हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हज़रत मासूमा (स.अ.) के हरम में आयोजित एक मआरिफ़ी महफ़िल को संबोधित करते हुए हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हामिद काशानी ने कहा,जब इंसान दूसरों की नेमतों को देखता है, तो उसके अलग-अलग तरह के रिएक्शन (प्रतिक्रियाएं) हो सकते हैं। रिवायतों के मुताबिक उनमें से एक खतरनाक रिएक्शन है हसद करना, यानी नेमत पाने वाले से दुश्मनी रखना।
उन्होंने कहा: जो व्यक्ति ख़ुदा को सही ढंग से नहीं पहचानता, और उसे हकीम (तत्त्वज्ञानी) और अलीम (सर्वज्ञ) नहीं मानता, जब वह किसी को नेमतों से नवाज़ा हुआ देखता है तो उसे तकलीफ़ होती है। दरअसल, वह ख़ुदा की हिकमत (तत्वदर्शिता) पर ऐतराज़ करता है। जबकि हक़ीक़त यह है कि ख़ुदा जिसको भी जो नेमत देता है, वह अपने इल्म और हिकमत की बुनियाद पर देता है।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा: हसद इंसान को बर्बाद करने वाली आफ़तों में से एक है, और ये इंसान को हलाकत में डाल देती है। अफ़सोस है कि आजकल बहुत से लोगों के बीच हसद आम हो गया है, और इसकी असल वजह है ख़ुदा की सही पहचान (मअरिफ़त) का न होना।
हुज्जतुल इस्लाम काशानी ने आगे कहा,जो इंसान हसद से पाक होता है, वह जब किसी को नेमतों से भरपूर देखता है तो दिल से खुश होता है, और ख़ुदा से दुआ करता है कि वो भी उसे वही नेमत अता करे।
उन्होंने मिसाल देते हुए कहा,जब हज़रत ज़करिया ने हज़रत मरियम के पास जन्नत की नेमतें देखीं, और उनकी इबादत-गुज़ारी का मुशाहिदा किया, तो उन्होंने फ़ौरन ख़ुदा से एक नेक औलाद की दुआ की ताकि वह भी हज़रत मरियम की तरह बुलंद मक़ाम वाला बंदा बने।
आख़िर में उन्होंने याद दिलाया, हज़रत ज़करिया की उस दुआ के बाद, ख़ुदा ने उन्हें हज़रत याह्या (अ.स.) की पैदाइश की खुशख़बरी दी, जो उनके लिए बहुत सारी बरकतों का ज़रिया बने।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन काशानी ने कहा, ख़ुदा के वली लोग जब किसी को नेमतों से नवाज़ा हुआ देखते हैं, तो उससे जलते नहीं, बल्कि ख़ुदा से दुआ करते हैं और अपने लिए भी वही नेमत तलब करते हैं। जब कि हसद करने वाला ऐसा नहीं करता।
आपकी टिप्पणी