया।
सऊदी वंश ने मक्का व मदीना पर हमला करके उस पर क़ब्ज़ा कर लिया इसके लिए अलावा इराक के कई नगरों पर हमले किये और बड़ी लूटमार की किंतु सन 1818 ईसवी में ओटोमन साम्राज्य ने मिस्र की सहायता से वह्हाबियों के शासन का अंत कर दिया किंतु वह्हाबियों ने प्रथम फैसल के नेतृत्व में फिर से अपना शासन खड़ा कर दिया किंतु दूसरी बार भी उत्तरी सऊदी अरब के रशीदिया वंश ने वह्हाबियों के शासन का अंत कर दिया।
1884 में रियाज़ उनके हाथों से निकल गया और सन 1889 में सऊदी शासक, कुवैत में शरण लेने पर मजबूर हो गये। बीसवीं सदी में सन 1889 में प्रिंस अब्दुलअज़ीज़ के नेतृत्व में सऊदी अरब में वह्हाबियों की सत्ता के लिए तीसरा सफल प्रयास आरंभ हुआ और सन 1902 में प्रिंस अब्दुलअज़ीज़ ने रियाज़ पर क़ब्ज़ा कर लिया और सन 1932 तक सऊदी वंश से छीने गये लगभग सारे क्षेत्रों को वापस लेकर वह्हाबी विचारधारा के साथ सऊदी अरब की स्थापना की और फिर पूरे इस्लामी जगत में विनाशलीला आरंभ हो गयी।
बक़ीअ को कई बार ध्वस्त किया गया
हिजाज़ पर आले सऊद के अधिकार के बाद चूंकि मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब इस शासन के वैचारिक गुरु थे इस लिए जिस शहर में भी मज़ार या पवित्र स्थल वह्हाबियों को मिलता था वह उसे गिरा देते थे।
वह्हाबियों ने सब से पहले सन 1221 हिजरी क़मरी में अर्थात अब आज से 216 साल पहले बक़ीअ क़बिस्तान के कुछ हिस्सों को ध्वस्त किया किंतु जब पूरे हिजाज़ पर क़ब्ज़ा हो गया तो सन 1344 में अर्थात 93 साल पहले आज ही के दिन इस क़ब्रिस्तान के हर मज़ार को गिरा दिया और इन मज़ारों में मौजूद क़ीमती चीज़ों को लूट लिया।
वह्हाबियों ने ताइफ नगर में इब्ने अब्बास के मज़ार को गिरा दिया जबकि मक्का पर क़ब्ज़े के बाद पैगम्बरे इस्लाम के परिजनों, अब्दुलमुत्तलिब, अबूतालिब और उनकी पत्नी हज़रत खदीजा के मज़ारों को मिट्टी के ढेर में बदल दिया, जद्दा पर जब उनका क़ब्ज़ा हुआ तो उन्हों ने वहां हज़रत हव्वा का मज़ार ध्वस्त कर दिया और जब वह्हाबियों ने मदीना नगर पर क़ब्ज़ा करने के लिए उसका घेराव किया तो पैगम्बरे इस्लाम के चाचा हज़रत हम्ज़ा के मज़ार और वहां बनी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया।
मदीने पर क़ब्ज़े के बाद वह्हाबियों के तत्कालीन मुफ्ती, शेख अब्दुल्लाह बिन बलीहद ने रमज़ान सन 1344 हिजरी क़मरी में मदीना जाकर वहां लोगों के मध्य परचे बांटे जिनमें उनसे पूछा गया था कि मज़ारों को ध्वस्त करने के बारे में उनका क्या कहना है?
अलबत्ता वह्हाबियों ने लोगों के जवाब का इंतेज़ार किये बिना ही मदीना में मौजूद सभी पवित्र स्थलों को मिट्टी का ढेर बना दिया , वह मदीना में पैगम्बरे इस्लाम के मज़ार को भी ध्वस्त करना चाहते थे लेकिन जिस प्रकार से पूरे इस्लामी जगत में उनका विरोध शुरु हुआ था उससे डर कर उन्होंने पैगम्बरे इस्लाम के मज़ार को छोड़ दिया किंतु अब भी विभिन्न अवसरों पर वह्हाबी धर्मगुरु अपने इस विचार को प्रकट करते रहते हैं।
आपकी टिप्पणी