हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, आयतुल्लाह जवादी आोमली ने एक तक़रीर में "ग़दीर की वजह से इमाम की पहचान" के विषय पर बात की, जो आप के लिए प्रस्तुत की जा रही है।
इमाम हादी (अ) की ज़ियारत ए जामेआ मे अहले-बैत (अ) को फरिश्तों की तरह बड़े सम्मान से नवाज़ा गया है।
ज़ियारत ए जामेआ में हम इन पवित्र आत्माओं से कहते हैं: "عِبادٌ مُکْرَمُونَ؛ لا یسْبِقُونَهُ بِالْقَوْلِ وَ هُمْ بِأَمْرِهِ یعْمَلُونَ एबादुन मुकरमून, ला यस्बेक़ूना बिल क़ौले व हुम बेअमरेहि यअमलून।" कुरान के नाज़िल होने का रास्ता फरिश्तों की जिम्मेदारी है, بَلْ عِبادٌ مُکْرَمُونَ बल ऐबादुन मुकरमून بِأَیدِی سَفَرَةٍ، کِرَامٍ بَرَرَةٍ बेअयदी सफ़रतिन, केरामिन बररतिन इसका मतलब है कि यह कुरान सम्मान और गरिमा के रास्ते से आया है।
सबसे महत्वपूर्ण बात जो खुदा ने कुरआन के बारे में कही है, वह आठवें इमाम, अली बिन मूसा रज़ा (अ) के रोशन शब्दों में आई है। उन्होंने यह मआरिफ़ सभी के लिए, खासकर ईरानियों के लिए दिया।
हज़रत इमाम रज़ा (अ) जब ईरान में आए, तो उन्होंने शिया मकतब (धार्मिक विचारधारा) को साथ लाए।
जब वे खुरासान के इलाके में पहुँचे, तो उन्होंने पूछा कि यहाँ सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा क्या है?
बताया गया कि यहाँ सबसे महत्वपूर्ण बात इमामत और खिलाफ़त का सवाल है।
हज़रत ने कहा: ये लोग खिलाफ़त और इमामत के बारे में क्या जानते हैं?
ये लोग इमामत क्या होती है, क्या जानते हैं?
ये लोग खिलाफ़त क्या होती है, क्या जानते हैं?
वह रोशन भाषण जो मरहूम कुलैनी ने बयान किया और दूसरों ने भी बयान किया, वह हमें आठवें इमाम के पवित्र व्यक्तित्व से मिला है, जिसमें उन्होंने फ़रमाया:
اَلإِمَامُ وَاحِدُ دَهْرِهِ وَ هُوَ بِحَیثُ النَّجْمُ مِنْ یدِ الْمُتَنَاوِلِینَ وَ وَصْفِ الْوَاصِفِینَ فَأَینَ الِاخْتِیارُ مِنْ هَذَا وَ أَینَ الْعُقُولُ عَنْ هَذَا وَ أَینَ یوجَدُ مِثْلُ هَذَا अलइमामो वाहेदो दहरेहि व होवा बे हैयसुन नज्मो मिन यदिल मुतानावेलीना व वस्फ़िल वासेफ़ीना फ़अयनल इख्तियारो मिन हाज़ा व अयनल उक़ूलो अन हाज़ा व अयना यूजदो मिस्लो हाज़ा
इमाम अपनी पूरी ज़िंदगी में एक ही होता है, और वह सितारे की तरह है जिसे साधारण हाथ छू नहीं सकता और न ही उसका वर्णन करने वाले उसे पकड़ सकते हैं। तो इस स्थिति में चुनाव कहाँ से होगा? और समझदारी इस बात से कैसे दूर हो सकती है? और ऐसा कोई दूसरा उदाहरण कहाँ मिलेगा?
इमाम आकाश का सितारा है, कोई भी हाथ आकाश तक नहीं पहुंच सकता कि वह सितारे को छू सके या पकड़ सके! क्या इमामत को बिना ग़दीर के जाना जा सकता है?
क्या विलायत को बिना ग़दीर के समझा जा सकता है?
क्या इमामत एक इंतेसाबी अम्र है ?
उसके बाद हज़रत ने कोशिश की कि हमें विलायत के विषय में शिक्षाएं दें।
हवाला: आयतुल्लाह जवादी आमोली की वेबसाइट
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