गुरुवार 23 अक्तूबर 2025 - 22:30
मरहूम मिर्ज़ा नाईनी, एक मुजाहिद फकीह और विलायत-ए-फकीह के सिद्धांत के ध्वजवाहक थे। आयतुल्लाह जवाहरी

हौज़ा / आयतुल्लाह शेख हसन जवाहरी ने क़ुम में आयोजित मिर्ज़ा नाईनी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि मरहूम आयतुल्लाह मिर्ज़ा मोहम्मद हुसैन नाईनी न केवल एक उच्च स्तरीय फकीह और उसूली शिक्षक थे, बल्कि वह एक राजनीतिक दूरदर्शिता, धार्मिक गर्व और विलायत-ए-फकीह के सिद्धांत पर पूर्ण विश्वास रखने वाले मुजाहिद आलिम भी थे जिन्होंने अपना जीवन तानाशाही, अत्याचार और साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष में बिताया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , आयतुल्लाह शेख हसन जवाहरी ने क़ुम में आयोजित मिर्ज़ा नाईनी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि मरहूम आयतुल्लाह मिर्ज़ा मोहम्मद हुसैन नायनी न केवल एक उच्च स्तरीय फकीह और उसूली शिक्षक थे बल्कि वह एक राजनीतिक दूरदर्शिता, धार्मिक गर्व और विलायत-ए-फकीह के सिद्धांत पर पूर्ण विश्वास रखने वाले मुजाहिद आलिम भी थे, जिन्होंने अपना जीवन तानाशाही, अत्याचार और साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष में बिताया।

आयतुल्लाह जवाहरी ने कहा कि मिर्ज़ा नायनी ने अपनी वैज्ञानिक और राजनीतिक ज़िंदगी में तीन बुनियादी सिद्धांतों पर अमल किया,आंतरिक तानाशाही के खिलाफ संवैधानिक प्रणाली का समर्थन, विदेशी साम्राज्यवाद के मुकाबले जिहाद, और इस्लामी देशों की आज़ादी और स्वायत्तता का समर्थन।

उनके मुताबिक नाईनी इस बात के कायल थे कि हुकूमत सिर्फ़ फकीह-ए-आदिल के हाथ में होनी चाहिए, मगर उस ज़माने की राजनीतिक स्थिति को देखते हुए उन्होंने अमली तौर पर उलमा की निगरानी में एक संवैधानिक व्यवस्था को अस्थायी हल के तौर पर कुबूल किया ताकि शरीयत के सिद्धांतों की पासदारी मुमकिन हो।

उन्होंने वज़ाहत की कि मरहूम नायनी ने कभी भी तानाशाही या मौरूसी हुकुमतों को जायज़ नहीं समझा और न ही आवामी हाकिमियत को मुतलक माना। वह विलायत-ए-फकीह के कायल थे, मगर ज़माने की मसलहतों को मद्देनज़र रखते हुए उन्होंने ऐसी व्यवस्था के कायम करने पर ज़ोर दिया जिसमें उलमा की निगरानी के तहत इंसाफ और शरीयत का नफ़ाज़ मुमकिन हो।

आयतुल्लाह जवाहरी ने कहा कि जब इराक़ में ब्रिटिश कब्ज़ा हुआ तो नायनी ने उसके खिलाफ ऐलान-ए-जिहाद किया और इस्तिकलाल-ए-इराक़ के लिए कोशिशें की। ब्रिटिश दबाव और मुक़ामी हुक्मरानों की मुखालफत के सबब वह अपने कुछ साथियों के हमराह इराक़ से निकाले गए और ईरान वापस आकर हौज़ा-ए-इल्मिया के ज़रिए फिक्री और दीनी जद्दोजहद जारी रखी।

उन्होंने आदे कहा कि मिर्ज़ा नायनी ने हमेशा अक़्ल और तदबीर से काम लिया और इल्म, तकवा और सियासत के इम्तेज़ाज से उम्मत के लिए एक मिसाली रास्ता मुअय्यन किया। वह समझते थे कि अगर किसी वक़्त नज़रिये-ए-विलायत-ए-फकीह का नफ़ाज़ मुमकिन न हो तो कम से कम ऐसी व्यवस्था बाक़ी रखी जाए जो दीन के मुखालिफ न हो और उम्मत को ज़ुल्म और ताग़ूत से महफूज़ रखे।

आयतुल्लाह जवाहरी ने आख़िर में कहा कि मिर्ज़ा नायनी की ज़िंदगी इल्म और अमल, बसीरत और मुजाहिदत, और हकीकत पसंदी का हसीन इम्तेज़ाज है। वह ऐसे फकीह-ए-आदिल और मुदब्बिर थे जिन्होंने न सिर्फ़ अपने ज़माने में शरीयत और इंसाफ की हिफाजत की बल्कि आने वाली नस्लों के लिए दीनी बेदारी और सियासी शुऊर की रौशन मिसाल कायम की।

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