हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,OIC, यानी इस्लामिक कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन,का क्याम यानी स्थापना 1969 में हुई थी। इसकी वजह थी पवित्र अलअक्सा मस्जिद पर इज़राइली हमले रोकना।यरुशलम, यानी बैतुल मुक़द्दस की हिफाज़त करना और फिलिस्तीनी मुसलमानों की हर तरह से मदद करना उस वक्त यह संगठन मुस्लिम उम्मत की एकता और ताकत का प्रतीक था। लेकिन 55 साल बाद क्या हाल है इसका?
OIC आज एक कमजोर और बेकार और मुसलमानो को धोखा देने वाला संगठन बनकर रह गया है। OIC सिर्फ़ निंदा प्रस्ताव पास करता है यानी सिर्फ मजम्मत करता है और अमरीका ब्रिटेन इसराइल की गुलामी करता है और ज़मीन पर कुछ नहीं करता।
सवाल यह है कि आज फिलिस्तीन के लिए लड़ कौन रहा है? OIC में 57 मुस्लिम देश हैं, लेकिन अगर कोई सचमुच फिलिस्तीनियों की मदद कर रहा है,तो वह है ईरान और उसके सहयोगी जिन्हें ईरान ने ही फिलिस्तीन और बैतूल मुकद्दस की आज़ादी के लिए तैयार किया इरान के ये सहयोगी कौन हैं? लेबनान से हिज़बुल्लाह, इराक से हश्द अलशाबी, कतायब हिजबुल्लाह, लश्करे मुख्तार, और यमन से हूती।
ईरान की ये वो प्रॉक्सी है जिसने न सिर्फ आवाज़ उठाई, बल्कि हथियार उठाकर इज़राइल को जवाब भी दिया और बहुत ज्यादा जानी कुर्बानी भी दी है। वो ईरान जिसे आज चारों तरफ से दुश्मनों ने घेर लिया है वो आज भी साफ साफ कह रहा है कि वो यरुशलम की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाएगा।
इसके लिए वो 45 साल से प्रतिबंध झेल रहा है और अब उसे अमरीका और इसराइल से एक बड़ी जंग का सामना है,अफसोस तो इस बात का है कि OIC के मुल्कों ने अपने अपने एयर बेस अमरीका और ब्रिटेन को दे रखें हैं जहां से ईरान और उसकी प्रॉक्सी पर हमले हो सकते हैं।
फिर भी ईरान फिलिस्तीनियों की मदद कर रहा है बाकी मुस्लिम देश कहाँ हैं? सऊदी अरब, तुर्की, यूएई, कतर, मिस्र—ये बड़े-बड़े नाम, फिलिस्तीन और बैतूल मुकद्दस की आज़ादी के लिए क्या कर रहे हैं? इज़राइल के साथ व्यापार बढ़ा रहे हैं,अब्राहम समझौते के ज़रिए उसे मान्यता दे दी।फिलिस्तीन की सैन्य मदद तो दूर,इसकी रणनीति तक इन लोगों ने नहीं बनाई है, यहां तक कि फिलिस्तीनयों को खाना पानी और दवा तक नहीं पहुंचा रहे हैं।
बस OIC की मीटिंग बुला कर बयानबाज़ी और दिखावा किया जा रहा है। क्यों? क्योंकि इनके लिए तेल,व्यापार,और सत्ता की राजनीति उम्मत और किबले अव्वल से ज़्यादा अहम है। अमेरिका,इसराइल और पश्चिम देशों का दबाव इन पर हावी है।OIC का असली चेहरा यही है? जिस मकसद के लिए यह बनी थी यरुशलम की रक्षा और फिलिस्तीन की मदद वह आज सिर्फ कागज़ों में रह गया।
न कोई संयुक्त मुस्लिम सेना बनी, न इज़राइल पर दबाव डाला गया,न कोई ठोस कूटनीतिक कदम उठा, और न ही इज़राइली अपराधों की सजा का इंतज़ाम हुआ। फिलिस्तीन में हो रहे कत्ल आम पर OIC मौन दर्शक बनकर रह गई है।
तो सच क्या है?
सच यह है कि सिर्फ ईरान और उसके गिने-चुने साथी ही यरुशलम और फिलिस्तीन के लिए दिल से लड़ रहे हैं। बाकी या तो खामोश हैं, या इज़राइल और अमेरिका के साथ खड़े हैं। यह उम्मत-ए-मुसलिमा और मुकद्दस मुक़ामात की हिफाज़त के लिए एक गंभीर चेतावनी है।
अगर हम आज हम एकजुट हो कर OIC के बुजदिल और अय्याश हुक्मरानों के खिलाफ़ नहीं बोले,तो कल फिलिस्तीन और किबलये अव्वल ही नहीं खाने काबा मस्जिदें नब्वी और दूसरी पवित्र मस्जिदों के साथ तमाम इस्लामिक मुल्क भी खतरे में होंगे और इसराइल अपने ग्रेटर इसराइल के मंसूबे को पूरा करने में कामयाब हो जाएगा।
अब भी वक्त है मुस्लिम मुमालिक ईरान और ईरान की प्रॉक्सी के साथ खुल कर खड़े हो जाएं और इसराइल के ग्रेटर इसराइल वाले एजेंडे को पूरा न होने दें और फिलिस्तीन के साथ किबलये
अव्वल को आजाद करा लें।
शौकत भारती
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