हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इमाम-ए-जुमआ क़ुम और मुतवल्ली-ए-हरम-ए-मुतह्हर हज़रत मासूमा सल्लल्लाहु अलैहा आयतुल्लाह सैयद मोहम्मद सईदी ने अदालत के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन ग़ुलाम हुसैन मोहसिनी एजेई की मौजूदगी में होने वाली प्रांतीय प्रशासनिक परिषद की बैठक में गुफ़्तगो के दौरान कहा,जो भी शख्स किसी ज़िम्मेदारी के मंसब पर फ़ाइज़ होता है, उसे जान लेना चाहिए कि यह मक़ाम एक इलाही अमानत है और कोई नेमत ऐसी नहीं जिसके बारे में सवाल न किया जाए। इंसान को चाहिए कि वक़्त गुज़रने से पहले खिदमत के मौक़ों की क़द्र करे।
उन्होंने रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम के एक फ़रमान की तरफ इशारा करते हुए कहा, हसरत के वक़्त आने से पहले इंसान को ग़ौर करना चाहिए कि कौन से काम उसे करने चाहिए थे और वह छोड़ बैठा है और पशेमानी से पहले इस्लाह का मौक़ा हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।
कुम के इमाम-ए-जुमआ ने अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम के फ़रमान की रोशनी में कहा, अक़्लमंद इंसान वह है जो पशेमानी से पहले इस्लाह-ए-नफ्स और दुरुस्त अमल की तरफ मुतवज्जह हो और खिदमत के मौक़ों से फ़ायदा उठाए।
ज़िम्मेदारी एक इलाही नेमत है जिसकी क़द्र करना ज़रूरी है क्योंकि एक दिन हम सबसे उन इमकानात और मौक़ों के बारे में सवाल होगा जो हमें अता किए गए।
आयतुल्लाह सईदी ने अपनी गुफ़्तगो के दौरान इमाम सादिक अलैहिस्सलाम की सीरत का हवाला देते हुए कहा,हक़ीकी ज़िक्र और याद-ए-ख़ुदा यह है कि इंसान लोगों की मुश्किलात को हल करे और उनकी खिदमत को इबादत समझे। बाज़ ओकात बन्दगां-ए-ख़ुदा की हाजत-रवाई ज़ाहिरी इबादतों से भी ज़्यादा बाफ़ज़ीलत होती है क्योंकि ख़ुदा की खुशनुदी बन्दों की खिदमत में मुज़म्मर है।
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