मंगलवार 1 जुलाई 2025 - 14:01
हज़रत इमाम हुसैन अ.स. ने यज़ीद से बैअत क्यों नहीं की?

हौज़ा / हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन जवाद मोहद्दसी ने अपने विशेष खिताब में "दरस-ए-आशूरा" के तहत इस अहम सवाल का जवाब दिया है कि इमाम हुसैन अ.स.ने यज़ीद से बैअत क्यों नहीं की?

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन जवाद मोहद्दसी ने अपने विशेष खिताब में "दरस-ए-आशूरा" के तहत इस अहम सवाल का जवाब दिया है कि इमाम हुसैन अ.स.ने यज़ीद से बैअत क्यों नहीं की?

उन्होंने लिखा कि इमाम अ.स. का इनकार न तो किसी निजी दुश्मनी की वजह से था और न ही यह कोई साधारण राजनीतिक विरोध था, बल्कि यह फैसला एक गहरी क़ुरआनी और धार्मिक सोच पर आधारित था। यह इस्लाम के बुनियादी सिद्धांतों की हिफाजत के लिए ज़रूरी था।

इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार, हुकूमत का हक सिर्फ उसी को है जो:कुरआन की गहरी समझ रखता हो,अमली तौर पर दीनदार हो,और अल्लाह का आज्ञाकारी हो।

इमाम हुसैन अ.स. ने इन्हीं उसूलों की बुनियाद पर यज़ीद जैसे फासिक और पापी शासक की बैअत से इनकार कर दिया, क्योंकि वह कुरआन, ईमानदारी और इंसाफ की राह से भटक चुका था।

इस्लामी निज़ाम में क़ियादत उन्हें मिलनी चाहिए जो आम जनता से ज़्यादा जागरूक, न्यायप्रिय और परहेज़गार हों, ताकि वो समाज को अल्लाह के दीन के मुताबिक चला सकें। जबकि बनू उमय्या ने ताक़त, फरेब और मुनाफ़िक़त (पाखंड) के ज़रिये हुकूमत पर क़ब्ज़ा कर रखा था और इस्लामी मूल्यों को रौंद रहे थे।

हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) का क़ियाम दरअसल एक इलाही जिहाद था, ताकि उम्मत-ए-मुस्लिमा को दोबारा हक़, इंसाफ और तक़्वा (पवित्रता) की राह पर लाया जाए, और ज़ालिम और गुनहगार हुक्मरानों के हाथों में उम्मत की तक़दीर न रहे।

इमाम (अ.स.) के बैअत से इंकार ने यह बात साफ कर दी कि बातिल की इताअत (आज्ञा) मुमकिन नहीं है, चाहे उसकी ताक़त कितनी भी बड़ी क्यों न हो। और यही आशूरा का सबसे बुनियादी सबक है:ज़ुल्म के सामने ख़ामोशी नहीं, बल्कि क़ियाम ही एकमात्र रास्ता है।

अस्सलामु अलैक या अबा अब्दिल्लाहिल हुसैन (अ.स.)

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