हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हम दुनियावी यात्रा में साथी के चयन में बहुत सावधानी बरतते हैं ताकि कोई ऐसा साथी मिले जो बोझ न बने बल्कि सहारा बने। तो फिर आखिरत की उस अनन्त यात्रा के लिए हम लापरवाही क्यों करें? वहां भी एक ऐसे साथी की जरूरत है जो हमेशा साथ रहे।
अल्लाह तआला पवित्र कुरआन में फरमाता है:
مَنْ جَاءَ بِالْحَسَنَةِ فَلَهُ عَشْرُ أَمْثَالِهَا وَمَنْ جَاءَ بِالسَّیِّئَةِ فَلَا یُجْزَیٰ إِلَّا مِثْلَهَا وَهُمْ لَا یُظْلَمُونَ.
(सूरह अलअनआम, आयत 160)
जो कोई अच्छा काम लेकर आएगा, उसके लिए उसके जैसे दस गुना (पुण्य) लिखे जाएंगे, और जो कोई बुरा काम लेकर आएगा तो उसे केवल उसी के बराबर सजा दी जाएगी और उन पर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा।
क़यामत के दिन वे लोग जो दुनिया में अल्लाह से मुंह मोड़े हुए थे पछतावे से कहेंगे:
فَلَوْ أَنَّ لَنَا کَرَّةً فَنَکُونَ مِنَ الْمُؤْمِنِینَ.
(सूरह अश-शुअरा, आयत 102)
काश! हमारे पास (दुनिया में) लौटने का एक मौका होता तो हम ईमान वालों में से होते।
वास्तविकता यह है कि आखिरत का असली साथी कोई इंसान नहीं बल्कि हमारे अच्छे-बुरे अमल (कर्म) हैं। यही अमल कब्र में भी साथ होगा, बरज़ख़ में भी और क़यामत में भी। अगर यह नेक अमल हुआ तो रौशनी और सहारा बनेगा, और अगर बुरा अमल हुआ तो बोझ और मुसीबत की शक्ल में साथ रहेगा।
अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अ.स. एक हदीस में फरमाते हैं:
«إِنَّ اِبْنَ آدَمَ إِذَا کَانَ فِی آخِرِ یَوْمٍ مِنْ أَیَّامِ اَلدُّنْیَا وَ أَوَّلِ یَوْمٍ مِنْ أَیَّامِ اَلْآخِرَةِ مُثِّلَ لَهُ مَالُهُ وَ وُلْدُهُ وَ عَمَلُهُ فَیَلْتَفِتُ إِلَی مَالِهِ فَیَقُولُ وَ اَللَّهِ إِنِّی کُنْتُ عَلَیْکَ حَرِیصاً شَحِیحاً فَمَا لِی عِنْدَکَ فَیَقُولُ خُذْ مِنِّی کَفَنَکَ قَالَ فَیَلْتَفِتُ إِلَی وُلْدِهِ فَیَقُولُ وَ اَللَّهِ إِنِّی کُنْتُ لَکُمْ مُحِبّاً وَ إِنِّی کُنْتُ عَلَیْکُمْ مُحَامِیاً فَمَا ذَا عِنْدَکُمْ فَیَقُولُونَ نُؤَدِّیکَ إِلَی حُفْرَتِکَ نُوَارِیکَ فِیهَا قَالَ فَیَلْتَفِتُ إِلَی عَمَلِهِ فَیَقُولُ وَ اَللَّهِ إِنِّی کُنْتُ فِیکَ لَزَاهِداً وَ إِنْ کُنْتَ لَثَقِیلاً فَیَقُولُ أَنَا قَرِینُکَ فِی قَبْرِکَ وَ یَوْمَ نَشْرِکَ حَتَّی أُعْرَضَ أَنَا وَ أَنْتَ عَلَی رَبِّکَ.
(वसाइल उश-शिया, जिल्द 16, पेज 105)
जब इंसान अपनी दुनियावी ज़िंदगी के आखिरी दिन और आखिरत की ज़िंदगी के पहले दिन (यानी मौत के वक्त) पर पहुंचता है तो उसके सामने उसका माल, औलाद और अमल (कर्म) मूर्त रूप में प्रकट हो जाते हैं। वह माल की तरफ देखकर कहता है: मैंने तुझ पर बहुत मेहनत और कंजूसी की, अब मेरे लिए क्या है?
माल जवाब देता है: तेरा कफन। फिर औलाद की तरफ रुख करता है और कहता है: मैं तुम्हें चाहता था और तुम्हारी हिफाजत करता था, अब मेरे लिए क्या है? औलाद कहती है: हम तुझे तेरी कब्र तक ले जाएंगे और दफना देंगे।
फिर अपने अमल (कर्म) की तरफ रुजू करता है और कहता है मैंने तुझसे दूरी भी बनाई और तुझे भारी भी समझा, अब मेरे लिए क्या है? अमल जवाब देता है मैं कब्र में और क़यामत के दिन तेरा साथी हूंगा, यहां तक कि तुझे तेरे रब के सामने पेश किया जाए।
इसलिए इस यात्रा में अगर हमने सही साथी का चुनाव नहीं किया तो यह लापरवाही अनन्त पछतावे में बदल जाएगी।
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