हौजा न्यूज एजेंसी के अनुसार, मौलाना सैय्यद अली हाशिम अबिदी इमामे जुमआ मस्जिद ए काला इमामबाड़ा ने रसूल अल्लाह स.ल.व.व.कि मशहूर हदीस को बयान करते हुए कहा कि ईमामे हसन और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम इमाम है, चाहे जंग करें या सुलाह करें इस हदीस को अपनी मजलिस में मुख करार देते हुए कहां इमामत और खिलाफत दोनों ही ईलाही मंसब और इंतेखाब है।
अल्लाह जिसे चाहेगा, वही इमाम होगा, वही खलीफा होगा। अल्लाह ने आदम को खिलाफत का दर्जा दिया और फरिश्तों को सजदे का हुक्म दिया, हज़रत इब्राहिम को इमाम बनाया, किसी को खलीफा बनाया यह सब मन्सब अल्लाह की तरफ से होता है,खिलाफ़त और इमामते ग़दीर से जुड़े हुए हैं।ग़दीर के ख़िलाफ़ जो व्यवस्था आई वह न ख़िलाफ़ात थी और न ही इमामत बल्कि क्रोध और प्रभुत्व थी।
मौलाना सैय्यद अली हाशिम अबिदी ने बयान किया कि वाक्ये कर्बला के बाद से आज तक यह सवाल होता हुआ आ रहा है की कर्बला में कौन जीता और कौन हारा?आज नजफ से कर्बला तक लोगों का सैलाब बता रहा है कि मज़लूम जीत गया और जुल्म करने वाला हार गया।लहू कि विजय प्राप्त हुई, तलवार की हार हुई,लक्ष्य की सफलता ही असली जीत है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने ज़लिम को उस के मकसद में हराकर बताया कि लक्ष्य को प्राप्त करना यह सबसे बड़ी जीत है। यह कहना किसी भी तरह से उचित नहीं है कि इमाम हुसैन (अ.स.) उन्होंने निष्ठा की मांग की और सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया।याज़ीद अपराधी था। और शासक की अवज्ञा और विद्रोह उसे विरासत में मिली थी