मंगलवार 9 सितंबर 2025 - 08:15
हफ्ता ए वहदत; कुरआन और सुन्नत की रौशनी में उम्मत की एकजुटता का पैगाम

हौज़ा / हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. और हज़रत इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम की मुबारक विलादत की खुशी पर 'हफ्ता ए वहदत' की हार्दिक शुभकामनाएं अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम ने हमेशा मुसलमानों के बीच एकता की अहमियत पर ज़ोर दिया है। इमामों की नज़र में यह एकता कोई अस्थाई या राजनीतिक ज़रूरत नहीं थी, बल्कि एक दीनी और ईमानी फर्ज़ था ताकि उम्मत आपसी दुश्मनी और फूट का शिकार न हो, बल्कि सच्चाई और इंसाफ़ की स्थापना में एकजुट होकर हिस्सा ले सके।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , ईरान के धार्मिक शहर क़ुम मे रहने वाले भारतीय शोधकर्ता और इस्लामिक स्टड़ीज़ के छात्र हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सय्यद क़ासिम अली रिज़वी से हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के प्रतिनिधि की हफ़ता ए वहदत के अवसर पर विशेष बातचीत करते हुए हफ्ते वाहिद को कुरआन और हदीस की रौशनी में कुछ प्रश्न का उत्तम उत्तर दिए।

हौज़ा न्यूज़ : सबसे पहले आप ये बताइए कि हफ्ता ए वहदत मनाने का मक़सद क्या है?

मौलाना सैयद क़ासिम अली रिज़वी : हफ्ता ए वहदत, जो कि नबी-ए-करीम हज़रत मोहम्मद मुस्तफा स.ल.व. और इमाम जाफर सादिक़ अ.ल. की विलादत की खुशी में मनाया जाता है, उसका मकसद सिर्फ जश्न मनाना नहीं, बल्कि उम्मत में एकता और भाईचारे का पैग़ाम देना है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारे इमामों ने हमेशा तफरका (विभाजन) से बचने और एकजुट रहने की तालीम दी है।

हौज़ा न्यूज़ : क्या आप हमें कुरआन और अहलेबैत (अ.स.) की शिक्षाओं में वहदत के बारे में कुछ उदाहरण दे सकते हैं?

मौलाना सैयद क़ासिम अली रिज़वी : बिल्कुल। कुरआन में साफ़ कहा गया है,
وَاعْتَصِمُوا بِحَبْلِ اللَّهِ جَمِيعًا وَلَا تَفَرَّقُوا
(سورۃ آلِ عمران 103)
सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मजबूती से थाम लो और आपस में भेदभाव और तफ़रक़ा मत डालो।
हज़रत इमाम अली अ.स. ने अपने हक़ की कुर्बानी देकर उम्मत में फूट से बचाया। इमाम हसन (अ.स.) ने सुलह करके खूनखराबे को रोका। इमाम हुसैन अ.स. ने कर्बला में इस्लाम की असल रूह बचाने के लिए कुर्बानी दी।
इमाम सादिक़ अ.स. ने मुख़्तलिफ फिरकों के उलमा से संवाद किया और इख़्तिलाफात को सम्मानजनक ढंग से संभाला।
इमाम रज़ा अ.स.ने भी दरबार-ए-मामून में विलायत-ए-अहद क़ुबूल कर के उम्मत में फिकरी और सियासी वहदत को बढ़ावा दिया।

हौज़ा न्यूज़ : आज के दौर में जब मुसलमानों में फिरकापरस्ती बढ़ रही है, ऐसे में वहदत की क्या अहमियत है?

मौलाना सैयद क़ासिम अली रिज़वी:आज उम्मत मुसलिमा को एकता की ज़रूरत पहले से कहीं ज़्यादा है। हमारी फूट का फायदा इस्लाम दुश्मन ताक़तें जैसे कि अमेरिका और इस्राईल उठा रही हैं। अगर हम एकजुट हों तो हम न सिर्फ अपने मज़लूम भाइयों की मदद कर सकते हैं, बल्कि दीन-ए-इस्लाम के असल पैग़ाम को भी दुनिया तक पहुँचा सकते हैं हमें वहदत को एक सियासी नारा नहीं, बल्कि एक दीनदाराना ज़िम्मेदारी समझना चाहिए।

हौज़ा न्यूज़ : आम मुसलमान इस वहदत में क्या किरदार निभा सकता है?

मौलाना सैयद क़ासिम अली रिज़वी :बहुत अहम किरदार निभा सकता है। अपने अमल से अपने लफ्ज़ों से, अपने रवैये से। इमाम सादिक़ अ.स. का एक मशहूर फरमान है,तुम हमारे लिए ज़ीनत का सबब बनो, शर्मिंदगी का सबब न बनो।
मतलब अपने अख़्लाक, इख़्लास और मोहब्बत से ऐसा बर्ताव करो कि लोग कहें देखो, ये अहलेबैत के मानने वाले हैं, कितने अच्छे इंसान हैं।

हौज़ा न्यूज़ : आखिर में आपका कोई खास पैग़ाम?

मौलाना सैयद क़ासिम अली रिज़वी :मेरा पैग़ाम है एक दूसरे के मज़हबी अकीदों का एहतराम करें,नफ़रत फैलाने वालों से होशियार रहे, इमामों की तरह इस्लाम और इंसानियत की भलाई को अपनी ज़िंदगी का मकसद बनाएं,और सबसे बढ़कर वहदत को सिर्फ हफ्ता-ए-वहदत तक सीमित न रखें, बल्कि पूरी ज़िंदगी का उसूल बनाएं।

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