हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, तेहरान के जुमआ नमाज़ के ख़तिब हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन काज़िम सिद्दीकी ने अपने ख़ुत्बे में कहा,इंसानियत की नजात मुक्ति का पहला और आख़िरी नुस्ख़ा तकवा है।
उन्होंने सूरा-ए-फातिहा की आयात की तिलावत के दौरान ज़िंदगी के रास्ते में हिदायत मार्गदर्शन और सही नमूनों की अहमियत की तरफ इशारा करते हुए कहा,ऐ ख़ुदा! मेरा हाथ थाम ले, मुझे हिदायत दे और जिस तरह तूने हिदायत की है उसी तरह मुझे सिरात-ए-मुस्तकीम पर कायम रख। वह लोग जिन पर ख़ुदा की नेमतों की दस्तरख़्वान वसीअ की गई है,इस रास्ते के राहरवों के लिए नमूना हैं।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सिद्दीकी ने शहीदों की ख़ासियतों का ज़िक्र करते हुए कहा, अंबिया का नूर सिद्दीकीन (सच्चे लोगों) में मुनक्किस (परावर्तित) होता है और शहीद ख़ुदा का आईना हैं। शहीद का मतलब है नमूना, गवाह और वह जो हिजाबों को पार कर गया हो।
जब हमारा जिस्म राह-ए-ख़ुदा में खून से आलूदा होता है, तो इंसान को मकाम-ए-फ़ना हासिल होता है, और 'फ़ना बिल्लाह' ही 'बक़ा बिल्लाह' (अल्लाह के साथ स्थायी होना) है।
तेहरान के जुमआ नमाज़ के ख़तिब ने अपने ख़ुत्बे में मकाम अस-साबिक़ून की तरफ इशारा करते हुए कहा,असहाब-ए-यमीन (दाएं हाथ वाले) से बुलंदतर, 'अस-साबिक़ून' हैं, और यह लोग क़ुर्ब-ए-इलाही (ईश्वर की निकटता) के मकाम के हामिल हैं।
उन्होंने आख़िर में इत्तिफ़ाक़ और इत्तिहाद एकता की अहमियत बयान करते हुए कहा,आपको मुत्तहिद (एकजुट) रहना चाहिए और वहदत (एकता) को क़ायम रखना चाहिए हर तफ़रका (फूट) की आवाज़ को दुश्मन की आवाज़ समझना चाहिए।
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