हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हौज़ा-ए-इल्मिया ईरान के प्रमुख आयतुल्लाह आराफी ने हैयत-ए-ख़ादिमुर रज़ा क़ुम के सदस्यों से मुलाकात के दौरान क़ुम की धार्मिक और राष्ट्रीय पहचान तथा आशूरा के संदेश पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आशूरा इस्लामी इतिहास की एक अद्वितीय और अतुलनीय घटना है, जिसकी महानता तमाम युद्धों से महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा,अशूरा इस्लाम के इतिहास की एक बेजोड़ और अतुलनीय घटना है, जिसकी महानता बद्र, उहुद और खैबर जैसे ऐतिहासिक युद्धों से भी कहीं अधिक है।
उन्होंने अशूरा के दो मूल पहलुओं की व्याख्या की आस्था और ईमान का पहलू, जो इमामत और नबूवत के इतिहास में एक अनूठा स्थान रखता है।सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक पहलू, जिसने इस्लामी इतिहास की दिशा ही बदल दी।
आयतुल्लाह आराफ़ी के अनुसार, अशूरा सिर्फ़ हक़ और बातिल का युद्ध नहीं है, बल्कि यह ईश्वरीय रहस्यों से भरा हुआ एक आध्यात्मिक स्कूल है जो व्यक्ति जितना अधिक इसके क़रीब आता है, वह उतना ही अधिक इसकी बरकतों और रहमतों से लाभान्वित होता है।
उन्होंने धार्मिक संगठनों (अंजुमनों) की सेवाओं को इस आध्यात्मिक स्रोत के और नज़दीक बताया और कहा कि अशूरा ने ईरान की इज़्ज़त, स्वतंत्रता और इस्लामी क्रांति की नींव में मूल भूमिका निभाई है इस्लामी क्रांति दरअसल अशूरा ही का विस्तार है, जिसने अपना संदेश पूरी दुनिया तक पहुंचाया।
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि अशूरा की निरंतर पुनर्पाठ ज़रूरी है, ताकि आधुनिक युग की पीढ़ी की मानसिक और आध्यात्मिक ज़रूरतों का जवाब दिया जा सके अज़ादारी में नवाचार (नई शैली) की गुंजाइश है, बशर्ते कि बुनियादी सिद्धांतों से समझौता न किया जाए।
आयतुल्लाह आराफ़ी ने क़ुम शहर की ऐतिहासिक महानता और उसकी 1200 साल पुरानी धार्मिक विरासत की सराहना करते हुए कहा की क़ुम को धार्मिक और राष्ट्रीय पहचान का ध्वजवाहक बने रहना चाहिए, और यहां के लोगों में इस विशेषता का और अधिक गहरा एहसास और जागरूकता होनी चाहिए।
अंत में उन्होंने अफ्रीका में मुहर्रम के दौरान अपने प्रचार कार्यों का ज़िक्र करते हुए कहा कि अशूरा से 100 से अधिक पाठ (दर्स) प्राप्त किए, जो इस महान आध्यात्मिक स्कूल की गहराई को दर्शाते हैं।
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