हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,मजलिस-ए-खुबरगान-ए-रहबरी के सदस्य आयतुल्लाह अब्बास काबी ने इस्लामी क्रांति की रणनीतिक अहमियत की तरफ इशारा करते हुए कहा कि हौज़ा-ए-इल्मिया की इस क्रांति की सफलता बेनज़ीर भूमिका रही है।
उन्होंने कहा,इमाम खुमैनी (रह) ने इस्लामी हुकूमत की स्थापना और ‘हयात-ए-तय्यबा’ की प्राप्ति के लिए इस क्रांति की योजना बनाई थी। आज, 46 साल बीत जाने के बाद, इस्लामी क्रांति ने पूर्व और पश्चिम की शक्तियों के संतुलन को बदल कर रख दिया है और यह अब एक क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय शक्ति बन चुकी है।
उन्होंने आगे कहा,यह क्रांति इमाम खुमैनी (रह) की नेतृत्व में और सांस्कृतिक इज्तेहाद की बुनियाद पर, सिर्फ अमेरिका की बादशाहत को चुनौती नहीं देती, बल्कि हौज़ा-ए-इल्मिया को इस्लामी सभ्यता निर्माण की प्रक्रिया में एक सक्रिय और गहन भूमिका अदा करने वाला तत्व बना चुकी है।
मजलिस-ए-खुबरगान के इस सदस्य ने कहा,इस्लामी क्रांति को अपनी सभ्यतागत आंदोलन को मज़बूत और आगे बढ़ाने के लिए आज के दौर की ज़रूरतों के अनुसार गहराई और सांस्कृतिक दृष्टि की आवश्यकता है, और इस मैदान में हौज़ा-ए-इल्मिया सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा हैं।
उन्होंने कहा,हौज़ा-ए-इल्मिया इस्लामी क्रांति की सांस्कृतिक गहराई को विभिन्न क्षेत्रों में उजागर और मज़बूत करने की काबिलियत रखते हैं।
आयतुल्लाह काबी ने हौज़ा-ए-इल्मिया की विभिन्न क्षमताओं की ओर इशारा करते हुए कहा,एक हौज़वी व्यक्ति न केवल एक धार्मिक विचारक और मरजअ बन सकता है, बल्कि वैज्ञानिक प्रशिक्षण के माध्यम से वह परमाणु विज्ञान और आधुनिक तकनीकों जैसे क्षेत्रों में भी विशेषज्ञ बन सकता है।
इस्लामी परंपराओं के अनुसार ज्ञान और उलेमा का दर्जा इतना ऊंचा है कि कहा गया है,मिदादुल-उलमा अफ़ज़ल मिन दमाउश-शोहदा’यानी उलेमा की कलम की स्याही शहीदों के खून से भी अफ़ज़ल मानी गई है।”
आपकी टिप्पणी