सोमवार 14 अप्रैल 2025 - 09:37
ग़ज़्ज़ा और सीरिया के मज़ालिम पर खामोशी क्यों?

हौज़ा / खुदा भला करे रहबरे मोअज्जम खामनई साहब का जिनके अंदर हुसैनी फिक्र और हुसैनी जज्बा कूट कूट के भरा है जो इस उम्र में भी अमरीका और इजरायल और उनके इत्तेहादियों के मुकाबले में मजलूमों की मदद के लिए सीसा पिलाई हुई दीवार बन कर खड़े हुए हैं। ये है उनका अल्लाह पर यक़ीन और भरोसा।

लेखकः शौकत भारती

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी !
हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) ने फ़रमाया — *"लोग दुनिया के बंदे हैं और दीन सिर्फ उनकी ज़बान तक है।"*.. 
1400 साल पहले इमाम हुसैन और उनके साथियों के साथ कर्बला में और कर्बला से कूफ़ा और कूफ़ा से शाम तक जो ज़ुल्म ढाए गए हुए जब इमाम हुसैन के चाहने वाले उसे बयान करते थे तो बहुत से मुसलमान ये कहते हैं, कि इमाम हुसैन की ताजियादारी करने वाले झूठी बातें करते हैं। ये कैसे मुमकिन हो सकता है कि सहाबा और सहाबा की औलादों की मौजूदगी में रसूल अल्लाह के खानदान पर इस  कदर ज़ुल्म हुआ और सब देखते रहे और ये भी झूठ है कि सिर्फ 71 लोगों ने ही इमाम हुसैन का साथ दिया बाकी सब यजीद की बेयत कर के उसके साथ हो गए थे या खामोश तमाशाई बने हुए थे या उस वक्त तमाम मुल्ला और मुफ्ती बिक गए थे या यजीद के खौफ से दब गए थे। क्योंकि उसका हम हुसैनियो के पास कोई वीडियो नहीं है या सीसी फुटेज नहीं है जिसे दिखा कर हम कहें कि देखिए ये जुल्म के पहाड़ तोड़े गए और उस वक्त के सहाबी सहाबी की औलादें और मुल्ला मुफ्ती जन्नत के सरदार के साथ नहीं थे बल्कि जहन्नम के कुंदे यजीद के साथ थे। क्योंकि  उस वक्त कैमरा ईजाद नहीं हुआ था। मगर आज इस वीडियो कैमरे मोबाइल और इंटरनेट के दौर में 18 महीनों से ज़ालिम इसराइल अमरीका और तमाम सैहूनी ताकतें गाज़ा में मजलूम फिलिस्तीनियों पर जुल्म का सिलसिला जारी रखें  है और महीनों से जोलानी के दहशत गर्द शीयों और अलवाइट्स के गले काट रहे हैं कत्ल आम का सिलसिला जारी रखें है जिसके एक एक वीडियो और सीसी फुटेज सोशल साइट्स पर मौजूद हैं लाइव कत्ल आम हो रहा है फिलिस्तीन और सीरिया के मज़लूमीन चीख चीख कर दुनिया वालों की मदद के लिए बुला रहे है मगर सिवाय ईरान,हशद अल शाबी,हौसी,हिजबुल्लाह के कोई साथ नहीं दे रहा ईरान को छोड़ दीजिए तो OIC के तमाम मुमालिक के रहनुमा ही नहीं दीन के ठेकेदार काबा और मस्जिद नब्वी के इमाम अरब के मुफ्ती मिस्र के मुफ्ती और उलमा सब के सब लगातार 18 महीने से लाइव कत्ल और गारत गरी देख रहे हैं मगर सब के सब खामोश ही नहीं बल्कि ज़ालिम इसराइल और दहशत गर्द जुलानी की मदद कर रहे हैं। जिस तरह से
यजीद के दौर में अक्सरियत ऐसे ही लोगों की थी। वैसे आज भी है
हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) ने इसी लिए फ़रमाया था— "लोग दुनिया के बंदे हैं और दीन सिर्फ उनकी ज़बान तक है।".. खुदा भला करे रहबरे मोअज्जम खामनई साहब का जिनके अंदर हुसैनी फिक्र और हुसैनी जज्बा कूट कूट के भरा है जो इस उम्र में भी अमरीका और इजरायल और उनके इत्तेहादियों के मुकाबले में मजलूमों की मदद के लिए सीसा पिलाई हुई दीवार बन कर खड़े हुए हैं। ये है उनका अल्लाह पर यक़ीन और भरोसा। अमरीका की धमकियों के बाद भी ईरान अपनी शर्तों पर ही बात कर रहा है जगह भी अपने पसंद की शर्ते भी दुश्मन की नहीं बल्कि अपनी ये है अल्लाह की ताकत पर खुमैनी साहब का यकीन, इसकी बुनियादी वजह है कि ईरान वो ईरान है जो हर तरह की कुर्बानी देने को तैयार है। ईरान वाले दुनिया के बंदे नहीं अल्लाह के बंदे हैं
ये होती है सच्चे आलिम की पावर जो हुक्मरानों को सुपर पावर नहीं मानता बल्कि अल्लाह को सुपर पावर मानता है। खुदा की कसम पूरी दुनिया में देख लीजिए कि दौरे यजीद से ले कर आज तक के उलमाए सू हुमुरानो के टुकड़ों पर पालना और हुक्मरानों के हक में बोलना पसंद करते हैं ऐसे ही उलमाए सू बकौल इमाम हुसैन दुनिया के बंदे हैं। अरब से ले कर इंडिया तक फैले हुए उलमाए सू की घनी भीड़ में उलमाए हक़ को ढूंढना ऐसा ही है जैसे भूसे में गिरी हुई सूई को ढूंढ लेना। जिसको देखो वो दुनिया के चक्कर में मरा जा रहा है। इतना  ही नहीं अपने आपको सुपर इंकलाबी कहने वालों को भी खुद चेक कर लीजिए कि वो कितने जरी और जिंदा जमीर है। कितने लोग हैं जो सड़कों पर आ कर ज़ालिम इसराइल और अमरीका के खिलाफ़ प्रोटेस्ट कर रहे हैं या कितने लोग हैं कि जिनके बयान अखबारो में छप रहे हैं।
इंकलाब की बातें करने वाले और होते हैं इंकलाबी और होते हैं
ईरान के एक ऐतिहासिक और क्रांतिकारी फक़ीह व मुजाहिद शहीद आयतुल्लाह सैयद हसन मुदर्रिस जो शाह के दौर में पार्लियामेंट के मेंबर थे उन्होंने ऐसे ही दुनिया के बंदों के लिए क्या खूब कहा था कि *जो चीज़ आपको दूसरों से अलग बनाती थी,वो आपकी बेबाकी और बहादुरी होती है।* शाह के दौर में मिम्बर ऑफ पार्लियामेंट होने के बावजूद आप शाह की हर उस बात का खुल कर विरोध करते थे जो देश,जनता और इस्लामी संविधान के खिलाफ़ होती थी। आपके बारे में ही  ख़ुमैनी साहब कहा करते थे कि पार्लियामेंट में नारा लगता था: "रज़ा शाह ज़िंदाबाद!"
लेकिन आप उसी पार्लियामेंट में बेझिझक नारा लगाते थे:
"शाह मुर्दाबाद!"आप शाह ईरान की हर गलत पालिसी का  खुलकर विरोध करते थे। एक बार शाह ईरान ने आपसे पूछा "तुम मुझसे क्या चाहते हो?"
तो आपने शाह की आंखों में आंखें डाल कर कहा — *"मैं चाहता हूँ कि तुम रहो ही नहीं।"*
आपकी यही बहादुरी और साफगोई ईरानी इस्लामी क्रांति की बुनियाद बनी।
यकीनन ऐसा काम वही आलिमे दीन कर सकता है जिसका दामन हर तरह की लालच और जुर्म से पाक हो। शहीद आयतुल्लाह सैयद हसन मदर्रस ने कहा करते थे कि,
*"मैं बहुत से अहम मसलों पर बिना डरे अपनी बात इस लिए कह देता हूँ, क्योंकि मेरे पास खोने को कुछ नहीं है। अगर तुम भी इसी तरह बन जाओ,अपनी ख्वाहिशें और लालच छोड़ दो तो तुम भी आज़ाद हो जाओगे।"*
शहीद आयतुल्लाह सैयद हसन मदर्रस कभी किसी धमकी से डरे,न कभी किसी तरह की लालच का शिकार हुए। आप खुद फ़रमाते थे —
*"जो अमामा (पगड़ी) का तकिया और अबा की (चादर) बिछा कर सो सकता है,उसे किस चीज़ का डर हो सकता है?"*
 शहीद आयतुल्लाह सैयद हसन मदर्रस रह. ने ही ईरानी इस्लामी क्रांति से कई साल पहले ये नारा दिया —
*"हमारी दींदारी हमारी सियासत के ऐन मुताबिक है,और हमारी सियासत हमारे दीन के ऐन मुताबिक है।"*
आपने कभी दीन और सियासत को दुनिया हासिल करने का ज़रिया नहीं बनाया। हमेशा दीन को मकसद बनाए रखा और दूसरों को भी यही सलाह दी कि *"अपने दुनियावी मकसद के लिए दीन का सहारा मत लो। क्योंकि अगर तुम हार गए तो लोगों का ईमान भी कमज़ोर पड़ जाएगा।"*
आज जो समाज में मुश्किलें हैं और लोग दीन से दूर होते जा रहे हैं,उसकी बड़ी वजह यही है कि दीन के ग़द्दार उलमाये सू ने अपने दुनियावी मकसद को हासिल करने के लिए दीन को एक ज़रिया बना लिया है। जब तक उनके फायदे पूरे होते रहते हैं,वो दीन का नाम लेते रहते हैं और जैसे ही फायदा खत्म हुआ, दीन से दूर हो जाते हैं ।
हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) ने इसी लिए फ़रमा दिया था —
*"लोग दुनिया के बंदे हैं और दीन सिर्फ उनकी ज़बान तक है।"*
इस्लामी क्रांति की कामयाबी के बाद जब ईरान में पहला नोट छापा गया,तो ख़ुमैनी साहब ने हुक्म दिया कि नोट पर मेरी नहीं शहीद आयतुल्लाह सैयद हसन मदर्रस की तस्वीर छपी जाए।
अफसोस इस बात का हैं कि एक तरफ़ मुस्लिम हुक्मरानों की अक्सरियत कुरान के मना करने के बावजूद यहूद और नसारा को सरपरस्त बना कर यहूदियों और नस्रानियों में शामिल हो चुकी है दूसरी तरफ अमरीका इसराइल नवाज़ हुक्मरानों के पे रोल पर पलने वाले मुल्ला मुफ्ती भी उनके उस जुर्म पर पर्दा डाल रहे हैं। खुदा रहबरे मोअज्जम को सलामत रखे और तमाम रिजिस्टेंस फोर्सेज को सलामत रखे जो सैहूनियों के आगे सीसा पिलाई हुई दीवार बन कर खड़े हुए हैं।

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