हौज़ा न्यूज़ एजेंसी | कुरान पाक में मोमेनीन को दुख और परेशानियों से बचाने के रास्ते के बारे में बताया गया है:
وَذَا النُّونِ إِذْ ذَهَبَ مُغَاضِبًا فَظَنَّ أَنْ لَنْ نَقْدِرَ عَلَیْهِ فَنَادَیٰ فِی الظُّلُمَاتِ أَنْ لَا إِلَٰهَ إِلَّا أَنْتَ سُبْحَانَکَ إِنِّی کُنْتُ مِنَ الظَّالِمِینَ. فَاسْتَجَبْنَا لَهُ وَنَجَّیْنَاهُ مِنَ الْغَمِّ وَکَذَٰلِکَ نُنْجِی الْمُؤْمِنِینَ व ज़न्नूने इज़ ज़हबा मुग़ाज़ेबन फ़ज़न्ना अन लन नक़देरा अलैहे फ़नादा फ़िज़ ज़ोलोमाते अन ला इलाहा इल्ला अन्ता सुब्हानका इन्नी कुन्तो मेनज़ ज़ालेमीना। फ़स्तजब्ना लहू व नज्जयनाहो मिनल ग़म्मे व कज़ालेका नुंजिल मोमेनीना। 1
और उस मछली के पेट में (यूनुस) को याद करो, जब वह क्रोधित होकर चला गया और सोचता था कि हम उस पर काबू नहीं पा सकते। फिर उसने अंधकार में पुकारा: 'तेरे सिवा कोई इबादत के काबिल नहीं, तू पाक है, मैं तो ज़ालिमों में से था।' हमने उसकी दुआ कबूल की और उसे ग़म से बचाया। इसी तरह हम मुमिनों को भी बचाते हैं।"
व्याख्या:
कुछ लोग जब जीवन की मुश्किलों, समस्याओं और दुखों में पड़ते हैं, तो वे खुदा को क़ुसूरवार मानते हैं। और शायद इसी वजह से वे खुदा से दूर हो जाते हैं और अपने धार्मिक फरज़ों को छोड़ देते हैं।
हाँ, हर मुश्किल और तकलीफ़ जो हमें मिलती है, वह खुदा की अनुमति से होती है।
इसलिए, हमें धैर्य रखना चाहिए और खुदा से मदद मांगनी चाहिए, जैसे यूनुस ने किया था। खुदा अपने मोमिनो को उनके दुखों से बचाता है।
مَا أَصَابَ مِنْ مُصِیبَةٍ إِلَّا بِإِذْنِ اللَّهِ मा असाबा मिन मुसीबतिन इल्ला बेइज़्निल्लाहे । 2
कोई भी मुसीबत नहीं आती सिवाय खुदा की इजाज़त के।
लेकिन उस मुसीबत का असली कारण खुदा नहीं है, बल्कि हम खुद होते हैं।
وَمَا أَصَابَکُمْ مِنْ مُصِیبَةٍ فَبِمَا کَسَبَتْ أَیْدِیکُمْ وَیَعْفُو عَنْ کَثِیرٍ वमा असाबकुम मिन मुसीबतिन फ़ीमा कसबत अयदीकुम व यअफ़ू अन कसीर । 3
और जो भी मुसीबत तुम्हें पहुँचती है, वह तुम्हारे अपने किए हुए कर्मों की वजह से होती है, और वह बहुत से गुनाहों को माफ़ भी कर देता है।
इसलिए, जब युनुस अलेहिस्सलाम मछली के पेट में थे, तो उन्होंने खुदा से इस तरह कहा: سُبْحَانَکَ إِنِّی کُنْتُ مِنَ الظَّالِمِینَ؛ सुब्हानका इन्नी कुंतो मेनज़ ज़ालेमीना, तू पाक है, मैं ज़ालिमों में से था।
यह दिखाता है कि मुसीबतों में भी खुदा की पाकीज़गी को मानना और अपनी गलतियों को स्वीकार करना ज़रूरी है। और वास्तव में यही सच्चाई को स्वीकार करना और मान लेना इंसान को दुनिया की अंधकार और मुश्किलों से आज़ाद कर सकता है। इसका मतलब यह है कि सभी अच्छी चीज़ों को खुदा से जोड़ें और बुरी चीज़ों को अपनी तरफ से समझें। जैसे कि कुरआन पाक ने भी इस सच्चाई की ओर इशारा किया है:
مَا أَصَابَکَ مِنْ حَسَنَةٍ فَمِنَ اللَّهِ وَمَا أَصَابَکَ مِنْ سَیِّئَةٍ فَمِنْ نَفْسِکَ मा असाबका मिन हसनतिन फ़मेनल्लाहे वमा असाबका मिन सय्येअतिन फ़मिन नफ़्सेका।4
जो भी भलाई तुम्हें मिलती है, वह खुदा की तरफ से है, और जो भी बुराई तुम्हें मिलती है, वह तुम्हारे अपने से है।
हवालाः
1- सूर ए अम्बिया, आयत न 87-88
2- सूर ए तग़ाबुन, आयत न 11
3- सूर ए शूरा, आयत न 30
4- सूर ए नेसा, आयत न 79
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