शनिवार 28 जून 2025 - 22:19
जन्नतवासियों के लिए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत सबसे बड़ी नेमत है। हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मीर बाक़िरी

हौज़ा / मजलिस-ए ख़ुबरगान-ए रहबरी के सदस्य ने दूसरी मोहर्रम की शाम को मजलिस-ए अज़ा में अपने भाषण में कहा कि ईमान वालों के लिए जन्नत की सबसे बड़ी लज़्ज़त, आले मोहम्मद की ज़ियारत है, और खास तौर पर सय्यदुश्शोहदा ,इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत वह सबसे बड़ी नेमत है जिसे पाकर जन्नतवासी बाकी सभी नेमतों को भूल जाएंगे।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मजलिस-ए ख़ुबरगान-ए रहबरी के सदस्य ने दूसरी मोहर्रम की शाम को मजलिस-ए अज़ा में अपने भाषण में कहा कि ईमान वालों के लिए जन्नत की सबसे बड़ी लज़्ज़त, आले मोहम्मद की ज़ियारत है, और खास तौर पर सय्यदुश्शोहदा ,इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत वह सबसे बड़ी नेमत है जिसे पाकर जन्नतवासी बाकी सभी नेमतों को भूल जाएंगे।

उन्होंने एक हदीस (रिवायत) की ओर इशारा किया जिसमें सूरह-ए फज्र को "सूरतुल हुसैन अलैहिस्सलाम कहा गया है और फरमाया कि जो व्यक्ति इस सूरह की नियमित तिलावत करेगा, वह क़यामत के दिन शहीद-ए-कर्बला के साथ उठाया जाएगा और उनसे अंतरंगता हासिल करेगा। 

हुज्जतुल इस्लाम मीर बाक़िरी ने सूरह-ए फज्र की आखिरी आयतों में वर्णित "नफ्स-ए मुत्मइन्ना" को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से जोड़ते हुए कहा कि जब एक मोमिन इस दुनिया से रुख़सत होता है, तो उसकी रूह का अल्लाह से मिलने का पल वास्तव में "लिकाउल्लाह" (अल्लाह से मुलाक़ात) होता है।

वह न केवल मौत से नहीं डरता, बल्कि अल्लाह की राह में शहादत का इंतज़ार करता है।उन्होंने कहा,मोमिन के लिए मौत के वक्त फरिश्ते नाज़िल होते हैं, उसके डर को दूर करते हैं और उसे इत्मीनान प्रदान करता हैं।

उन्होंने आगे समझाया कि "आलम-ए ज़िक्र" (याद के संसार) में प्रवेश करने वाला इंसान "वादी-ए इत्मीनान" तक पहुँचता है, और यही मकाम (स्थान) विलायत, नबूवत और अहले बैत अलैहिमुस्सलाम की मोहब्बत है। 

हौज़ा के उस्ताद ने रसूलुल्लाह की ज़ियारत को अल्लाह की ज़ियारत के बराबर बताया और कहा कि जो व्यक्ति पैग़म्बर (स) की इताअत करता है, वह वास्तव में अल्लाह की इताअत करता है। 

उन्होंने ज़ोर देकर कहा,जन्नतवासियों के लिए सबसे बड़ी खुशी यह है कि वे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत से मुशर्रफ़ हों, और जब यह मौका उन्हें मिलता है, तो वे बाकी सभी नेमतों को भूल जाते हैं और फिर से इस ज़ियारत का इंतज़ार करने लगते हैं। 

उन्होंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को "वादी-ए अम्न व हिदायत का दरवाज़ा बताते हुए कहा कि "रज़ा-ए इलाही" और "नफ्स-ए मुत्मइन्ना" के असली मिस्दाक सय्यदुश्शोहदा अलैहिस्सलाम ही हैं, और जो उनके काफिले में शामिल हो जाता है, वही नजात पाता है।

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