۲۶ شهریور ۱۴۰۳ |۱۲ ربیع‌الاول ۱۴۴۶ | Sep 16, 2024
अल्लामा मोहम्मद मेहदी भीकपुरी

हौज़ा / पेशकश: दानिशनामा इस्लाम, इंटरनेशनल नूरमाइक्रो फिल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद गाफ़िर रिज़वी छोलसी और मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फ़ंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, अल्लामा सय्यद मोहम्मद मेहदी भीकपुरी 25 रबीउससानी 1269 हिजरी में अपने ननिहाल बंगरा ज़िला मुज़फ्फ़रपुर में पैदा हुए, आपके वालिद मौलाना सय्यद अली का शुमार अपने ज़माने के बुज़ुर्ग औलमा में होता था, आपके वालिदे माजिद को औलाद की सही तरबियत का इतना अहसास था की ज़माने रिज़ाअत ख़त्म होते ही आपको और आपके छोटे भाई मौलाना हकीम डाक्टर सय्यद मोहम्मद जवाद को अपनी निगरानी में ले लिया और तालीम व तरबियत के तमाम उमूर ब नफ़से नफ़ीस ख़ुद अंजाम देते थे लेकिन ये मोहब्बत अक़्ल के ताबे थी और एक लम्हे के लिए भी अपने बच्चों की तालीम और तहज़ीबे नफ़्स में तसाहुली नहीं फ़रमाते थे।

अल्लामा 16 साल की उम्र में साया ए पिदरी से महरूम हो गए, वालिद की रहलत के बाद आपने पटना का रुख़ किया और वहाँ कुछ अरसे मेहरबान असातेज़ा से कस्बे फ़ैज़ किया फिर उसके बाद आज़िमे लखनऊ हुए, लखनऊ में क़याम के दौरान मुखतलिफ़ औलमा के सामने ज़ानु ए अदब तै किए जिनमें ताजुल औलमा मौलाना सय्यद अली मोहम्मद, मुफ़्ती मोहम्मद अब्बास मूसवी, मौलाना सय्यद तसददुक़ हुसैन कंतूरी के असमा क़ाबिले ज़िक्र हैं।

अल्लामा मोहम्मद महदी अपनी तालीम मुकम्मल करने के बाद सन 1306 हिजरी में पहले मुज़फ्फ़रपुर आये और महल्ला कमरा में आपने नवाब सय्यद मोहम्मद तक़ी के साथ मिलकर एक मस्जिद और आलीशान इमामबारगह तामीर कराया और बच्चों की तालीम के लिये “मदरसे ईमानया” की बुनयाद रखी ताके तशनिगाने उलूम सैराब होते हैं।

अल्लामा सय्यद मोहम्मद मेहदी तक़रीबन सारी ज़िन्दगी इसी मस्जिद, इमामबाड़े और मदरसे में बाहैसियते मुदर्रिसे आला और खतीब की हैसियत से मुंसलिक रहे,आप मदरसे ईमानया के मुदर्रिसे आला की हैसियत से उस वक़्त मुंसलिक थे जब मौलाना आबिद हुसैन के कान्धों पर मस्जिद की पेश नमाज़ी थी।

सन 1320 हिजरी में मौलाना सय्यद आबिद हुसैन सुलतानुल मदारिस लखनऊ तशरीफ़ ले गए तो मदरसे की ज़िम्मेदारयों के साथ मस्जिद की इमामत की ज़िम्मेदारी भी मौलाना सय्यद मोहम्मद मेहदी के कान्धों पर आ गई मोसूफ़ अपनी आख़री उम्र तक तमाम ज़िम्मेदारयों को बाहुसनो ख़ूबी अंजाम देते रहे।

आप 2 मर्तबा ज़ियारते अतबाते आलीयात से मुशर्रफ़ हुए, आपकी इल्मी सलाहियत को देखते हुए आयतुल्लाह मिर्ज़ा सय्यद मोहम्मद तक़ी शीराज़ी ने इजाज़ा ए रिवायात व उमूरे हिसबिया से नवाज़ा, हिंदुस्तान में फ़क़ीहे अहलेबैत अ: आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद बाक़िर ने आपको मुफ़स्सल इजाज़ा ए रिवायात अता किया जो मवाएज़ुल मुत्तक़ीन में छपा है, इसी तरह इमादुल औलमा मीर आग़ा ने भी इजाज़ा ए उमूरे हिसबिया मरहमत फ़रमाया।

मौलाना ने तसनीफ़ व तालीफ़ में भी नुमाया किरदार अदा किया आपके आसार में सवा उस्सबील, हुज्जतुन बालेगा, ज़मज़म\तुल हुज्जाज, तोहफ़तुल अबरार, मवाएज़ुल मुत्तक़ीन, लवाएजुल अहज़ान और उर्दू ज़बान में मजालिस की किताब लवाएजुल अहज़ान जिसका तारीख़ी नाम मज़हरुल मसाइब है आज भी ज़बाँ ज़दे ख़ासो आम है और मक़बूलियत के पेशे नज़र आज भी मुसलसल शाए हो रही है।

मौलाना सय्यद मोहम्मद महदी बेहतरीन खतीब भी थे और इस फ़न की अहमियत से बाख़ूबी वाक़िफ़ थे, आपने खिताबत की ज़रूरत को महसूस करते हुए मैदाने खिताबत को इख्तियार किया, चुनांचे आपने शहरों क़स्बों में अपनी खिताबत का लोहा मनवाया और ऐसे मक़ामात और इलाक़ों में ख़िताब किया जहाँ लोग दीन व शरीअत से बिलकुल ना आशना थे।

आपने ने अपनी खिताबत में आखरत साज़ी का नमूना पेश किया है, उनकी खिताबत का मक़सद दुनया साज़ी और लोगों की वाह वाह नहीं थी बल्के आखरत साज़ी था इसी लिए आप अपने बयान में दीनी व शरई मसाइल और मोएज़ा बयान फ़रमाते थे।

मौलाना मोहम्मद महदी खातीब होने से साथ बरजसता शायर भी थे, आपको फ़ारसी नज़्मो नस्र पर महारत हासिल थी, आपकी किताब लवाएजुल अहज़ान में नज़्म व नस्र दोनों के नमूने देखे जा सकते हैं, आपने इस किताब में हमदो नात को नज़्म में तहरीर किया है, अल्लाह ने मोसूफ़ को एक बेटी और एक बेटे से नवाज़ा जो हकीम सज्जाद के नाम से पहचाने गये।

सन 1340 हिजरी में आप पर फ़ालिज का असर हुआ इलाज के बाद इस क़ाबिल हो गये की फिर मुज़फ्फ़रपुर जा सकें, लेकिन 2,3 बरस के बाद मर्ज़ ने दोबारा शिद्दत इख्तियार कर ली जिसकी वजह से आपको आपने वतन भीकपुर वापस आना पड़ा ।

आखिरकार ये इलमो अमल का चमकता आफताब 24 जमादियुससानी 1348 हिजरी भीकपुर में गुरूब हो गया और नमाज़े जनाज़ा के बाद मजमे की हज़ार आहो बुका के हमराह अपने बारादरे निसबती हाजी साहब के तामीर करदा इमाम बाड़े के सहन में सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया।

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-9 पेज-129 दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2023ईस्वी।

टैग्स

कमेंट

You are replying to: .