हौज़ा न्यूज़ एजेंसी|
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल रहमान अल रहीम
وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكَ وَرَحْمَتُهُ لَهَمَّتْ طَائِفَةٌ مِنْهُمْ أَنْ يُضِلُّوكَ وَمَا يُضِلُّونَ إِلَّا أَنْفُسَهُمْ ۖ وَمَا يَضُرُّونَكَ مِنْ شَيْءٍ ۚ وَأَنْزَلَ اللَّهُ عَلَيْكَ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَعَلَّمَكَ مَا لَمْ تَكُنْ تَعْلَمُ ۚ وَكَانَ فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكَ عَظِيمًا वलौला फ़ज़्लुल्लाहे अलैका व रहमतोहू लहम्मत ताऐफ़तुम मिन्हुम अन योज़िल्लूका वमा योज़िल्लूना इल्ला अन्फ़ोसहुम वमा यज़ुर्रूनका मिन शैइन व अनज़लल्लाहो अलैकल किताबा वल हिकमता व अल्लमका मालम तकुन तअलम व काना फ़ज़लुल्लाहे अलैका अज़ीमा (नेसा 113)
अनुवाद: अगर अल्लाह की फ़ज़ल और तुम्हारे रब की रहमत न होती तो उनमें से एक गिरोह तुम्हें गुमराह करने की नीयत रखता और वे अपने सिवा किसी को गुमराह नहीं कर सकते और न वे तुम्हें कुछ नुकसान पहुँचा सकते और अल्लाह ने तुम्हें गुमराह करने की नीयत कर दी है। और उसने तुम्हें किताब दी है और उसने तत्वदर्शिता अवतरित की और तुम्हें वह सब सिखाया जो तुम नहीं जानते थे और अल्लाह ने तुमपर बड़ा उपकार किया है।
विषय:
रसूलुल्लाह (स) को अल्लाह की ओर से किताब, हिकमत, ज्ञान और महान अनुग्रह प्राप्त हुआ है।
पृष्ठभूमि:
यह आयत मदनी काल के दौरान उतरी, जब मुनाफ़िक़ों और कुछ यहूदी समूहों ने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) को नुकसान पहुँचाने का प्रयास किया। अल्लाह तआला ने उनकी साजिशों को नाकाम कर दिया और अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को किताब और हिकमत से नवाजा।
तफ़सीर:
1. [और यदि अल्लाह की कृपा न होती] यदि लोग तुम (अ.स.) को अपनी इच्छाओं के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य करें और तुम गलत निर्णय ले लो, तो भी उनके प्रयास सफल नहीं होंगे और वे तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेंगे। इस आयत में अल्लाह तआला ने इसके दो कारण बताये हैं:
मैं। अल्लाह ने उनकी ओर किताब और तत्वदर्शिता अवतरित की।
द्वितीय. उसने उन्हें ज्ञान दिया।
2. [और अल्लाह ने तुम पर किताब उतारी है:] यह आयत दर्शाती है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास किताब और अल्लाह की ओर से ज्ञान के अतिरिक्त शिक्षा के विशेष साधन भी थे।
3. [और उसने तुम्हें वह सिखाया जो तुम नहीं जानते थे:] जिसके कारण अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को ज्ञान, समझ और सत्यों के अवतरण का ऐसा स्तर प्राप्त हुआ कि अचूकता के विपरीत कोई गलती करने की कोई संभावना नहीं है। इसलिए, ज्ञान और विश्वास का परिणाम अचूकता है। हालाँकि, ज्ञान और निश्चितता प्राप्त करने के बाद, व्यक्ति को पवित्रता बनाए रखने के लिए मजबूर नहीं किया जाता है; बल्कि, दृढ़ संकल्प, आत्मा की पवित्रता और ईश्वर के प्रति प्रेम के कारण व्यक्ति अपनी स्वतंत्र इच्छा से पवित्र रहता है। इस कारण, निर्दोष की निर्दोषता सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
4. [और यह अल्लाह की कृपा थी:] इस वाक्य से पता चलता है कि उपरोक्त बातों के अलावा, अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर एक कृपा भी थी।
महत्पूर्ण बिंदु:
1. अल्लाह की कृपा और दया हमें हर प्रलोभन से बचाती है।
2. जो लोग अल्लाह के मार्ग में बाधा उत्पन्न करते हैं, वे केवल अपना ही नुकसान करते हैं।
3. क़ुरआन और ज्ञान मार्गदर्शन के सर्वोत्तम स्रोत हैं।
4. अल्लाह तआला ने अपने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को विशेष ज्ञान प्रदान किया।
परिणाम:
यह आयत हमें बताती है कि रसूलुल्लाह (स) को अल्लाह से किताब, हिकमत, ज्ञान और महान अनुग्रह प्राप्त हुआ है। और जो लोग अल्लाह के मार्ग में बाधा डालते हैं, वे केवल अपने आप को हानि पहुँचाते हैं। क़ुरआन और बुद्धि मार्गदर्शन का सर्वोत्तम साधन हैं, और अल्लाह की कृपा हर कठिनाई में सहायक है।
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सूर ए नेसा की तफसीर
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