हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,आयतुल्लाह महमूद रजबी ने तीसरे मुहर्रम को जामिया मदर्रेसीन क़ुम में अपने खिताब में कहा कि हज़रत इमाम हुसैन अ.स. का आंदोलन "सुन्नत ए इलाही" का हिस्सा है, जो हमेशा से सत्य और असत्य के बीच चलने वाले संघर्ष का प्रतीक रहा है।
आयतुल्लाह रजबी ने शैतानी वसवसा और पश्चिमी-पूर्वी ताकतों पर निर्भरता को कुरान की शिक्षाओं के विरुद्ध बताया उन्होंने कहा,अल्लाह कहता है 'وَلا تَرْكَنُوا إِلَى الَّذِينَ ظَلَمُوا' (सूरह हूद: 113), यानी ज़ालिमों की ओर झुकाव मत रखो।
आयतुल्लाह रजबी ने समाज में गुमराही का एक बड़ा कारण विलायत-ए-फकीह से ग़फ़लत को बताया और कहा,जो व्यक्ति विलायत से दूरी बनाएगा, वह कभी भी निजात नहीं पा सकता।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ग़ैबत के दौर में भी हमें उसी तरह नेता की उलेमा का पालन करना चाहिए, जैसे इमाम के ज़माने में किया जाता था।यह आज्ञापालन सिर्फ़ दिखावटी नहीं, बल्कि दिल और दिमाग से होना चाहिए।
उन्होंने शैतान की गुमराह करने वाली चालों की ओर इशारा करते हुए कहा कि दुश्मन कभी आर्थिक दबाव, कभी युद्ध और कभी बौद्धिक भ्रम के ज़रिए समाज को गुमराह करने की कोशिश करता है।
आयतुल्लाह रजबी ने ताकीद की कि तक़्वा मुहासिबा-ए-नफ्स और धर्म की समझ ही इंसान को गुमराही से बचा सकती है अगर इंसान ग़फ़लत में पड़ जाए, तो शैतान धीरे-धीरे उसे सिरात-ए-मुस्तक़ीम से भटका देता है, जैसा कि कुछ पूर्व विद्वानों के साथ हुआ।
उन्होंने विलायत-ए-फकीह को अल्लाह की नेमत बताते हुए कहा कि हमें इस नेमत का रोज़ शुक्र अदा करना चाहिए, क्योंकि यही हमारी विचारधारा और व्यवहारिक सुरक्षा की गारंटी है।
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