मंगलवार 13 मई 2025 - 14:13
मरने वालों को नसीहत और इबरत का ज़रिया बनाओ। हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन ग़ुदरूज़ी

हौज़ा / हौज़ा-ए-इल्मिया-ए-ख़्वाहारान सूबा मरकज़ी के निदेशक हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन ग़ुदरूज़ी ने कहा कि इंसान को चाहिए कि वह मरने वालों से इबरत ले, ना कि उन पर फख्र करे। उन्होंने ग़फ़लत को इंसान की बदबख़्ती और भटकाव की जड़ क़रार दिया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,हौज़ा-ए-इल्मिया-ए-ख़्वाहारान सूबा मरकज़ी के निदेशक हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन ग़ुदरूज़ी ने कहा कि इंसान को चाहिए कि वह मरने वालों से इबरत ले ना कि उन पर फख्र करे। उन्होंने ग़फ़लत को इंसान की बदबख़्ती और भटकाव की जड़ क़रार दिया।

यह बात उन्होंने "मिन्हाज" नामी सिलसिलेवार फिक्री (बौद्धिक) नशिस्त की दूसरी बैठक में कही, जो हौज़ा की छात्राओं के लिए आयोजित की गई थी और जो ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों रूपों में हुई।

उन्होंने कहा,कुछ लोग अपने मरहूमीन और कब्रों की तादाद पर गर्व करते हैं, जबकि यह सोच सरासर जाहिलाना है। हमें मरे हुए लोगों से सबक लेना चाहिए ना कि उन पर फख्र करना चाहिए।

उन्होंने आगे कहा,हम ज़िंदा लोग रोज़ कब्रिस्तानों से गुज़रते हैं, मरहूमों की छोड़ी हुई विरासतों से फ़ायदा उठाते हैं तो क्या हमें उनसे इबरत नहीं लेनी चाहिए?

ग़ुदरज़ी ने ग़फ़लत को इंसान की रूहानी तबाही की असली वजह बताया उन्होंने कहा,ग़फ़लत हर उस हालत को कहा जाता है जिसमें इंसान अपने वक़्त, हालात और ख़ुदा के पैग़ाम से बेखबर हो जाए ग़फ़लत इंसान को घमंड, खुदपसंदी और गुमराही की तरफ ले जाती है और आख़िरकार उसे बदबख़्ती के दलदल में धकेल देती है।

उन्होंने बताया कि क़ुरआन मजीद में ग़फ़लत का ज़िक्र 35 बार आया है और इसका उलट "ज़िक्र" है।जो इंसान अल्लाह के ज़िक्र से ग़ाफ़िल हो जाता है, वह धीरे-धीरे जानवरों से भी नीचे गिर जाता है।

उन्होंने नहजुल बलाग़ा के एक मशहूर ख़ुत्बे का ज़िक्र किया जिसे इब्ने अबी अल-हदीद ने फसाहत व बलाग़त का शहकार कहा है।
उन्होंने कहा,मुआविया का यह क़ौल कि पूरे अरब में हज़रत अली (अ.स.) जैसा फसीह व बलीग़ कोई नहीं इसी ख़ुत्बे की सच्चाई को ज़ाहिर करता है।

अपनी बात को समेटते हुए उन्होंने कहा,क्या हमें जहन्नम (नरक) के लिए पैदा किया गया है? हरगिज़ नहीं बल्कि इंसान की तख़्लीक (रचना) इबादत और कमाल (उत्कृष्टता) के लिए हुई है।

जैसे एक बढ़ई लकड़ी को तराशता है अगर सही निकले तो उससे दरवाज़ा या खिड़की बनाता है, और अगर खराब हो तो जला देता है वैसे ही इंसान के अंजाम का दारोमदार उसके आमाल (कर्मों) पर है।

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