शुक्रवार 24 अक्तूबर 2025 - 06:39
मरहूम मुहक़्क़िक़ नाईनी की इल्मी कोशिश और इज्तिहादी इख़्तेराआत हौज़ा ए इल्मिया के छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए बेहतरीन आदर्श हैं

हौज़ा / हज़रत आयतुल्लाह सुबहानी ने कहा: मरहूम मिर्ज़ा नाईनी ने फ़िक़्ही उसलूब जैसे मसाइल को हक़ीक़ी और ख़ारिजी हिस्सों में बाँटकर, तथा इल्म और रूहानियत को आपस में जोड़कर वर्तमान और भविष्य के हौज़ात-ए-इल्मिया और शोधकर्ताओं के लिए एक रौशन और असरदार रास्ता पैदा किया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार हज़रत आयतुल्लाह सुभानी ने हौज़ा ए इल्मिया इमाम काज़िम (अ) के कॉन्फ़्रेंस हाल में आयोजित “मिर्ज़ा नाईनी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन” के मौक़े पर अपने संबोधन में इस आलिम के इल्मी और अख़लाक़ी मक़ाम पर ज़ोर देते हुए हौज़ा इल्मिया नजफ़ की हज़ार साल पुरानी तारीख़ की समीक्षा पेश किया और मरहूम नाईनी के चरित्र को हौज़ात इल्मिया की इल्मी और सैद्धांतिक कोशिशो की सततता के लिए बहुत अहम क़रार दिया।

उन्होंने कहा: आज का यह अज़ीम इज्तिमा इस्लामी और शिया समाज को ना-मिटने वाली ख़िदमतें देने वाले और सरज़मीन-ए-नजफ़ अशरफ़ के फलदार दरख़्त से उठने वाले अज़ीम आलिम के सम्मान के लिए आयोजित किया गया है। यह सम्मेलन हौज़ा इल्मिया नजफ़ के हज़ार साल पूरे होने के मौक़े पर आयोजित किया गया है। यह हौज़ा 147 हिजरी क़मरी में स्थापित हुआ था, और अब उसकी स्थापना को एक हज़ार साल पूरे हो चुके हैं।

मरजा-ए-तक़लीद आयतुल्लाह सुबहानी ने मरहूम नाईनी की जीवनी और उनकी रचनाओं तथा प्रभावों के अध्ययन के महत्व पर बोलते हुए कहा: मरहूम नाईनी की शख़्सियत पर बात करने से पहले हौज़ा-ए-नजफ़ की तारीख़ पर नज़र डालना ज़रूरी है। नजफ़ शुरू में एक छोटा-सा सहराई शहर था लेकिन वक्त के साथ यह इल्मी समाज और उलमा का मरकज़ बन गया। शैख़ तूस़ी की हिजरत से पहले भी नजफ़ में इल्म और उलमा मौजूद थे। इब्न अल हज्जाज बग़दादी (मृत्यु 391 हिजरी) शैख़ तूस़ी के जन्म (385 हिजरी) के ज़माने में इशारा करते हैं कि नजफ़ उस वक्त हरम में शेअरी और इल्मी महफ़िलों का केंद्र था। सय्यद अब्दुल करीम इब्ऩ ताऊस अपनी किताब “फ़रहतुल ग़रीब” में लिखते हैं कि वह बग़दाद से नजफ़ आए और वहां के मुजावेरीन के लिए पाँच हज़ार दिरहम मख़्सूस किए — यह बात नजफ़ में क़ुर्रा और फ़ुक़हा की मौजूदगी को साबित करती है।

हज़रत आयतुल्लाह सुबहानी ने शैख़ तूस़ी की इल्मी कोशिश पर ज़ोर देते हुए कहा: शैख़ तूस़ी ने जब बग़दाद में उनकी लाइब्रेरी को आग लगी, तो उन्होंने अपनी किताबों का बड़ा हिस्सा नजफ़ मुन्तक़िल किया और वहीं तफ़्सीर “तिब्यान” जैसी अमूल्य रचनाओं को महफ़ूज़ किया। यह अमल इल्मी कोशिश और फ़िक़्री व साकाफ़ती विरसे की हिफ़ाज़त की बेहतरीन मिसाल है।

उन्होंने मिर्ज़ा नाईनी की शख़्सियत पर कहा: मरहूम मिर्ज़ा नाईनी संकटकाल में मुजाहिदाना अकलानियत और सियासी फ़ुक़ाहत की निशानी हैं। उनकी फ़िक्र दीन के दायरे में अकल, आज़ादी और रूहानियत की तरफ़ रुझान रखती है। इसलिए ऐसी महान शख़्सियतों का सम्मान सिर्फ़ कर्ज़ की अदायगी नहीं बल्कि इस्लामी समाज और हौज़ात इल्मिया के लिए पहचान की नींव भी है।

मरजा-ए-तक़लीद ने मरहूम नाईनी की इल्मी रचनाओ और तालीफ़ात की तरफ़ इशारा करते हुए कहा: मरहूम नाइनी फ़िक़्ह, उसूल, कलाम और हदीस शनासी में बेमिसाल जामियत के साथ नजफ़ के तमाम इल्मी हलक़ों में असरअंदाज़ थे। उनकी रचनाओ मे संतुलन, दक़ीक़ इस्तिदलाल और इज्तिहादी रूह के साथ हौज़ात-ए-इल्मिया और शोधकर्ताओ के लिए मार्गदर्शक हैं। ऐसी शख़्सियतों की महानता छात्रो, शिक्षको और युवा शोधकर्ताओं के लिए प्रेरणादायक है, और हौज़ा-ए-इल्मिया का मुस्तक़बिल नाईनी जैसे मुजाहिद और बसीर उलमा के नक़्श-ए-क़दम पर चलने में है।

हज़रत आयतुल्लाह सुबहानी ने मिर्ज़ा नाईनी के अख़लाक़ी और रूहानी पहलुओं के बारे में कहा: वह इबादत और शब-बेदारी में हमेशा ख़ौफ़-ए-ख़ुदा और ख़शियत में रहते थे। मरहूम नाईनी ने साबित किया कि इंसान का इल्म जितना ज़्यादा होगा, उसकी ख़शियत और विनम्रता भी उतनी ही ज़्यादा होगी। वह नमाज़ और इबादत में अपने दिल और रूह को ख़ुदा से जोड़ लेते थे, और उनके शागिर्द भी इस रूहानी अज़मत से लाभान्वित होते थे।

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