शुक्रवार 5 सितंबर 2025 - 08:26
विद्वानो के वाक़ेआत । इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत से ज़्यादा महत्वपूर्ण

हौज़ा / हुज्जतुल-इस्लाम हाजी महदी अहमदी मियांजी बयान करते हैं: आयतुल्लाह अली अहमदी मियांजी, मक्का और मदीना की तीर्थयात्रा में रुचि रखने के बावजूद, तबलीग़ और मार्गदर्शन के लिए रमज़ान के महीने को ज़्यादा अहम मानते थे और उमराह स्वीकार नहीं करते थे। उन्होंने सय्यद कमाल मुराग़ेई की याद को बड़ी प्रशंसा के साथ याद किया, जिन्होंने हज करने और मुहर्रम की शुरुआत में कर्बला पहुँचने के बाद, ज़ियारत छोड़ दी और तबलीग़ और मजलिस आयोजित करने के लिए ईरान लौट आए, क्योंकि वे लोगों की सेवा को ज़ियारत से बेहतर मानते थे।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हुज्जतुल इस्लाम हाजी महदी अहमदी मियांजी ने अपने एक वाक़ाए में बताया है कि आयतुल्लाह अली अहमदी मियांजी, हालाँकि मक्का और मदीना के ज़ियारत करने में रुचि रखते थे, उन्होंने इसके लिए अपनी ज़िम्मेदारीयो को नही छोड़ा।

रमज़ान के हीने में, उन्हें एक उमराह करने का अवसर मिला।

उन्होंने स्वीकार नही किया और कहा: "तो फिर तबलीग़, मार्गदर्शन, मेरी मस्जिद और मजलिस का क्या होगा? रमज़ान के महीने में, तबलीग़ ज़ियारत से ज़्यादा वाजिब है।"

वे अक्सर आगा सय्यद कमाल मुराग़ेई की एक याद को बड़ी प्रशंसा के साथ सुनाते थे कि पहले हज के बाद, जब हम कर्बला पहुँचे, तो मुहर्रम का पहला अशरा था।

मुहर्रम की पहली तारीख को हरमैन शरफ़ैन की ज़ियारत करने के बाद, उन्होंने कहा: "बस ज़ियारत हो चुकी है। मुझे मुराग़े लौटकर तबलीग़ और मजलिस का आयोजन करना होगा। लोग इंतज़ार कर रहे हैं।"

हमने चाहे जितना ज़ोर दिया कि ऐसा मौक़ा दोबारा न मिले, उन्होंने कहा: "लोगों को तबलीग़ करना और उनका मार्गदर्शन करना इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत से ज़्यादा महत्वपूर्ण है।"

उन्होंने अपना सामान बाँधा और ईरान के लिए रवाना हो गए।

स्रोत: हज्ज निकान, लेखक आयतुल्लाह मियांजी, पेज 22 और 23

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