शनिवार 18 अक्तूबर 2025 - 07:13
हसद, ज़ुल्म और कुफ्र का कारण बनता है: मौलाना सय्यद नक़ी महदी ज़ैदी

हौज़ा / हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद नक़ी महदी ज़ैदी ने तारागढ़, अजमेर (भारत) में जुमे की नमाज़ के ख़ुत्बों में क़ुरआन और हदीस की रोशनी में “हसद” यानी जलन की किस्मों को बयान करते हुए कहा कि हसद इंसान को ज़ुल्म और कुफ्र (अकृतज्ञता) की ओर ले जाती है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद नक़ी महदी ज़ैदी ने तारागढ़, अजमेर (भारत) में जुमे की नमाज़ के ख़ुत्बों में क़ुरआन और हदीस की रोशनी में “हसद” यानी जलन की किस्मों को बयान करते हुए कहा कि हसद इंसान को ज़ुल्म और कुफ्र (अकृतज्ञता) की ओर ले जाती है।

उन्होंने कहा कि इंसान को अपने भाइयों के साथ जलन और दुश्मनी से बचना चाहिए, क्योंकि हसद इंसान की रूह को बिगाड़ देती है। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने फ़रमाया: “एक-दूसरे से हसद मत करो, क्योंकि कुफ्र की जड़ ही हसद है।”

मौलाना ज़ैदी ने हसद और रश्क (ग़िब्ता) में फर्क बताते हुए कहा—

सद यह है कि किसी को कोई नेमत या सफलता मिली देखकर यह चाहना कि वह उससे छिन जाए।

रश्क या ग़िब्ता यह है कि किसी को देखकर यह तमन्ना करना कि अल्लाह मुझे भी ऐसी नेमत अता करे — यह हसद नहीं कहलाता, बल्कि एक सकारात्मक भावना है।

मौलाना ने कहा कि हसद के बुरे असरात बहुत गंभीर होते हैं: यह इंसान के नेक अमल को बर्बाद कर देता है, दिल में नफ़रत, कड़वाहट और घृणा भर देता है, और समाज में फूट और वैर फैलाता है।

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अस्मई नाम के एक मशहूर अरबी शायर ने बताया कि उसने बनू अज़रा नामक कबीले में एक बद्दू अरब से मुलाकात की, जिसकी उम्र 120 साल थी। अस्मई ने पूछा, “आप इतनी लंबी उम्र कैसे जीए?” उसने जवाब दिया, “मैंने दूसरों से हसद करना छोड़ दिया, इसलिए अल्लाह ने मुझे अब तक ज़िन्दा रखा।”

मौलाना नकी महदी ज़ैदी ने आगे कहा कि कुरआन में अल्लाह तआला फरमाता है:
“व मिन शर्रिन हासेदिन इज़ा हसद” — यानी “मैं पनाह माँगता हूँ उस हसद करने वाले के शर (बुराई) से, जब वह हसद करे।”

हज़रत अली (अ) ने कहा है कि “अल्लाह छह क़ौमों को छह गुनाहों की वजह से सज़ा देगा: अरबों को झूठी नस्ल पर गर्व के कारण, किसानों को घमंड के कारण, शासकों को ज़ुल्म के कारण, आलिमों को हसद के कारण, व्यापारियों को धोखाधड़ी के कारण, और गाँववालों को अज्ञानता के कारण।”

मौलाना ज़ैदी ने हासिद (जलन करने वाले) की पहचान बताते हुए हज़रत लुक़मान (अ) का कथन सुनाया: قالَ لُقمانُ لابنِهِ : للحاسِدِ ثَلاثُ عَلاماتٍ: يَغْتابُ إذا غابَ ، ويَتَملّقُ إذا شَهِدَ ، ويَشْمَتُ بالمُصيبهِ “हासिद की तीन पहचानें हैं — जब दूसरा अनुपस्थित हो तो उसकी पीठ पीछे बुराई करता है,  जब सामने हो तो चापलूसी करता है, और जब किसी को मुसीबत आये तो ख़ुश होता है।”

उन्होंने अंत में कहा कि हसद से बचने और इसकी पहचान जानने के बारे में बहुत सी हदीसें हैं। एक मशहूर हदीस के अनुसार, हसद को आग की तरह बताया गया है — जैसे आग लकड़ी को जलाकर राख कर देती है, वैसे ही हसद इंसान की नेकियों को जला देती है और उसे नाश कर देती है।

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