लेखक: मौलाना सैयद अम्मार हैदर जैदी
हौजा न्यूज़ एजेंसी क्या आज भी वह समय नहीं आया है कि मुस्लिम उम्माह अली (अ) और उनकी संतानो के बलिदानों और नेतृत्व को पहचाने? क्या यह पर्याप्त नहीं है कि हर युग में, हर जगह, अली (अ) के उत्तराधिकारियों ने हर उत्पीड़ित व्यक्ति के पक्ष में अपनी आवाज़ उठाई है?
क्या दुनिया ने यह नहीं देखा कि जब फिलिस्तीन, यमन और अफगानिस्तान के निहत्थे मुसलमानों पर जुल्म अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गया तो तथाकथित मुस्लिम शासक मूकदर्शक बने रहे और कुछ ने तो जुल्म करने वालों से दोस्ती और समझौते भी कर लिए। लेकिन अली (अ) की शिक्षा से लाभ उठाने वाले चंद चेहरे यानी सय्यद अली खामेनेई, सय्यद हसन नसरूल्लाह और शहीद कासिम सुलेमानी हर क्षेत्र में जुल्मों की ढाल बनकर खड़े रहे। जब ज़ायोनी हुकूमत ने ईरान पर हमला किया तो अफसोस की बात है कि कुछ अरब और तुर्की शासक इसकी निंदा करने के बजाय या तो चुप रहे या फिर पर्दे के पीछे दुश्मन के हिमायती बन गए। मुस्लिम दुनिया के 'नेता' माने जाने वाले लोग इजरायली दूतावासों और व्यापारिक समझौतों में व्यस्त दिखे। लेकिन दुनिया ने अपनी आंखों से देखा कि जिस ईरान को सालों से अलग-थलग करने की कोशिश की जा रही थी, वही ईरान अली (अ.स.) के झंडाबरदारों की छत्रछाया में खड़ा होकर ऐसा करारा जवाब दिया कि दुनिया हैरान रह गई।
जिन्हें लोग अजेय मानते थे, जिनकी शक्ति का बखान विश्व मीडिया द्वारा किया जाता था, उन्हें ईरान ने चुनौती दी, झकझोरा और बेनकाब किया। जिस इसराइल को लोग लोहे का किला समझते थे, आज वही इमाम खुमैनी के इस कथन की पुष्टि कर रहा है: 'इसराइल मकड़ी के जाले से ज़्यादा कुछ नहीं है।'"
आज फ़ैसला करने का समय है! अगर मुस्लिम उम्माह एकजुट हो जाए, संप्रदायों, राष्ट्रीयताओं और भौगोलिक सीमाओं से ऊपर उठकर कुरान और अहलुल बैत (अ.स.) के रास्ते पर एक साथ आ जाए, तो दुनिया की कोई भी ताकत, कोई भी ज़ायोनी साज़िश, कोई भी शैतानी गठबंधन मुहम्मद (स) की उम्माह को नष्ट नहीं कर सकता।
ईरान ने साबित कर दिया है कि अगर ईमान, ईमानदार नेतृत्व और नेक इरादे हों, तो झूठ की सारी ताकतें चकनाचूर हो जाती हैं। अब उम्माह को देखना है कि वह पाखंड का रास्ता अपनाती है या प्रतिरोध का, तमाशबीन बनती है या झंडाबरदार।
अल्लाह तआला हमें सच्चाई को पहचानने और सच्चाई के साथ खड़े होने की क्षमता प्रदान करें।
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