शुक्रवार 12 सितंबर 2025 - 15:20
हफ्ता ए वहदत ए इस्लामी मज़ाहिब के बीच संबंधों की बहाली और आपसी एकजुटता बढ़ाने के लिए एक व्यावहारिक मंच है

हौज़ा / अलसकलैन इंस्टिट्यूट फॉर इस्लामिक स्टडीज़ एंड साइंसेज के प्रमुख ने कहा,आज वहदत-ए-इस्लामी केवल एक नैतिक नारा या धार्मिक सिफारिश नहीं बल्कि एक अस्तित्वगत आवश्यकता है। हफ्ता-ए-वहदत मुसलमानों के बीच संबंधों को मजबूत करने और उम्मत-ए-इस्लामिया की ताकत को एकजुट करने का एक बेहतरीन मौका है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , अल-सकलैन इंस्टिट्यूट फॉर इस्लामिक स्टडीज़ एंड साइंसेज के प्रमुख और अल-मुस्तफा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में उच्च शिक्षा के प्रोफेसर शेख डॉक्टर अली ग़ानिम शवीली ने मशहद में हौज़ा न्यूज़ के प्रतिनिधि से बातचीत में वर्तमान परिस्थितियों में वहदत-ए-इस्लामि की आवश्यकता और हफ्ता-ए-वहदत के रोल पर प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा, वहदत-ए-इस्लामी अब एक "जरूरत-ए-वजूद" बन चुकी है। अतीत में उम्मत-ए-इस्लामिया के सामने चुनौतियाँ ज़्यादातर सीमित और स्थानीय थीं, लेकिन आज हमें व्यापक वैश्विक ख़तरों का सामना करना पड़ रहा है; आधुनिक उपनिवेशवादी नियंत्रण से लेकर सांस्कृतिक पहचान मिटाने की कोशिशें और सॉफ्ट वार तक, जो सीधे नई पीढ़ी की सोच को निशाना बना रहा हैं।

शेख ग़ानिम अल-शवीली ने आगे कहा,ऐसे हालात में वहदत-ए-इस्लामी ही उम्मत के बचे रहने की असली गारंटी है और इन राजनीतिक, आर्थिक और विचारधारात्मक ख़तरों के सामने आवश्यक ताकत हासिल करने का एकमात्र रास्ता है।

हौज़ा और यूनिवर्सिटी के इस प्रोफेसर ने हफ्ता-ए-वहदत को इस्लामी मजाहिब के बीच संबंधों की बहाली और आपसी एकजुटता बढ़ाने के लिए एक व्यावहारिक मंच बताया और कहा, हफ्ता-ए-वहदत की गतिविधियाँ आपसी संवाद का माहौल प्रदान करती हैं।

सांस्कृतिक मेलजोल और आध्यात्मिक रिश्तों को बढ़ावा देती हैं और मानसिक व धार्मिक बाधाओं को कम करती हैं। इससे स्पष्ट होता है कि विचारों के विभिन्न रंग होने के बावजूद इस्लाम ही एकमात्र मूल है जो सभी मुसलमानों को एकजुट करता है।

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