मंगलवार 18 फ़रवरी 2025 - 14:59
जम्मू- कश्मीर के उलेमा की आयतुल्लाह आराफ़ी से मुलाक़ात

हौज़ा / ईरान के हौज़ा इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने जम्मू और कश्मीर के उलेमा से मुलाकात के दौरान कहा कि हौज़ा इल्मिया क़ुम इस्लामी क्रांति की वैचारिक और बौद्धिक बुनियाद प्रदान करने में केंद्रीय भूमिका निभा रहा है उन्होंने कहा कि यह हौज़ा न केवल इस्लामी क्रांति की स्थापना में प्रभावी रहा है बल्कि इसके वैश्विक प्रभाव को भी बढ़ा रहा है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार , ईरान के हौज़ा इल्मिया के प्रमुख, आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने जम्मू-कश्मीर के उलेमा से मुलाकात के दौरान कहा कि हौज़ा इल्मिया क़ुम इस्लामी क्रांति की वैचारिक और बौद्धिक नींव प्रदान करने में एक केंद्रीय भूमिका निभा रहा है उन्होंने कहा कि यह हौज़ा न केवल इस्लामी क्रांति की स्थापना में प्रभावी रहा है, बल्कि इसके वैश्विक प्रभाव को भी बढ़ा रहा है।

आयतुल्लाह आराफी ने उलेमा के एक प्रतिनिधिमंडल से बातचीत करते हुए कहा कि हौज़ा इल्मिया क़ुम की इतिहास को इस्लामी क्रांति से पहले और बाद के दो युगों में विभाजित किया जा सकता है।

उन्होंने बताया कि यह हौज़ा इमाम जाफर सादिक अ.स.के दौर से जुड़ा हुआ है और पिछले सौ वर्षों में इसने शिया फिक़्ह के आधार पर इस्लामी क्रांति और शासन की वैचारिक व बौद्धिक संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

उन्होंने आगे कहा कि इस्लामी क्रांति के बाद, क़ुम एक अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक और वैचारिक आंदोलन का केंद्र बन गया है, जिसका प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि इमाम खुमैनी (रह.) ने एक ऐसा अद्वितीय विचार प्रस्तुत किया, जिसने न केवल ईरान बल्कि पूरे विश्व में इस्लामी जागरूकता को बढ़ावा दिया।

आयतुल्लाह आराफी ने इस बात पर जोर दिया कि क़ुम में इस्लामी विज्ञानों का विस्तार किया गया है, जिसमें फिक़्ह, कलाम, दर्शन और आधुनिक इस्लामी अध्ययन शामिल हैं। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि हौज़ा इल्मिया क़ुम ने इस्लामी कानूनों और व्यवस्था को आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप ढालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसकी झलक ईरान के संविधान और इस्लामी कानूनों में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि इस्लामी क्रांति के बाद, इस्लामी शिक्षाओं और ज्ञान का दायरा दुनिया के 100 से अधिक देशों तक फैल चुका है, जबकि पहले यह कुछ गिने-चुने देशों तक ही सीमित था। इसके अलावा, महिलाओं के लिए इस्लामी शिक्षा में भी असाधारण प्रगति हुई है, जिसे इस्लामी इतिहास में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा सकता है।

आयतुल्लाह आराफी ने इस बात पर जोर दिया कि आधुनिक युग में इस्लामी ज्ञान को नई तकनीक के साथ समायोजित करना आवश्यक है, ताकि बदलते वैश्विक हालात के साथ तालमेल बनाए रखा जा सके। उन्होंने इमामिया उलेमा से आग्रह किया कि वे युवा पीढ़ी की बौद्धिक प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दें और अहले सुन्नत के बौद्धिक हलकों के साथ मजबूत संबंध स्थापित करें।

इस मुलाकात के दौरान जम्मू-कश्मीर के उलेमा के प्रतिनिधिमंडल ने अपने क्षेत्र में इस्लामी शिक्षाओं के प्रचार और विस्तार से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की।

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