۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
Imam

हौज़ा/धार्मिक शासन व्यवस्था सभी धर्मों का अहम लक्ष्य है। “लेयक़ूमन्नास बिलक़िस्त” (ताकि लोग इंसाफ़ पर क़ायम रहें। सूरए हदीद, आयत 25) इंसाफ़ की स्थापना और इलाही शासन, धर्मों का बुनियादी लक्ष्य है। हमारे इमामों ने हर मुसीबत और तकलीफ़ इस लिए सही कि वे इलाही शासन स्थापित करने की कोशिश में रहते थें।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , धार्मिक शासन व्यवस्था सभी धर्मों का अहम लक्ष्य है। “लेयक़ूमन्नास बिलक़िस्त” (ताकि लोग इंसाफ़ पर क़ायम रहें। सूरए हदीद, आयत 25) इंसाफ़ की स्थापना और इलाही शासन, धर्मों का बुनियादी लक्ष्य है। हमारे इमामों ने हर मुसीबत और तकलीफ़ इस लिए सही कि वे इलाही शासन स्थापित करने की कोशिश में रहते थें।


वरना अगर इमाम सादिक़ और इमाम बाक़िर अलैहिमस्सलाम एक किनारे बैठ जाते और कुछ लोगों को अपने पास इकट्ठा करते और सिर्फ़ धार्मिक शिक्षाएं बयान करते तो किसी को उनसे कोई सरोकार न होता। ख़ुद इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम एक हदीस में फ़रमाते हैं कि “अबू हनीफ़ा के भी सहाबी हैं और हसन बसरी के भी सहाबी हैं।“ (बिहारुल अनवार भाग72, पेज 74) तो उनसे कोई सरोकार नहीं रखते? इस लिए कि जानते हैं कि इमाम सादिक़ इमामत के दावेदार हैं लेकिन वे लोग इमामत के दावेदार नहीं हैं। अबू हनीफ़ा इमामत के दावेदार नहीं थे। ये मशहूर सुन्नी धर्मगुरू, उनके मुहद्देसीन (हदीस बयान करने वाले) और फ़ुक़हा (शरई आदेश बयान करने वाले) इमामत के दावेदार नहीं थे। वे हारून, मंसूर और अब्दुल मलिक को अपने समय का इमाम मानते थे।


समस्या, ख़िलाफ़त और इमामत के दावे की थी। इस दावे की वजह से हमारे इमामों को क़त्ल किया गया, क़ैद किया गया। इमामत क्या है? क्या इमामत यही है कि वे शिक्षाएं बयान करें और दुनिया कोई और चलाए? क्या शियों और मुसलमानों की नज़र में इमामत का मतलब यही है? कोई भी मुसलमान इसे नहीं मानता। हम और आप, शिया इस बात को कैसे मान सकते हैं? इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम इमामत चाहते थे यानी धर्म और दुनिया का शासन स्थापित करना चाहते थे। हालात अनुकूल नहीं थे लेकिन वे इसके दावेदार थे और इसी दावे की वजह से इन हस्तियों को क़त्ल किया गया।

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