हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मौलाना सैय्यद मोहम्मद इबादत नक़वी कलीम अमरोहवी 6 फ़रवरी 1911 ई॰ में अमरोहा के एक इल्मी घराने में पैदा हुए। आपके वालिद मौलाना सैय्यद औलाद हसन सलीम बयक वक़्त बहुत सी खुसूसियात के हामिल थे, जिनमें से उलूम-ओ-फ़ुनून में माहरत, ज़बरदस्त ख़ताती, फ़न-ए-म्यूज़िक में माहरत और उस्तादाना शायरी जैसी ख़ासूसियतें सरेर्फ़रिहस्त हैं।
कलीम अमरोहवी अपने वालिदेन के इकलौते फ़र्ज़न्द थे जो बड़ी मन्नतों और दुआओं से पैदा हुए थे। आपका तारीखी नाम हुसैन अख़्तर था, मगर मुहम्मद इबादत के नाम से मशहूर हुए। इनका सिलसिला-ए-नसब इमाम अली नक़ी अलेहिस्सलाम के फ़रज़ंद हज़रत जाफ़रे सानी से मिलता है।
आपके जद्दे अमजद मौलाना इबादत अव्वल अपने वक़्त के जय्यद आलिम और कामयाब मुबल्लिग-ए-दीन थे, जिन्होंने आयतुल्लाह गुफ़रानमआब से फ़िक़्ह व उसूल की तालीम हासिल करने के बाद अपने वतन में अपनी ही ज़मीन पर एक मस्जिद तामीर कराई और नमाज़-ए-जुमा व जमाअत क़ायम की।
मौलाना इबादत कलीम अमरोहवी अभी नौ या दस बरस के थे कि साया-ए-पिदरी से महरूम हो गए। आपके क़रीबी रिश्तेदारों में कोई नहीं था, लिहाज़ा आपकी तरबियत की ज़िम्मेदारी मौलाना हाजी मुर्तज़ा हुसैन ने क़ुबूल की और आपको अपने बेटे की तरह समझा।
मौलाना मौसूफ़ खुद फरमाते थे कि जिस वक़्त मेरे वालिद का इंतिक़ाल हुआ तो दफ़्न के फौरन बाद बरादरी के अज़ीम मज़मे से मुख़ातिब होकर मेरे मुरब्बी और शफ़ीक़ उस्ताद मौलाना मुर्तज़ा ने फरमाया:
“आप लोगों से मैं इस बच्चे को मांगता हूँ ताकि मैं उसकी इल्मी ख़िदमत कर सकूँ और तालीम मुकम्मल होने के बाद इस बच्चे को आपके सुपुर्द कर दूँ।”
मौलाना कलीम ने इब्तिदाई तालीम मदरसा नूरुल-मदारिस अमरोहा में आयतुल्लाह यूसुफुल मिल्लत की सरपरस्ती में हासिल की। जब मौलाना यूसुफ हुसैन मदरसा नूरुल-मदारिस को तर्क करके मनसबिया जा रहे थे, तो मौलाना मुर्तज़ा हुसैन ने मौलाना इबादत को उनके हमराह मेरठ रवाना कर दिया और आप उन्हीं की सरपरस्ती में अपने तालीमी सफ़र को आगे बढ़ाते रहे।
जिस वक़्त यूसुफुल मिल्लत मेरठ से अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के लिए रवाना हुए तो आप मेरठ को तर्क करके मौलाना मुर्तज़ा हुसैन की ख़िदमत में दोबारा हाज़िर हो गए और उन्हीं से क़सब-ए-फ़ैज़ करने लगे।
जब मौलाना मुर्तज़ा हुसैन बीमार हुए तो आपने उनसे इजाज़त लेकर लखनऊ जाने का इरादा किया और सन 1982 ईस्वी में लखनऊ तशरीफ़ ले गए। आपने लखनऊ में मदरसा नाज़मिया में दाख़िल होने के बाद अपने तालीमी सफर को कामयाब बनाया।
आपने जय्यद असातेज़ा से क़सब-ए-फ़ैज़ किया जिनमें आयतुल्लाह यूसुफ हुसैन अमरोहवी, मौलाना मुर्तज़ा हुसैन अमरोहवी, मौलाना मज़ाहिर हुसैन, मुफ़्ती-ए-आज़म सय्यद अहमद अली, मौलाना सैय्यद मोहम्मद अमीद आदि के अस्मा क़ाबिल-ए-जिक्र हैं।
सन 1932 ईस्वी में मदरसा नाज़मिया से तालीम मुकम्मल करने के बाद अपने वतन अमरोहा तशरीफ़ ले आए। अमरोहा के मोमिनीन ने इमाम-ए-जुमा व जमाअत की ज़िम्मेदारी आपके सुपुर्द कर दी, जिसके बाद आप इस ज़िम्मेदारी की अंजामदेही में मशग़ूल हो गए।
आयतुल्लाह मोह्सेनुल-हकीम ने आपकी इल्मी सलाहियत को देखते हुए मौसूफ़ को इजाजज़ा-ए-रिवायत अता किया और हिन्दुस्तान में अपना वकील क़रार दिया।
मौलाना मुहम्मद इबादत कलीम सन 1947 से 1948 तक सैय्यदुल-मदारिस अमरोहा में प्रिंसिपल के ओहदे पर फ़ाइज़ रहे।
आप दरस-व-तद्रीस को दूसरे अमूर से ज़्यादा पसंद फरमाते थे और अपने शाग़िर्दों को नए-नए और मुख़्तलिफ़ ज़ावीयों से समझाने की कोशिश करते थे। आपके शाग़िर्दों में डॉ. मौलाना सैय्यद मोहम्मद सियादत नक़वी, मौलाना मोहम्मद शाकिर “उस्ताद मदरसा नाज़मिया लखनऊ”, मौलाना निसार अहमद जैनपुरी, डॉ. सैय्यद हसनैन अख़्तर शाहवार, सैय्यद हुसैन असगर जौन एलिया आदि सर्फ़रहस्त हैं।
मौलाना कलीम फ़िक़्ह-ओ-उसूल के अलावा दीगर उलूम में भी माहिर थे, जिनमें इल्म-ए-जफ़र-व-रमल, ख़ुशनवीसी, तारीख-गोई, इल्म-ए-अंसाब, अरबी अदब आदि के नाम लिये जा सकते हैं।
आप एक बेहतरीन शायर भी थे; कलीम तख़ल्लुस करते थे और इस फ़न में बहुत से शाग़िर्दों की तरबीयत की, जिनमें ग़मगीन अमरोहवी, एहसान अमरोहवी, डॉ. शफ़ाअत फहीम, शमिम हैदर, इमाम अली ख़ान नाज़िश और डॉ. अज़ीम अमरोहवी आदि के अस्मा क़ाबिल-ए-जिक्र हैं।
मौलाना इबादत ना सिर्फ़ यह कि दरस-व-तद्रीस और शेर-गोई में माहिर थे, बल्कि मैदान-ए-तहक़ीक़-ओ-तसनिफ़ के भी शहसवार थे। आपने मुख़्तलिफ़ मोज़ूआत पर क़लम उठाया, जिनमें से “रिसाला सिराजुल-फ़क़ीह”, “अल-इस्तिफ़सार फी नजासत अल-मुश्रिक़ीन वल-क़ुफ्फ़ार”, “मक़ाम-ए-शब्बीरी”, “मारिफ़त-ए-इमामत व अकीदत-ए-रजअत”, “रूमूज़ व असरार” और “रिसाला अल-कोहल” के नाम क़ाबिल-ए-जिक्र हैं। इसके अलावा अरबी और उर्दू में बहुत से मक़ालात तहरीर फरमाए जो मंजर-ए-आम पर न आ सके।
मौलाना इबादत कलीम के शायरी मज़मूआत में “तजल्लियात-ए-कलीम”, “नात-ओ-मनक़बत” और “सद ग़ज़ल” जैसे मज़मू जो आत आपके पोते जनाब सैय्यद अहसान सरोश की काविशो से छपकर मंजर-ए-आम पर आ चुके हैं।
मौलाना कलीम की शादी मौलाना नसीम हसन अमरोहवी की साहिबज़ादी से हुई, जिनसे अल्लाह ने नौ फ़र्ज़ंद अता फरमाए; इनमें से दो बच्चे बचपन ही में फ़ौत हो गए। बाक़ीमांदा तीन साहिबज़ादियाँ हैं और बेटों में डॉ. मौलाना सैय्यद मुहम्मद सियादत, डॉ. मुहम्मद शफ़ाअत, मुहम्मद मुबारक और हसनैन अख़्तर के अस्मा क़ाबिल-ए-जिक्र हैं।
आख़िरकार यह इल्म-ओ-अदब का आफ़ताब 22 अक्टूबर 1989 में ग़ुरूब हो गया और मजमे की हज़ार आहो-बुका के हमराह अज़ाख़ाना महल्ला शफ़ाअत पौता अमरोहा में सुपुर्द-ए-ख़ाक़ कर दिया गया।
माखूज़ अज़: मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-10 पेज-176 दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2024ईस्वी।
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