शुक्रवार 17 अक्तूबर 2025 - 08:23
नई पीढ़ी का प्रशिक्षण अत्यंत महत्व रखता है / धार्मिक छात्रो मे आधुनिक दौर के चुनौतियों का मुकाबला करने की क्षमता पैदा करें

हौज़ा / हौज़ा ए इल्मिया के निदेशक आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने कहा: आज की दुनिया इस्लाम और इस्लामी इन्कलाब के पैग़ाम की ज़रूरतमंद है और हम जितना भी काम करें वह अभी भी नाकाफी है। यह सिर्फ़ एक सैद्धांतिक या प्रमाणिक आवश्यकता नहीं बल्कि एक वास्तविक मांग और उत्सुकता है, और यही हौज़ा ए इल्मिया क़ुम तथा ख़ास तौर से जामेअतुल मुस्तफ़ा की सबसे महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, हौज़ा इल्मिया ईरान के निदेशक आयतुल्लाह अली रज़ा इराफ़ी ने मुज्मतेअ अमीन क़ुम में आयोजित शिक्षकों के विशेष अधिवेशन में, हौज़ा इल्मिया क़ुम की स्थापना की सौवीं वर्षगांठ के अवसर पर, इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता के ऐतिहासिक संदेश की ओर इशारा करते हुए कहा: हौज़ा इल्मिया क़ुम की स्थापना की शताब्दी समारोह के अवसर पर सुप्रीम लीडर के संदेश के पहले संबोधित व्यक्ति स्वयं हौज़ा के प्रबंधक और शिक्षकों हैं।

उन्होंने कहा: हौज़ा इल्मिया को ऐतिहासिक चेतना की बहाली में पाँच अहम मोर्चों पर काम करना होगा —पश्चिमी सभ्यता का आलोचनात्मक अध्ययन, इस्लामी जगत का हालिया इतिहास, ईरान का 150 साल का इतिहास, हौज़ा ए इल्मिया और उलमा का इतिहास,  और इन्कलाब‑ए‑इस्लामी का इतिहास और महान संघर्ष।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने कहा: इन्कलाब‑ए‑इस्लामी केवल एक घटना नहीं बल्कि शिया इतिहास का चरम बिंदु है जिसने पूरे विश्व‑व्यवस्था की गणना और समीकरण को बदल दिया है।

नई पीढ़ी का प्रशिक्षण अत्यंत महत्व रखता है / धार्मिक छात्रो मे आधुनिक दौर के चुनौतियों का मुकाबला करने की क्षमता पैदा करें

उन्होंने आगे कहा: आज की दुनिया इस्लाम और इन्कलाब‑ए‑इस्लामी के पैग़ाम की कठोर आवश्यकता महसूस कर रही है। हम चाहे जितना भी काम करें वह काफी नहीं होगा। यह एक सच्ची और गहरी मांग है, और यही हौज़ा इल्मिया क़ुम तथा जामेअतुल मुस्तफ़ा की मौलिक ज़िम्मेदारी है।

उन्होंने कहा: पश्चिमी सभ्यता के भौतिकवादी दर्शन का वैज्ञानिक मूल्यांकन अत्यंत आवश्यक है। हौज़ा इल्मिया को इस दिशा में एक इस्लामी सभ्यतागत मॉडल प्रस्तुत करना चाहिए क्योंकि इस्लाम एक संपूर्ण फ़िक्री निज़ाम है।

हौज़ा इल्मिया के निदेशक ने वैश्विक स्तर पर हौज़ा की ज़िम्मेदारी और सक्रियता पर प्रकाश डालते हुए कहा: आज अल्हम्दुलिल्लाह, जामेअतुल मुस्तफ़ा के लगभग 50 से 70 हज़ार स्नातक व्यक्ति पूरी दुनिया में इल्मी और तब्लेगी शैक्षिक और प्रचारक सेवाएं अंजाम दे रहे हैं।

उन्होंने कहा: आलम‑ए‑इस्लाम को अहले‑बैत (अ) के मआरिफ़ की अत्यंत ज़रूरत है। नई नस्ल का प्रशिक्षण अत्यंत महत्व रखता है।

नई पीढ़ी का प्रशिक्षण अत्यंत महत्व रखता है / धार्मिक छात्रो मे आधुनिक दौर के चुनौतियों का मुकाबला करने की क्षमता पैदा करें

आयतुल्लाह आराफ़ी ने शिक्षकों से अपील करते हुए कहा: अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वैचारिक मार्गदर्शन करने वाले आलिम तैयार करें और उन्हें आधुनिक दौर के चुनौतियों का मुकाबला करने की क्षमता प्रदान करें।

उन्होंने कहा: शिया उलमा ने इतिहास में बहुत से उतार‑चढ़ाव देखे हैं, लेकिन समग्र रूप में उनका सफ़र विकास और प्रगति का रहा है। दौर‑ए‑तक़िया से लेकर आशूरा के बाद की तहरीकों तक हमने “इस्लाम‑ए‑नाब” (शुद्ध इस्लाम) की बुलंदी की ओर अग्रसर आंदोलन का अवलोकन किया है।

हौज़ा इल्मिया के निदेशक ने हौज़ा और शिया धर्म के ऐतिहासिक मोड़ो की ओर संकेत करते हुए कहा: शेख मुफ़ीद (र) और शेख तूसी (र) के बग़दाद के दौर से लेकर ख़्वाजा नसरुद्दीन तूसी और अल्लामा हिल्ली के मग़ल युग तक, अहले‑बैत (अ) की इल्मी व सांस्कृतिक धारा ने महान इन्कलाबात पैदा किए, यहाँ तक कि ख़ूंख़ार मग़ल हुकूमत को एक सांस्कृतिक और शैक्षिक संस्थान में बदल दिया।

उन्होंने जामेअतुल मुस्तफ़ा के भूमिका पर ज़ोर देते हुए कहा: अहले‑बैत (अ) के मआरिफ़ के प्रसार के लिए विश्व‑दृष्टिकोण के नए आकाश खोलना जामेअतुल मुस्तफ़ा की मूल ज़िम्मेदारी है, और यही ऐतिहासिक रवैया हौज़ा इल्मिया में परिवर्तन के नए अध्याय खोलने का कारण बनना चाहिए।

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