शुक्रवार 10 अक्तूबर 2025 - 20:30
हसद; कीना, बैर और आपसी अंतर की वजह बनने वाली एक आध्यात्मिक बीमारी: मौलाना सय्यद नक़ी महदी ज़ैदी

हौज़ा / तारागढ़ के इमाम जुमा ने जुमे की नमाज़ के ख़ुत्बों में नमाज़ियों को तक़वा-ए-इलाही की नसीहत देने के बाद इमाम हसन अस्करी (अ) के वसीयतनामे की व्याख्या की और भाईचारे के संदर्भ में कहा कि इंसान को चाहिए कि वह अपने भाइयों के संबंध में हसद जैसी घातक बीमारी से बचे, क्योंकि इससे आपस में कीना, बैर और अंतर पैदा होता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, तारागढ़ के इमाम जुमा ने जुमे की नमाज़ के ख़ुत्बों में नमाज़ियों को तक़वा-ए-इलाही की नसीहत देने के बाद इमाम हसन अस्करी (अ) के वसीयतनामे की व्याख्या की और भाईचारे के संदर्भ में कहा कि इंसान को चाहिए कि वह अपने भाइयों के संबंध में हसद जैसी घातक बीमारी से बचे, क्योंकि इससे आपस में कीना, बैर और अंतर पैदा होता है।

उन्होंने आगे कहा कि हसद का मतलब है कि इंसान किसी की नेमत या अच्छाई को अपने भाइयों में देखकर नापसंद करे और उनसे वह नेमत छीन जाने की इच्छा करे, चाहे वह खुद को मिले या न मिले। यह एक आंतरिक और आध्यात्मिक बीमारी है जो इंसान के दिल में बैर, कीना और दरार पैदा करती है और इंसान के नेक अमलों को नष्ट कर देती है। हसद गुनाह-ए-कबीरा और सबसे बुरे अख़लाक़ में से एक है और इसकी हदीसों में सख्त निंदा की गई है।

इमाम-ए-जुमा ने हसद की व्याख्या करते हुए आगे कहा कि किसी दूसरे व्यक्ति की गाड़ी, माल, सफलता या किसी भी खुशहाली को देखकर यह इच्छा करना कि वह नेमत उससे छीन जाए, हसद है। यह एक बातिनी बीमारी है जिससे इंसान का दीन व ईमान प्रभावित होता है और समाज में अशांति फैलती है। हमें इससे बचना चाहिए। यह इब्लीस का पहला गुनाह था जो आसमान में और क़ाबील का ज़मीन पर पहला गुनाह था।

तारागढ़ के इमाम जुमा ने कहा कि सामाजिक जीवन के संदर्भ में विभिन्न अवसरों पर हादी-ए-आलम नबी-ए-अकरम (स) ने अपनी उम्मत को हसद, कीना, बैर और ऐसी अन्य बातिनी व आध्यात्मिक बीमारियों से बचने की हमेशा ताकीद फरमाई है और आपस में एक-दूसरे के साथ एकता, सहमति और भाईचारे की तालीम दी है। इसलिए रसूल-ए-अकरम (स) से रिवायत है कि आपने फरमाया: "आपस में एक-दूसरे के साथ हसद न करो, न आपस में एक-दूसरे के साथ बैर रखो, और न ही आपस में एक-दूसरे से रिश्ता काटो, और अल्लाह के बंदे भाई-भाई बन जाओ।"

उन्होंने आगे कहा कि एक अन्य रिवायत में है कि नबी-ए-अकरम (स) ने इरशाद फरमाया: "हसद से बचो, क्योंकि हसद नेकियों को उसी तरह खा जाता है जैसे आग लकड़ियों को खा जाती है।" और एक रिवायत में आया है: "हसद नेकियों के नूर को बुझा देता है।" हज़रत इमाम ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम से मनकूल है: "आफ़तुद-दीन अल-हसद व अल-इज्ज़ व अल-फख्र", "दीन की आफ़त हसद, घमंड और दिखावा है।" आप अलैहिस्सलाम ही से एक और रिवायत मनकूल है: "मोमिन रश्क करता है, हसद नहीं करता, और मुनाफ़िक़ हसद करता है, रश्क नहीं करता।"

हुज्जतुल इस्लाम मौलाना नक़ी महदी ज़ैदी ने कहा कि क़ुरआन मजीद की सूरह नेसा की 54वीं आयत में इरशाद-ए-इलाही है:  "क्या ये (दूसरे) लोगों से इसलिए हसद करते हैं कि अल्लाह ने उन्हें अपने फ़ज़ल से नवाज़ा है? (अगर ऐसा है) तो हमने आले इब्राहीम को किताब व हिकमत दी और उन्हें एक बड़ी सल्तनत दी।" हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) से रिवायत है: "नहनु अल-नासुल महसूदून", "वो लोग जिनसे यहूदी हसद करते हैं, हम ही हैं।" हज़रत अली (अ) ने मुआविया के नाम एक ख़त में यह वाक्य भी लिखा: "नहनु आले इब्राहीम अल-महसूदून व अंतल हासिद लना", "हम आले इब्राहीम हैं जिनसे हसद किया गया है और तू हमसे हसद करने वाला

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha