हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , मशहूर आरिफ़ और मरजा-ए-तकलीद हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा मोहम्मद तक़ी बहजत (र.अ.) हमेशा दीनी शुआर की तअज़ीम और अहले बैत (अ.स.) की याद को ज़िंदा रखने पर ज़ोर देते थे।
उन्होंने अहले तश्शुअ को एक नूरानी नसीहत करते हुए फ़रमाया,जब आप मजालिस-ए-अहले बैत (अ.स.) मुनअक़िद करें तो इन बुज़ुर्ग हस्तियों के फ़ज़ाइल, मनाकिब और उनकी बरतरीयों को बयान करें, और उनके मुक़ाबिल सच्चे जज़्बात और एहसासात का इज़हार करें।
अगर आपकी आँखों से आँसू न भी आएँ तो कम-से-कम चेहरे पर रोने की हालत पैदा करें, दिल को ग़म व हुज़्न में रखें और 'तबाकी' (यानी रोने की हालत इख़्तियार करन्) की कोशिश करें।
यानी इंसान अगर हक़ीक़ी तौर पर रो न भी सके तो कम-से-कम ग़मगीन हालत, अज्ज़ी और रक़्क़त की हालत पैदा करे, ताकि दिल नर्म हो और अहले बैत (अ.स.) के साथ रूहानी राब्ता क़ाइम हो सके।
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