शुक्रवार 19 दिसंबर 2025 - 13:19
हौज़ा ए इल्मिया और यूनिवर्सिटियों का आपसी सहयोग इस्लामी मानविकी के विकास का प्रभावी ज़रीया है।आयतुल्लाह आराफ़ी

हौज़ा / ईरान की हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने कहा है कि हौज़ा और विश्वविद्यालय के बीच सहयोग और आपसी तालमेल से इस्लामी मानविकी को बढ़ावा मिला है और इस क्षेत्र में शोध का स्तर बेहतर हुआ है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने हौज़ा व विश्वविद्यालय रिसर्च सेंटर में इस्लामी मानविकी के विषय पर आयोजित एक कॉन्फ़्रेंस को संबोधित करते हुए रसूल-ए-अकरम स.ल. के स्थान और मर्यादा पर विस्तार से प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा कि पैग़म्बर-ए-इस्लाम स.ल. का अल्लाह तआला से संबंध बुनियादी है, और यही संबंध इंसान को इज़्ज़त और करामत की बुलंदियों तक पहुँचाता है। उनके अनुसार, रसूल-ए-अकरम स.ल. की वास्तविकता को समझे बिना नबवी रिसालत को सही रूप में समझना संभव नहीं है।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने अमीरुल-मोमिनीन हज़रत अली (अ.स.) के विचारों का हवाला देते हुए कहा कि पैग़म्बर-ए-अकरम स.ल. के मक़ाम और व्यक्तित्व को जिस गहराई से हज़रत अली (अ.स.) ने बयान किया है, उसकी मिसाल बहुत कम मिलती है। उनके मुताबिक, सीरत-ए-नबवी में आंतरिक पवित्रता, नफ़्स की रक्षा और सत्य के मार्ग पर अडिग रहना स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

उन्होंने कहा कि रसूल-ए-अकरम स.ल. ने हक़ और बातिल के बीच स्पष्ट सीमाएँ क़ायम कीं और व्यवहारिक रूप से दोनों के अंतर को उजागर किया। आपने स.ल. जिहाद-ए-असग़र और जिहाद-ए-अकबर दोनों मोर्चों पर बातिल की झूठी शान-ओ-शौकत को तोड़ा और हक़ की बुनियाद रखी।

हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख ने कहा कि इस्लाम के प्रारंभिक दौर में भले ही बाहरी वैभव नहीं था, लेकिन आध्यात्मिक महानता, ईमान और सच्चाई ने ऐसी शक्ति पैदा की जिसने इतिहास की दिशा बदल दी। यही रूह आज भी समाजों के सुधार और इंसानियत की मार्गदर्शना की क्षमता रखती है।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने इस्लामी मानविकी के क्षेत्र में हुई प्रगति का उल्लेख करते हुए बताया कि हालिया दशकों में इस विषय पर 800 से अधिक अकादमिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं, जो विभिन्न शोध केंद्रों के सहयोग से तैयार हुई हैं। उन्होंने इन उपलब्धियों को हौज़ा और विश्वविद्यालय की साझा वैज्ञानिक यात्रा का परिणाम बताया।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ज्ञान और धर्म के आपसी संबंध को गंभीर, संगठित और गैर-भावनात्मक ढंग से आगे बढ़ाया जाना चाहिए। उनके अनुसार, इस्लामी मानविकी के विकास के लिए वैज्ञानिक गहराई, धैर्य और मज़बूत वैचारिक व सैद्धांतिक आधार अनिवार्य है।

अंत में आयतुल्लाह आराफ़ी ने शिक्षकों, शोधकर्ताओं और कार्यक्रम के आयोजकों का धन्यवाद करते हुए कहा कि हौज़ा और विश्वविद्यालय का सहयोग देश की शैक्षणिक और सांस्कृतिक प्रगति के लिए अपरिहार्य है, और इस प्रक्रिया को पूरी गंभीरता के साथ जारी रहना चाहिए।

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