शुक्रवार 24 अक्तूबर 2025 - 23:01
मोमिन की पहचान इबादतों से नहीं बल्कि मआमलात से होती है: मौलाना फ़िरोज़ अब्बास

हौज़ा / मौलाना फ़िरोज़ अब्बास ने मोहल्ला पुरानी बस्ती बखरी, मुबारकपुर (भारत) में मौलाना मस्रूर हसन मजीदी क़ुम्मी मरहूम की अहलिया मरहूमा की मजलिसे सोयम से ख़िताब करते हुए कहा कि मोमिन की पहचान इबादतों से नहीं बल्कि उसके मआमलात से होती है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, मोहल्ला पुरानी बस्ती बखरी, मुबारकपुर में मौलाना मस्रूर हसन मजीदी क़ुम्मी मरहूम की अहलिया मरहूमा की मजलिसे सोयम आयोजित हुई, जिसमें मोमेनीन और उलमा-ए-इराम ने बड़ी सख्या मे भाग लिया।

मजलिस से हुज्जतुल इस्लाम मौलाना फ़िरोज़ अब्बास ने ख़िताब करते हुए कहा कि मोमिन की पहचान इबादतों से नहीं बल्कि उसके मआमलात से होती है; यह मत देखो कि वह कितना बड़ा नमाज़ी है, यह मत देखो कि वह कितना बड़ा रोज़ेदार है, यह मत देखो कि उसने कितनी बार हज किया है या कितनी ज़्यादा इबादतें करता है, बल्कि यह देखो कि वह लोगों के साथ कैसा सुलूक करता है; क्या वह बंदों के हक़ भी अदा करता है या नहीं। जो व्यक्ति अल्लाह के हक़ के साथ-साथ इंसानों के हक़ भी अदा करता है, वही असली मोमिन है, और वही अल्लाह के नज़दीक मुक़र्रम है। इस सिलसिले में अहले बैत (अ) की सीरत तमाम इंसानों के लिए एक रौशन नमूना-ए-अमल है।

मोमिन की पहचान इबादतों से नहीं बल्कि मआमलात से होती है: मौलाना फ़िरोज़ अब्बास

सदरुल उलमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना मस्रूर हसन साहब क़िबला मजीदी क़ुम्मी मुबारकपुरी (ताबस सराह) सुल्तानुल मदारिस लखनऊ से सदरुल अफ़ाज़िल, मदरसा वाएज़ीन लखनऊ से वाएज़, लखनऊ यूनिवर्सिटी से एम.ए. और हौज़ाए इल्मिया क़ुम (ईरान) से फ़ाज़िल क़ुम थे।

उन्होंने मदरसा वाएज़ीन लखनऊ के वाएज़ की हैसियत से मुल्क और बाहर मुल्क में तब्लीगी दौरे किए थे। फिर 1983 में वह इस्लामी तब्लीग़ाती मरकज़, ईरान से मुत्तसिल हुए और अफ़्रीका व लंदन आदि में तब्लीगी दौरों पर रहे।

मरहूम एक लंबी मुद्दत तक मॉरिशस में इमामे जुमा व जमाअत रहे; दिसंबर 2009 में कामठी (नागपुर) में दिल का दौरा पड़ने से इंतिक़ाल कर गए। जनाज़ा वतन लाया गया और ऊँची तकिया क़ब्रिस्तान, मुबारकपुर में दफन किया गया।

मरहूम उम्दा क़लमकार, ख़तीब और मुबल्लिग़ थे; उन्होंने कई किताबें तस्नीफ़ व तालीफ़ कीं। उन्होंने तफ़्सीरे कुरआन लिखने का इरादा किया था, मगर अफ़सोस कि मजीदुल बयान फी तफ़्सीरे कुरआन नामी पहली जिल्द ही प्रकाशित हो सकी और फिर मौत ने मोहलत न दी। बीते रोज़ 22 अक्टूबर को मौलाना मरहूम की अहलिया अहमदी बानो बिंत इक़बाल हुसैन मरहूम भी दुनिया से रुख़सत कर गईं और ऊँची तकिया क़ब्रिस्तान, मुबारकपुर में दफ़न हुईं।

मरहूमा बहुत ही दींदार और नमाज़-रोज़े की पाबंद ख़ातून थीं। उनका इकलौता बेटा हुज्जतुल इस्लाम मौलाना नसीरुल महदी मुबारकपुरी क़ुम्मी है, जो अक्सर क़ुम (ईरान) में रहते हैं।

मरहूमा की मजलिसे सोयम में मौलाना इब्ने हसन अमलवी, मौलाना जव्वाद हैदर कर्बलायी, मौलाना नाज़िम अली ख़ैराबादी, मौलाना मिनहाल रज़ा, मौलाना नफ़ीस अख़्तर, मौलाना मुहम्मद दाऊद, मौलाना कर्रार हुसैन अज़हरी, मौलाना हसन अख़्तर आबिदी, मौलाना मिर्क़ाल रज़ा, मौलाना कौनैन रज़ा, मौलाना काज़िम हुसैन, मौलाना इक्तदार हुसैन समेत बड़ी तादाद में मुमिनीन ने शिरकत की।

मोमिन की पहचान इबादतों से नहीं बल्कि मआमलात से होती है: मौलाना फ़िरोज़ अब्बास

मरहूमा के इसाले सवाब के लिए ख़वातीन की मजलिसे सोयम उसी रोज़ दोपहर 2 बजे बैतुल मजीद, मोहल्ला पुरानी बस्ती बखरी मे आयोजित हुई। जिसमे बड़ी सख्या मे खवातीन ने भाग लिया।

मोमिन की पहचान इबादतों से नहीं बल्कि मआमलात से होती है: मौलाना फ़िरोज़ अब्बास

मोमिन की पहचान इबादतों से नहीं बल्कि मआमलात से होती है: मौलाना फ़िरोज़ अब्बास

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