۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
समाचार कोड: 388895
9 फ़रवरी 2024 - 16:36
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हौज़ा/28 रजब को इमाम हुसैन अ.स. ने मदीने से हिजरत की, और पूरी दुनिया वालों के लिए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का खुला संदेश था यज़ीद की बैय्यत से इनकार और दीने खुदा की सुरक्षा करना,

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,28 रजब को इमाम हुसैन अ.स. ने मदीने से हिजरत की, और पूरी दुनिया वालों के लिए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का खुला संदेश था यज़ीद की बैय्यत से इनकार और दीने खुदा की सुरक्षा करना,

इब्ने ज़ुबैर ने कहा कि इस समय वलीद के दरबार में जाना आपके लिए ख़तरनाक हो सकता है، इमाम ने कहा कि में जाऊँगा तो ज़रूर लेकिन अपनी सुरक्षा का इंतेज़ाम करके वलीद से मिलूँगा खुद अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रातों रात मदीने से मक्के की तरफ फरार कर गए।

मुआविया जहन्नम रसीद हुआ तो मदीने में बनी उमय्या के गवर्नर वलीद ने इमाम हुसैन (अ.स.) को संदेश भेजा कि वह दरबार में आयें उनके लिए यज़ीद का एक ज़रूरी पैग़ाम है। इमाम हुसैन (अ.स.) उस समय इब्ने ज़ुबैर के साथ मस्जिद-ए-नबवी में बैठे थे।

जब यह संदेश आया तो इमाम से इब्ने ज़ुबैर ने कहा कि इस समय इस तरह का पैग़ाम आने का मतलब क्या हो सकता है? इमाम हुसैन (अ.स.) ने कहा कि लगता है कि मुआविया की मौत हो गई है और शायद यज़ीद की बैअत के लिए वलीद ने हमें बुलाया है। इब्ने ज़ुबैर ने कहा कि इस समय वलीद के दरबार में जाना आपके लिए ख़तरनाक हो सकता है। इमाम ने कहा कि में जाऊँगा तो ज़रूर लेकिन अपनी सुरक्षा का इंतेज़ाम करके वलीद से मिलूँगा। खुद अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रातों रात मदीने से मक्के की तरफ फरार कर गए।

इमाम बनी हाशिम के जवानों को लेकर वलीद के दरबार में पहुँच गए। लेकिन अपने साथ आये बनी हाशिम के जवानों से कहा कि वह लोग बाहर ही ठहरे और अगर इमाम की आवाज़ बुलंद हो तो अन्दर आ जाएँ।

इमाम वलीद के दरबार में पहुँचे तो उस समय वलीद के साथ बनी उमय्या का अहम् सरदार और रसूलो अहले बैते रसूल का बदतरीन दुश्मन मरवान भी बैठा हुआ था। इमाम हुसैन (अ.स.) तशरीफ़ लाए तो वलीद ने मुआविया की मौत कि ख़बर देने के बाद यज़ीद की बैअत के लिए कहा। इमाम हुसैन (अ.स.) ने यज़ीद की बैअत करने से साफ़ इनकार कर दिया और वापस जाने लगे तो पास बैठे हुए मरवान ने कहा कि अगर तूने इस वक़्त हुसैन को जाने दिया तो फिर ऐसा मौक़ा नहीं मिलेगा यही अच्छा होगा कि इनको गिरफ़्तार करके बैअत ले ले या फिर क़त्ल कर के इनका सर यज़ीद के पास भेज दे।

यह सुनकर इमाम हुसैन (अ.स.) को जलाल आ गया और आपने बुलंद आवाज़ में फ़रमाया “भला तेरी या वलीद कि यह मजाल कि मुझे क़त्ल कर सकें?” इमाम हुसैन (अ.स.) की आवाज़ बुलंद होते ही उनके छोटे भाई हज़रत अब्बास के नेतृत्व मैं बनी हाशिम के जवान तलवारें उठाये दरबार में दाखिल हो गए लेकिन इमाम ने इन नौजवानों को सब्र की तलक़ीन की और घर वापस आ कर मदीना छोड़ने के बारे मैं मशविरा करने लगे।

बनी हाशिम के मोहल्ले मैं इस खबर से शोक का माहौल छा गया। इमाम हुसैन (अ.स.) अपने खानदान के साथ मदीना छोड़ कर मक्का की ओर हिजरत कर गए जहाँ आप लगभग साढ़े चार महीने खाना ए काबा के नज़दीक रहे लेकिन हज का ज़माना आते ही इमाम को खबर मिली कि यज़ीद ने हाजियों के लिबास में क़ातिलों का एक ग्रुप भेजा है जो इमाम को हज के दौरान क़त्ल करने की नीयत से आया है। वैसे तो हज के दौरान हथियार रखना हराम है और एक चींटी को भी मार दिया जाए तो इंसान पर कफ्फ़ारा लाज़िम हो जाता है लेकिन यज़ीद और बनी उमय्या के लिए इस्लामी उसूल या काएदे कानून क्या मायने रखते थे?

जिस वक़्त पूरा आलमे इस्लाम सिमट कर मक्का की तरफ आ रहा था इमामे हुसैन ने हुरमते काबा बचाने के लिए हज को उमरह में बदल कर मक्का से कर्बला की तरफ हिजरत का फैसला किया। 
 

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