हौज़ा न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, आस्ताना शहीद राबे पंजा शरीफ़, दिल्ली, हिन्दुस्तान में मुहक़्क़िक डॉ. सय्यद शहवार हुसैन नक़वी की नई तालीफ़शुदा किताब "तज़्किरा-ए-शहीद राबे" की तक़रीब-ए-रूनुमाई उलमा-ए-किराम और कौम के दानिशवरों की मौजूदगी में अंजाम पाई।

इस समारोह की अध्यक्षता दिल्ली के इमामे जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन मौलाना सय्यद मोहम्मद मोहसिन तक़वी ने की, जबकि मेहमान-ए-ख़ुसूसी के तौर पर हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन जनाब आका-ए-रिज़ाई, हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन जनाब आका-ए-सैयद हुसैन और हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद रईस अहमद जारचवी ने शिरकत की।

मुक़र्रिरीन ने इस किताब की एहमियत और अफ़ादियत पर रोशनी डालते हुए कहा कि अल्लामा मिर्ज़ा मोहम्मद कामिल देहलवी की हयाते पायक पर एक मुफ़स्सल किताब की ज़रूरत लंबे अरसे से महसूस की जा रही थी। अल्हम्दुलिल्लाह डॉ. सय्यद शहवार हुसैन नक़वी ने यह किरानक़द्र और तहक़ीक़ी तज़किरा तस्नीफ़ करके एक बहुत बड़ी ज़रूरत पूरी की।
यह तस्नीफ़ मुदाफ़े-ए-तशीअ हरीम-ए-विलायत, माया नाज़ मुनाज़िर और आलिम-ए-कलाम अल्लामा मिर्ज़ा मोहम्मद कामिल देहलवी (र) की ज़िंदगी पर आधारित है। इसमें पाँच अध्याय हैं जिनमें अल्लामा के ख़ान्दानी पृष्ठभूमि के साथ उनकी हयात और खिदमात का तहक़ीक़ाती जायज़ा लगभग दो सौ पृष्ठों पर पेश किया गया है।
अल्लामा ने शाह अब्दुल अज़ीज़ देहलवी की तस्नीफ़ "तौहफ़ा ए सना अशरिया" का जवाब "नज़्हत ए सना अशरिया" नाम से बारह जिल्दों में देकर तशीअ की किरानक़द्र खिदमत अंजाम दी और दुश्मनों को लाजवाब कर दिया।
किताब "नज़्हत ए सना अशरिया" की खासियतें:
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यह पहला जवाब है।
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यह तौहफा ए इसना अशरिया का मुकम्मल जवाब है।
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यह साहिब-ए-तौहफा की ज़िंदगी में ही प्रकाशित हुई।
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साहिब-ए-तौहफा ने इसे देखा, मगर जवाब-उल-जवाब लिखने की हिम्मत न कर सके।
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यही किताब उनकी शहादत का कारण बनी।
इस किताब के मंज़र-ए-आम पर आते ही मुख़ालिफ़ीन में हलचल मच गई, नतीजतन उन्हें ज़हर देकर शहीद कर दिया गया। उनका मज़ार पंजा शरीफ़, दिल्ली में बना। ऐसे बहादुर आलिम की कुर्बानियों और खिदमात से नई नस्ल को वाकिफ़ कराना हम सबकी ज़िम्मेदारी है। इस पर ज़ोर दिया गया कि शहीद राबे के इल्मी आसार को आम किया जाए ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग उनसे फ़ायदा उठा सकें।
तक़रीब-ए-रूनुमाई का आग़ाज़ तिलावत-ए-क़ुरआन से मौलाना अली कौसर ने किया, जबकि निज़ामत के फराइज़ मौलाना अज़हर सांक़हनवी ने अंजाम दिए, और मज़ार-ए-शहीद पर फूलों के गुलदस्ते भी रखे गए।





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