हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा मकारिम शिराज़ी ने फ़रमाया कि वहाबी लोग इस्लामी मसलों, ख़ास तौर पर तौहीद और शिर्क के तजज़िए की इल्मी सलाहियत ना रखने की वजह से शदीद उलझन का शिकार हैं और जहाँ भी इन्हें मौका मिलता है, ये विरोध करने लगते हैं। इसी वजह से ये ज़ियारत और शफ़ाअत जैसे धार्मिक कामों को भी निशाना बनाते हैं।
उन्होंने अपने बयान में यह भी साफ़ किया कि वहाबी लोग तौहीद और शिर्क को ग़लत ढंग से समझने की वजह से ज़ियारत, शफ़ाअत माँगना, क़ब्रों पर इमारतें बनाना और दूसरे धार्मिक कामों को शरियत के ख़िलाफ़ बताकर इन्हें शिर्क और बिदअत से जोड़ते हैं।
इसी सोच के तहत 1344 हिजरी में जब वहाबियों ने हिजाज़ (सऊदी अरब का इलाक़ा) पर क़ब्ज़ा किया तो उन्होंने तमाम इस्लामी ऐतिहासिक जगहों को शिर्क और बिदअत के नाम पर गिरा दिया।
आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी ने आगे कहा कि इस्लामी दुनिया में मिस्र, हिन्दुस्तान, अल्जीरिया और इंडोनेशिया जैसे कई देशों में नबियों और धर्मगुरुओं की मज़ारों को बहुत इज़्ज़त दी जाती है। लेकिन हिजाज़ में ऐसा नहीं है, क्योंकि वहाबी लोग इस्लामी बातों का सही विश्लेषण करने में असमर्थ हैं।
उन्होंने इस बात पर अफ़सोस जताया कि हिजाज़, ख़ासकर मक्का और मदीना, तंग नज़र और कट्टर सोच वाले लोगों के हाथ लग जाने की वजह से अपने इस्लामी सांस्कृतिक विरासत से महरूम हो चुका है।
बक़ी का क़ब्रिस्तान, जो कभी इस्लाम की कई अहम यादों का गवाह था, आज वीरान और बदसूरत जगह बन चुका है, जबकि उसके आस-पास आलीशान होटल और बड़ी-बड़ी इमारतें बना दी गई हैं।
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