हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, यह वो दिन हैं जब कायनात के हर ज़र्रे पर ग़म फैला हुआ है, जब ज़मीन और आसमान बी बी ज़हरा की मज़लूमियत पर आंसू बहा रहे हैं। यह वे दिन हैं जब रसूलुल्लाह स.अ.व. की लख़्ते जिगर, जिन्हें अपने बाबा की मोहब्बत और उम्मत की रहमत का हक़ था, ज़ुल्म और सितम का सामना करते हुए इस दुनिया से रुख़सत हो गईं।
बी बी ज़हरा की शहादत सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि उम्मत के किरदार का आइना है। वह बी बी जिन्होंने अपने घर को क़ुरआन और सीरत का अमली नमूना बनाया, जिन्होंने सादगी, इजज़्ज़ और कुरबानी का आला दर्स दिया, आज उनकी याद में दिल ज़ख्मी हैं। बी बी का जनाज़ा रात के अंधेरे में उठा, और वह मां जिनकी दुआएं उम्मत के लिए रहमत थीं, उनके पहलू को ज़ख्मी करके ज़मीन में छुपा दिया गया।
यह दिन हमसे सवाल करते हैं: क्या हमने बी बी ज़हरा के नक़्शे क़दम पर चलने की कोशिश की? क्या हमने अपने दिल को उस मोहब्बत और कुरबानी के जज़्बे से सजाया जो बी बी की ज़िंदगी का ख़ास था?
बी बी की शहादत का ग़म हमारे लिए एक मौक़ा है कि हम अपनी ज़िंदगियों को उनकी तालीमात के मुताबिक़ संवारें। उनकी मज़लूमी का ज़िक्र दिलों को नर्म करता है और हमें याद दिलाता है कि हकीकी 'ज़मत' ज़ाहिरी शान और शोहरत में नहीं, बल्कि कुरबानी, सच्चाई और हक़ के साथ खड़े होने में है।
आइए इन दिनों में बी बी ज़हरा के ग़म में शरीक हों, उनके मज़लूमी के वाकेआत को याद करें, और अपने दिलों को उनके नूरानी पैग़ाम से नूरानी करें। अल्लाह से बी बी दो आलम के वसीले से दुआ करें कि वह हमारी इबादतें क़ुबूल फ़र्माए और हमें उनके रास्ते पर चलने की तौफ़ीक़ अता फ़र्माए।
या अल्लाह ! बीबी के ग़म में अश्क बहाने वालों को अपनी शफ़ा'त से महरूम न फ़रमा!
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