बुधवार 15 अक्तूबर 2025 - 15:46
इस्लामी न्याय व्यवस्था को फिक़्ह और अख़्लाक का अच्छा उदाहरण बनना चाहिए

हौज़ा / हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने कहा, न्याय व्यवस्था की असली आत्मा फिक़्ह और नैतिकता के मेल में छुपी है और हर न्यायाधीश को फिक़्ही समझ के साथ अल्लाह के न्याय के सिद्धांतों में महारत हासिल करनी चाहिए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने कहा कि न्याय प्रणाली की असली रूह इस्लामी कानून (फ़िक़्ह) और नैतिकता के मेल में छिपी है उन्होंने कहा कि हर न्यायाधीश को इस्लामी कानून की गहरी समझ रखते हुए ईश्वरीय न्याय के सिद्धांतों में पारंगत होना चाहिए।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने क़ुम की न्यायपालिका के प्रमुखों और न्यायाधीशों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि आज की दुनिया में जहां न्यायिक प्रणाली अक्सर ताकत या राजनीति के अधीन हो गई है वहां इस्लामी न्यायपालिका को एक नैतिक और धार्मिक मानक स्थापित करना चाहिए ताकि यह पूरी मानवता के लिए एक आदर्श बन सके।

उन्होंने कहा कि अगर किसी न्यायाधीश में न्याय अल्लाह का भय और ज्ञान की गहराई नहीं है, तो अदालत महज एक भवन बनकर रह जाती है।

इस्लामी न्याय व्यवस्था को फिक़्ह और अख़्लाक का अच्छा उदाहरण बनना चाहिए

आयतुल्लाह अराफी के अनुसार, कुरान ने न्याय को इंसान की असली इबादत बताया है और इसके लिए सबसे पहले इंसान को अपने अंदर अनुशासन पैदा करना होता है।

उन्होंने कुरान की आयत  «اِنَّما اَعِظُکُم بِواحِدَةٍ اَن تَقوموا لِلّهِ مَثنی و فُرادی» (सूरह सबा:46) के हवाले से कहा कि "ईश्वर के लिए खड़े होना" सिर्फ इबादत नहीं है, बल्कि सच्चाई के लिए डटकर खड़े होना है। इंसान के सामने तीन बड़े दुश्मन हैं,

1. आलस्य और लापरवाही
2. शारीरिक इच्छाएं
3. बाहरी प्रभाव और दबाव
इन तीनों पर काबू पाना ही एक सच्चे मुसलमान और न्यायाधीश की असली परीक्षा है।

उन्होंने कहा कि क़ुम शहर हज़रत मासूमा स.ल. के पवित्र हरम के आशीर्वाद से इस्लामी क्रांति का बौद्धिक केंद्र है इसलिए यहां के न्यायाधीशों और न्यायिक कर्मचारियों की जिम्मेदारी अन्य स्थानों से कहीं अधिक है। यहां का हर कार्य और हर बात वैश्विक प्रभाव रखती है, इसलिए उन्हें धार्मिक ज्ञान, धार्मिक समझ और नैतिक मजबूती में दूसरों के लिए मिसाल बनना चाहिए।

इस्लामी न्याय व्यवस्था को फिक़्ह और अख़्लाक का अच्छा उदाहरण बनना चाहिए

आयतुल्लाह अराफी ने स्पष्ट किया कि न्यायाधीश को इस्लामी कानून के सिद्धांतों से गहरा लगाव रखना चाहिए। इस्लामी कानून सिर्फ कानूनों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह एक बौद्धिक व्यवस्था है जो न्याय, लोक-कल्याण और मानवीय गरिमा का समन्वय करती है।

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