गुरुवार 26 जून 2025 - 13:07
माहे मोहर्रम, इज़राईली साजिशों को उजागर करने का स्वर्णिम अवसर है।

हौज़ा / ईरान के मशग़ीन शहर के इमाम-ए-जुमा ने पवित्र महीने मोहर्रम को सियोनिस्ट सरकार की साजिशों को उजागर करने का सर्वोत्तम अवसर बताया उन्होंने जोर देकर कहा कि इस महीने में मातमी सभाओं के माध्यम से इस्लामी दुनिया, विशेष रूप से फिलिस्तीन के मुद्दों को उजागर किया जाना चाहिए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी हिन्दीं के अनुसार , ईरान के मशग़ीन शहर के इमाम-ए-जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन बा वक़ार ने नमाज़-ए-जुमा की केंद्रीय समिति के सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा है कि माह-ए-मोहर्रम न केवल शोक और धर्म के पुनरुत्थान का महीना है, बल्कि यह उम्मत को जागृत करने और इस्लाम के दुश्मनों, विशेष रूप से सियोनिस्ट चेहरों और उनकी फितनागर पॉलिसियों को उजागर करने का भी एक उत्तम अवसर प्रदान करता है।

उन्होंने इस अवसर पर मोहर्रम के महीने की आगमन पर संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि आशूराई संस्कृति को बढ़ावा देना हमारी ज़िम्मेदारी है, और इस ईश्वरीय संस्कृति के माध्यम से हमें वर्तमान संवेदनशील हालात में सामाजिक पूंजी को मजबूत करना चाहिए।

उनका कहना था कि आज हमें सरल और सामान्य भाषा में यहूदियों और उनकी घिनौनी राजनीतिक साजिशों को जनता के सामने उजागर करने की आवश्यकता है ताकि लोगों में समझदारी और जागरूकता पैदा की जा सके। 

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन बा वक़ार ने इस्लामी क्रांति की एक बड़ी सफलता की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह क्रांति ऐसे लोगों को प्रशिक्षित करने में सफल रही है जो इस्लामी व्यवस्था के अनुरूप सेवाएं प्रदान कर रहे हैं, और अल्हम्दुलिल्लाह, रहबर-ए-मोअज़्ज़म की दूरदर्शी नेतृत्व में देश इन जटिल परिस्थितियों में भी सफलता के साथ आगे बढ़ रहा है।

उन्होंने आगे कहा कि इस्लाम के दुश्मनों ने आंतरिक और बाहरी सभी साधनों का उपयोग करके देश पर हमला करने की कोशिश की, लेकिन ईरानी जनता और सशस्त्र बलों ने अपनी धरती का अनुपम बचाव किया और हर विचारधारा से जुड़े लोगों ने वतन के समर्थन में एकता और एकजुटता का व्यावहारिक प्रदर्शन किया। 

इमाम-ए-जुमा ने जोर देकर कहा कि आज हम सभी पर यह फर्ज है कि इन जागरूक और वफादार लोगों की सेवा को अपना कर्तव्य समझते हुए सामाजिक एकता और सद्भाव को बनाए रखने में कोई कसर न छोड़ें।

उन्होंने नमाज़-ए-जुमा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा,नमाज़-ए-जुमा विलायत व्यवस्था और इस्लामी संप्रभुता की प्रतीक है, और हम सभी गर्व से इस ईश्वरीय मोर्चे में विलायत के सिपाही बने हुए हैं। जो भी नमाज़-ए-जुमा के रास्ते में कदम बढ़ाता है, वह एक मुजाहिद और सिपाही है।

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