हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,सरकार ने वक़्फ़ की जायदाद को वक़्फ़ करने वाले की मंशा के बजाए अपनी मनमानी से चलाने और वक़्फ़ जायदाद पर क़ब्ज़ा करने के लिए एक बिल पास कर दिया, जिसकी मुख़ालिफ़त पार्लियामेंट से लेकर सड़कों तक हो रही है,पूरी क़ौम इस बिल से परेशान है और बिल को रद्द करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया जा रहा है।
मगर ऐसे खराब वक़्त में भी कुछ नाम निहाद क़ौम के ग़द्दार मौलवी टीवी चैनलों पर दिन रात बकवास कर के बिल की हिमायत कर रहे हैं। ऐसे में ज़रूरी हो गया है कि क़ौम दीन का लिबास पहने हुए उलमा ए सू से धोखा न खाए, बल्कि क़ुरआन और हदीस की रौशनी में उलमा ए हक़ और उलमा ए सू का फर्क समझ ले।
अब वक़्त आ गया है कि असली आलिम सामने आएं और क़ुरआन और हदीस ने जो उलमाए हक़ और उलमाए सू का जो फ़र्क़ बताया है उन आयात और हदीसों को अवाम के सामने पेश कर के उम्मत को गुमराह करने वाले उलमा से बचाएं। आइए सबसे पहले जानें कि वक़्फ़ क्या होता है।
वक़्फ़: अल्लाह की अमानत वक़्फ़ दरअसल अल्लाह की मिल्कियत (मालिकी) होती है। जब कोई शख़्स किसी जायदाद या माल को अल्लाह की रज़ा के लिए वक़्फ़ कर देता है तो वो हमेशा के लिए अल्लाह का माल बन जाता है।
वाक़िफ़ (वक़्फ़ करने वाले) की नीयत ही इसकी बुनियाद होती है वो जिस मक़सद के लिए वक़्फ़ करे उसी मक़सद के लिए उसका इस्तेमाल लाज़िमी होता है। न कोई हाकिम, न कोई दफ्तर और न ही कोई आलिम अपनी मर्ज़ी या मतलब के लिए वक़्फ़ की जायदाद का इस्तेमाल कर सकता है।
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:जब इंसान मर जाता है तो उसका अमल ख़त्म हो जाता है, सिवाए तीन चीज़ों के सदक़ा-ए-जारीया, ऐसा इल्म जिससे लोग फ़ायदा उठाएं और नेक औलाद जो उसके लिए दुआ करे।(सहीह मुस्लिम)
वक़्फ़ सदक़ा-ए-जारीया है और इसमें बेईमानी, चोरी, या मनमानी करना सिर्फ़ गुनाह-ए-कबीरा ही नहीं, बल्कि ख़ियानत-ए-ख़ुदा व रसूल है।आज का फ़ितना: वक़्फ़ पर क़ब्ज़ा बदक़िस्मती से आज हुकूमती सरपरस्ती में वक़्फ़ की जायदादें बर्बाद की जा रही हैं, बेची जा रही हैं, या ज़ाती मतलब के लिए इस्तेमाल हो रही हैं।
अफ़सोस की बात है कि गुमराह आलिम (उलमा-ए-सू) इस पर खामोश हैं। कुछ तो दरबारी बनकर टीवी पर इस अमल की खुल्लमखुल्ला हिमायत कर रहे हैं।जबकि उलमा और मुसलमानों की अक्सरियत खुलकर इस बिल की मुख़ालिफ़त कर रही है और हक़ बात कह रही है, चाहे उनकी जान, माल और ओहदा खतरे में पड़ जाए।
उलमा की दो किस्में क़ुरआन व हदीस की रौशनी में
1. उलमा-ए-हक़/वो लोग जो दीन की गहरी समझ (तफ़क़्क़ुह फ़िद्दीन) रखते हैं।
अल्लाह और रसूल की बात को अपनी ख्वाहिश, दुनिया और हाकिम की मर्ज़ी पर तरजीह देते हैं।खुद भी शरीअत पर अमल करते हैं और दूसरों को भी इसकी दावत देते हैं।
वक़्फ़, उम्मत और दीन की अमानत की हिफ़ाज़त करते हैं।क़ुरआन से पूछते हैं कि आलिम कौन है और हम क़ुरआन की रौशनी में किसे आलिम कहें।अल्लाह तआला सूरह तौबा आयत 122 में फ़रमाता है,और मुसलमानों की यह शान नहीं कि वो सब के सब (इल्म हासिल करने के लिए) निकल खड़े हों। तो क्यों न हर गिरोह में से कुछ लोग निकलें ताकि दीन की गहरी समझ (तफक्कुह) हासिल करें, और (फिर लौट कर) अपनी क़ौम को डराएं ताकि वो (अल्लाह के अज़ाब से) बच सकें।
यानी आलिम बनने के लिए दीन की गहरी समझ (तफक्कुह फ़िद्दीन) ज़रूरी है।सिर्फ़ लिबास, दाढ़ी, अमामा या मदरसे की डिग्री काफी नहीं दीन की सही समझ, खालिस नीयत और तक़्वा लाज़मी है।
हज़रत रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:जिसे अल्लाह भलाई देना चाहता है उसे दीन की समझ (तफक्कुह) देता है।(सहीह बुख़ारी 71)
2. उलमा ए सू (गुमराह उलमा)वो लोग जो दरबार और दुनिया के ग़ुलाम होते हैं।इल्म का लिबास पहनते हैं, मगर अल्लाह व रसूल की नहीं सुनते।वक़्फ़ की खियानत, हाकिमों की खुशामद और दीन को बेचने में लगे रहते हैं।फ़तवे अपनी मर्ज़ी और हाकिमों की हिदायत के मुताबिक़ देते हैं।
इमाम अली (अ) ने फ़रमाया:इल्म इल्म तब है जब उस पर अमल हो और इल्म बग़ैर अमल बोझ है।(नहजुल बलाग़ा)
गुमराह उलमा सिर्फ़ इल्म का बोझ उठाए फिरते हैं और दीन को दुनिया के बदले बेच देते हैं
उलमाए हक़ की असली पहचान:क़ुरआन व हदीस के मुताबिक़ फ़तवा दें।हर हाल में अल्लाह और रसूल की इताअत करें।
हाकिम और माल की मुहब्बत से पाक हों।दीन की अमानत (वक़्फ़, मस्जिदें, मदरसे, बैतुलमाल) की हिफ़ाज़त करें।उम्मत को अल्लाह के अज़ाब से डराएं।ज़ालिम हाकिम और फ़ितना परस्तों के खिलाफ़ खुलकर बोलें।
आज के दौर में/हक़ के उलमा की पहचान क़ुरआन, सुन्नत और दीन की गहरी समझ (तफक्कुह) से है।गुमराह उलमा की पहचान दरबारी फतवे, वक़्फ़ की खियानत, हाकिम परस्ती और दीन की मनमानी तावील से है।
लोगों पर लाज़मी है कि वो हक़ के उलमा का साथ दें और गुमराह उलमा से बचें, क्योंकि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया,आख़िर ज़माने में कुछ उलमा होंगे जो आसमान के नीचे सबसे बुरे होंगे उनके फितने उन्हीं पर लौट आएंगे।(मुस्नद अहमद)
इस्लाम में इल्म और उलमा की हैसियतइस्लाम में उलमा की हैसियत रीड की हड्डी जैसी है। जिस तरह जिस्म अपनी मज़बूती और सीधाई के लिए रीड की हड्डी का मोहताज है, उसी तरह उम्मत-ए-मुस्लिमां की रूहानी और फिक्री रहनुमाई के लिए सच्चे उलमा की ज़रूरत है।
क़ुरआन, रसूलुल्लाह ﷺ और अहलेबैत (अ) ने जहां इल्म की अज़मत बताई है, वहीं उलमा-ए-सू यानी बदअख़लाक़, दुनियादार और ज़ालिमों के दरबारी उलमा से सख़्ती से बचने का हुक्म भी दिया है।
क़ुरआन में आलिम की पहचान,क़ुरआन करीम कहता है,फ-लौला नफरा मिन कुल्लि फिरक़तिं मिन्हुम ताइफ़तुल लियता फक़्क़हु फ़िद्दीन।
(सूरह तौबा 9:122)यानी हक़ीक़ी आलिम वो है जो दीन की गहरी समझ (तफक्कुह) रखे, सिर्फ़ रटने वाला या ज़ाहिरी इल्म वाला नहीं।
फिर फ़रमाया,इन्नमा यख्शाल्लाह मिन इबादिहिल उलमा।(सूरह फ़ातर 35:28)यानी वही आलिम है जिसके दिल में अल्लाह का ख़ौफ और तक़्वा हो।
और फ़रमाया,वला तश्तरु बिआयाती समनं क़लीला।(सूरह बक़रह 2:41)
यानी जो लोग अल्लाह की आयतों को दुनिया के थोड़े से फ़ायदे के लिए बेच डालें, वो बदतर लोग हैं।
रसूलुल्लाह ﷺ और अहलेबैत (अ) की तालीमात
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:मेरी उम्मत पर सबसे बड़ा फितना उलमा-ए-सू हैं।(कंज़ुल उम्माल)
हक़ बात कहने वाले उलमा मेरी उम्मत के सबसे बेहतरीन लोग हैं।इमाम अली (अ.स.) फ़रमाते हैं,आलिम वही है जो अपने इल्म पर अमल करे और अपने नफ़्स की इस्लाह करे।(मिज़ानुल हिक्मा)
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं,जो दीन में तफक्कुह न रखे, तक़्वा न रखे और अपने नफ़्स की इस्लाह न करे, वो आलिम नहीं, चाहे खुद को आलिम कहे।(मिज़ानुल हिक्मा)गुमराह उलमा की पहचान और अंजाम उलमाए सू वो हैं जो,
दीन को दुनिया के लिए बेचते हैं।
ज़ालिमों के दरबारों की ज़ीनत बनते हैं।झूठे फतवे और दुनियापरस्ती से दीन का चेहरा बिगाड़ते हैं।माल-दौलत और शोहरत की लालच में अवाम को गुमराह करते हैं।रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया,क़ियामत के दिन सबसे पहले उलमा-ए-सू को अज़ाब दिया जाएगा।(बिहारुल अनवार)उनकी ज़बानें खींच ली जाएंगी और उन पर आग बरसाई जाएगी।(कंज़ुल उम्माल)
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं:गुमराह उलमा से दूर रहो ये फितने के अलम्बरदार और गुमराही के रहबर हैं। इनके साथ उठना-बैठना ईमान को कमज़ोर और दिल को सख़्त करता है।(मिज़ानुल हिक्मा)
इस्लाम की असल रूह तब ही बाकी रह सकती है जब उम्मत सच्चे और अमल करने वाले उलमा की पहचान करे, और गुमराह उलमा से बचे।क़ुरआन, रसूलुल्लाह ﷺ और अहलेबैत (अ) की तालीमात की रौशनी में आलिम वही है जो:
दीन की गहरी समझ रखे।ख़ौफ़-ए-ख़ुदा और तक़्वा रखे।हक़ बोलने वाला हो और ज़ालिमों का मुख़ालिफ़ हो।अपने इल्म पर अमल करे और दूसरों को भी दावत दे।
उलमाए सू की पहचान,दरबारी और दुनियादार होते हैं।फितना परस्त और ज़ालिमों के मददगार होते हैं।दीन के नाम पर दुनिया कमाते हैं।उम्मत को गुमराह करते हैं।क़ुरआन और हदीस का तक़ाज़ा है कि हम गुमराह उलमा से होशियार रहें, और हक़ के उलमा की रहनुमाई में असली दीन पर चलें।
(शौकत भारती)
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